रायपुर। कांकेर जिले के अंतागढ़ तहसील के ग्राम कलगांव के आदिवासी परिवारों ने भिलाई स्टील संयंत्रके नाम पर गांव की छिनी जा रही जमीन के विरोध में मुख्यमंत्री निवासजाकर ज्ञापन सौपा. जिसमे शीघ्र कार्यवाही की मांग किया गया. दरअसल कलगांव में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा भिलाई स्टील प्लांट की परियोजना हेतु 17.750 हेक्टेयर जमीन अदला-बदली के नाम परजमीन छिन लिया गया है. जिसका ग्रामीण शुरुवाती दौर से ही विरोध करते आये है. इस जमीन पर गाँव वाले कई वर्षो से खेती करते आ रहे है एवं सामूहिक निस्तार का भी जंगल जमीन है. संविधान की पांचवी अनुसूची के तहत अनुसूचित क्षेत्रो में किसी भी परियोजना हेतु जमीन लेने के पूर्व ग्राम सभा की अनिवार्य सहमती की आवश्यकता है.
इसके साथ ही वन अधिकार मान्यता कनून 2006 की धारा 4 उप धारा 5 एवंकेंद्री वन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के 30 जुलाई 2009 के आदेश अनुसार किसी भी व्यक्ति को उसकी काबिज वन भूमि से बेदखल नही किया जा सकता. जब तक उसके वन अधिकार की मान्यता की प्रक्रिया समाप्त नही होगी, उक्त दोनों कानूनों का उल्घंन कर जमीन अदला-बदली के नाम पर जमीन छिनी गई है. उल्लेखित जमीन परनिर्माण कार्य शीघ्र रोक लगाने एवं आदिवासियों की जमीन वापसी कीमांग पर मुख्यमंत्री को ज्ञापन सौपा और कहा कार्यवाही नही होने परआन्दोलन के लिए बाध्य होंगे
कलगांव का अपने आप में पहला मामला है जो किसी परियोजनके लिए कम्पनी द्वार शहरी क्षेत्र (सामान्य क्षेत्र) में जमीन उपलब्दकरवाई गई और इसके बदले राज्य सरकार द्वार अनुसूचित क्षेत्र मेंजमीन छिनी लिया गया है यदि इस प्रक्रिया का कानूनि मान्यता दीजाए तो संविधान की पांचवी अनुसूची से प्रदत्त संरक्षण, पेसा औरवन अधिकार कानून एवं भू अर्जन कानून का कोई औचित्य नहीरहेगा . यह अपने आप उधाहरण है कि आदिवासियों से जमीनछिनने नए नए हथकंडे अपनाए जा रहे है
कलगाँव – पाँचवी अनुसूची क्षेत्रो के ग्रामवासियों के संवैधानिक अधिकारों की क्षति
1. कलगाँव, अंतागढ़ तहसील, कांकेर जिले का एक बड़ा गाँव हैं जिसमें कुल 807 मतदाता हैं। यह एक मिश्रित गाँव है जिसमें अनुसूचित जाति और जनजाति लगभग 60 % हैं और अन्य पिछड़ा वर्ग लगभग 40 % हैं। यह गाँव पांचवी अनुसूचि के अंतर्गत है।
2. दिनांक 10.11.17 के राजस्व विभाग के आदेश (संलग्नक क्र. 1) के अन्तर्गत इस गाँव की भूमि (कुल रकबा17.750 हे.) भिलाई स्टील प्लाँट को आवंटित की गई है – पर निम्न कारणों से यह पूरी प्रक्रिया गैर कानूनी और असंवैधानिक है।
(क) यह भूमि बीएसपी को “अदला बदली” में दी गई है – बीएसपी ने राज्य शासन को दुर्ग जिले में भूमि दी है, जिसके बदले में उन्हें यह भूमि दी जा रही है। यहसंलग्नक क्र. 2 के आम उद्घोषणा पत्र में अंकित है। आम किन्तु सामान्य भूमि के बदले में संविधान की पांचवी अनुसूचि के अन्तर्गत क्षेत्र की भूमि को देना असंवैधानिक है और अनुच्छेद 244 के सिद्धान्तों के विपरीत है।
(ख) इस भूमि पर झुड़पी जंगल है जो कि 1996-97की किश्तबंदी खतौनी में दर्शाया गया है, और इसीलिये उसके आवंटन के लिये वन विभाग से स्वीकृति चाहिये जो कि इस अदला बदली की प्रक्रिया में नही लिया गया है।
(ग) इस भूमि पर गाँव वाले कई दशकों से कृषि कर रहे हैं (संलग्नक क्र. 3 में 1995-96 से गाँववालों के इस भूमि पर कब्जे का प्रमाण हैं)। और बाकी गाँव वाले इस भूमि पर जंगलों का उपयोग करते हैं और इस भूमि पर निस्तारी करते हैं । गाँव वाले इन जंगलों का संरक्षण और संवर्धन भी कर रहे हैं और आज के समय यहाँ पर बड़े बड़े वृक्ष भी हैं। वे बहुत वर्षों से इस भूमि के वन अधिकार पट्टों की मांग कर रहे हैं और उन्होंने दावे भी डालें हैं, पर उन्हें पट्टा आज तक नहीं मिला है। अनुसूचित जनजातियों और अन्य परम्परागत वन निवासियों को अपना अधिकार देने के बजाय शासन एक कम्पनी को प्राथमिकता दे कर वन अधिकार मान्यता कानून का उल्लंघन कर रहा है।
(घ) इस प्रकार की “अदला बदली” के लिये कानून में कोई प्रावधान नहीं है। शासन ने इस प्रक्रिया के लिये राजस्व परिपत्र पुस्तक खंड 4- क्र. 3 – कंडिका 20 का उपयोग किया है परन्तु इस कंडिका में केवल कृषि प्रयोजन के लिये शासकीय भूमि को निजी भूमि से अदला बदली में देने का प्रावधान है – और वह भी आस-पास के गाँव में जो कि एक ही जिले में या एक ही संभाग में हो, और जिससे कृषकों की भूमि की चकबन्दी में सहायता मिले । दो विभिन्न संभागों में इस प्रकार की भूमि का औद्योगिक या अन्य प्रयोजन के लिये अदला बदली का कानून में कोई प्रावधान नहीं है। इस अदला बदली से ग्रामवासियों को कोई सुविधा या लाभ उप्लब्ध नहीं है और यह हर रूप में असंवैधानिक है। अगर बीएसपी को इस क्षेत्र में अपने प्रयोजन के लिये भूमि की आवश्यकता है तो उसे विधिवत् सरकार को प्रस्ताव देकर, सम्पूर्ण भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया में शामिल होना चाहिये, और इस भूमि का क्या उपयोग होगा इसकी जानकारी सार्वजनिक करनी चाहिये ताकि जनता अपने हितों की रक्षा कर सके।
(ङ) गाँव वालों ने तहसीलदार से लेकर कलेक्टर, मुख्य मंत्री तक कई आवेदन, शिकायते भेजी हैं, पर उनकी एक बार भी सुनवाई नहीं हुई है। एक शिकायत संलग्नक 4 में भी है। इस अदला बदली के विरुद्ध कई बार शिकायते देने के बावजूद प्रकरण में लिखा गया कि गाँव में किसी को इस अदला बदली से कोई आपत्ती नहीं है। उनकी शिकायतों को अनसुना करना भी कानून का उल्लंघन है।
(च) पाँचवी अनुसूचि के अन्तर्गत आने के कारण कलगाँव में पेसा कानून के नियमों का पालन होना चाहिये, जिसके तहत् ग्राम में किसी भी प्रयोजन के आने के पूर्व ग्राम सभा की अनुमति चाहिये। परन्तु इस गाँव में कभी भी किसी विधिवत् ग्रामसभा ने इस अदला बदली के लिये सहमती नहीं दी है।