वैभव बेमेतरिहा, रायपुर। छत्तीसगढ़ में तीन चरणों में चुनाव के साथ मतदान की प्रकिया समाप्त हो गई है. अब सभी को इंतजार नतीजे को लेकर है. लेकिन सभी 11 सीटों का विश्लेषण करे तो पता चलता है कि परिणाम विधानसभा चुनाव की तरह ही रह सकता है. लेकिन ये बात भी सच है कि राष्ट्रवाद के मुद्दे के बीच मोदी लहर से इंकार नहीं किया जा सकता है. खास तौर पर शहरी मतदाताओं में मोदी प्रभाव का असर दिखा है. लेकिन बीजेपी के लिए फिर भी राह आसान नहीं है. खुद भाजपा के जमीनी कार्यकर्ताओं के साथ बड़े नेता भी यह मानते हैं कि छत्तीसगढ़ में इस बार परिस्थितियां 2014 की तरह अनुकूल नहीं है. लेकिन भाजपा के नेता फिर भी कह रहे हैं विधानसभा के परिणाम के उलट लोकसभा में हम अच्छी स्थिति में है. दूसरी ओर कांग्रेस के कार्यकर्ता और नेता इस चुनाव को भी विधानसभा की तरह ही मानकर चल रहे हैं. मतलब कांग्रेसियों का आंकलन है कि जनता इस चुनाव में पूरी तरह से कांग्रेस के साथ हैं.

छत्तीसगढ़ अलग राज्य बनने के बाद अगर बीते तीन चुनावों की बात करे तो राज्य में भाजपा की सत्ता रहते हुए 2004, 2009 और 2014 में बीजेपी 11 में से 10 सीटों पर काबिज होती रही है. उस स्थिति में भी जब 2004 और 2009 में केन्द्र में कांग्रेस की सरकार बनी. लेकिन इस बार भाजपा के सामने चुनौती यह रही है कि राज्य में सत्ता कांग्रेस के पास है. लिहाजा परिस्थितियां बीते तीन चुनावों की तरह नहीं रही. लेकिन बीजेपी के लिए अच्छी बात ये भी रही कि 2014 की तरह मोदी लहर पूरी तरह तो नहीं शहर में जरूर दिखा है. ऐसे में भाजपा ने राज्य में सत्ता परिवर्तन के बीच कड़ी टक्कर दी है इससे इंकार नहीं किया जा सकता.

लेकिन भाजपा के लिए मुश्किल और कांग्रेस के लिए फायदेमंद जो बात है वह शहरी और ग्रमीण मतदाताओं के बीच एक बड़ा अंतर है . माना यह जाता है कि शहरी मतदाताओं में भाजपा की पकड़ मजबूत रहती है जबकि ग्रामीण मतदाताओं में कांग्रेस की. वैेसे देश के अन्य राज्यों की तरह छत्तीसगढ़ में मोदी का जादू यहां के शहरी मतदाताओं में भी चला इसकी चर्चा भी खूब है. लिहाजा बीजेपी इसी आसरे मतदान के बाद गदगद है. तो कांग्रेस के लिए खुश होने वाली बात ये है कि शहर में मतदान प्रतिशत ग्रमीण क्षेत्रों के मुकाबले कम रहा है.

जिन 7 सीटों पर 23 अप्रेल को मतदान हुआ है वहां विधानसभावार मतदान प्रतिशत के आंकड़े  देखें तो भाजपा और कांग्रेस के लिए जो आंकड़ा बैठेगा वह यह हो सकता है.

रायपुर लोकसभा सीट-
रायपुर लोकसभा सीट पर 9 विधानसभा सीटें हैं.  इसमें शहरी क्षेत्र रायपुर के 4 विधानसभा सीटें है, जबकि 5 विधानसभा सीटें ग्रामीण क्षेत्र की है. रायपुर में मतदान का औसत प्रतिशत 64.60 रहा है.
रायपुर दक्षिण में  53.41
रायपुर उत्तर में 54.93
रायपुर पश्चिम में 53. 26
रायपुर ग्रामीण में 59.69
बलौदाबाजार में 60.30
भाटापारा में 61.60
आरंग में 68.73
धरसींवा में 69.78
अभनपुर में 74.12 प्रतिशत मतदान हुआ है.

इसी तरह से अगर दुर्ग लोकसभा सीट में देखें तो यहां औसत मतदान 66.95 प्रतिशत रहा. लेकिन शहरी क्षेत्र दुर्ग शहर में 58, भिलाई नगर में 64.40, वैशाली नगर में 55.98 प्रतिशत मतदान हुआ. बाकी 6 ग्रामीण क्षेत्र वाली विधानसभा सीटों में औसत मतदान प्रतिशत 67 से ऊपर रहा है.

इसी तरह से आप चुनाव आयोग की ओर से जारी किए गए इस सारिणी में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में मतदान प्रतिशत का विश्लेषण कर सकते हैं. अगर लोगों के बीच चर्चाओं और मतदान प्रतिशत के आंकड़ों का विश्लेषण करे तो शहरी मतदाताओं की संख्या ग्रामीण मतदाताओं के आगे कम है. ऐसे में मोदी लहर के बावजूद शहरी मतदाता उतनी तदात में मतदान केन्द्र पहुँचे जितनी तादाद में ग्रामीणजन पहुँचे.

फिर इसके मायने निकाले क्या जाएं ? क्या इसका मतलब है कि भाजपा को छत्तीसगढ़ में मोदी लहर के बावजूद नुकसान हो रहा है. अगर नुकसान हो रहा है तो फिर कांग्रेस की बढ़त 2014 के मुकाबले कितनी हो सकती है ? भाजपा-कांग्रेस कार्यकर्ताओं, क्षेत्रवार पत्रकारों और आम मतदाताओं से मिले फीडबैक के मुताबिक और मतदान प्रतिशत तो यही बता रहे हैं कि इस बार छत्तीसगढ़ में आंकड़ा 9+2 = 11 का रह सकता है !  मतलब ग्रमीण मतदाताओं ने कांग्रेस का साथ दिया है तो यह साफ है कि कांग्रेस को 2014 के मुकाबले 8 सीटों का फायदा तो भाजपा को 2014 के मुकाबले 8 सीटों का नुकसान हो रहा है.

बीजेपी अगर अपनी सीट बचाने की स्थिति में नजर आ रही है तो वो बिलासपुर और जांजगीर. मतलब यही वो दो सीट है जहां से बीजेपी जीत रही है. जबकि कांग्रेस के खाते में शेष सभी सीट जा रही है. हालांकि इसमें दुर्ग और कांकेर की सीट पर कांटे की टक्कर है. फिलहाल आंकड़ें कितनी सटीक बैठती है, इसमें कितनी सच्चाई है इसका पता 23 मई को आने वाले परिणाम से चलेगा.