रायपुर-  बीजेपी पर आऱोप लग रहा है कि डा.भीमराव अंबेडकर की जयंती पर आय़ोजित कार्यक्रम के बहाने पार्टी वोट बैंक को साधने की कवायद कर रही है। छत्तीसगढ़ में अगले साल चुनाव है और चुनाव के ठीक पहले पार्टी की इस कवायद को चुनावी गणित से जोड़कर देखा जा रहा है। इधर बीजेपी का दलित प्यार फूटा, तो विरोधियों में हलचल भी तेज हो गई। पूछा गया कि दलित विरोधी चेहरे वाली पार्टी आज दलितों की बात कैसे कहने लगी? कांग्रेस का कहना है कि दलितों का सम्मान सही मायने में कांग्रेस ने किया है। आज बहस इस मुद्दे पर ही कि क्या बीजेपी का दलित कार्ड क्या चुनाव में पार्टी को फायदा दिलाएगा ? क्या बीजेपी दलित वोट बैंक के बूते चौथी दफे सरकार में काबिज हो सकेगी? ये सवाल मौजूदा वक्त में छत्तीसगढ़ में होने वाले 2018 विधानसभा चुनाव से पहले उठ खड़े हुए हैं।

वैसे सवाल यह भी है कि उत्तरप्रदेश के बाद अब बीजेपी का दलित दांव क्या छत्तीसगढ़ में भी देखने को मिलेगा? क्या आदिवासी जमीन पर दलित वोट की खेती की जा रही है ? अब यही सवाल छत्तीसगढ़ में राजनीतिक विद्धानों के दिमाग में तेजी से कौंध रहे हैं। इसके पीछे एक ठोस वजह भी है। देशभर में जिस तरह से बीजेपी ने डा.भीमराव अंबेडकर को भुनाने की जमकर कोशिश की, उसकी बानगी अब छत्तीसगढ़ में भी देखे जाने की खबर है। उत्तरप्रदेश में अंबेडकर के नाम पर राजनीतिक ध्रुवीकरण की तस्वीर दिखा चुकी बीजेपी छत्तीसगढ़ में भी इसी रास्ते कदम बढ़ाते दिख रही है। संविधान निर्माता भीमराम अंबेडकर को समर्पित करते हुए बीजेपी ने पार्टी के स्थापना दिवस यानी 6 अप्रैल से लेकर 14 अप्रैल तक छत्तीसगढ़ समेत देशभर में कार्यक्रम चलाया। पार्टी ने इस बीच शक्ति केंद्र सम्मेलन आयोजित किया। इन सम्मेलनों में उन बूथों पर खासतौर पर ध्यान दिया गया, जहां पार्टी को पिछले चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। बूथों में जाकर पार्टी ने ना केवल केंद्र और राज्य सरकार की उपलब्धियों का बखान किया, बल्कि पिछड़ा आयोग बनाए जाने और उसकी खूबियों का भी जिक्र बार-बार किया। ऐसे में कांग्रेस भी आश्चर्य कर रही है कि बीजेपी का दलित प्रेम कैसे उमड़ पड़ा। कांग्रेस अनुसूचित जाति प्रकोष्ठ के अध्यक्ष औऱ पूर्व विधायक शिव डहरिया ने कहा कि बीजेपी हमेशा से ही दलित विरोधी पार्टी रही है। दलितों को उठाने का काम हमेशा कांग्रेस ने किया है।
कांग्रेस के लगाए आऱोपों पर बीजेपी के पास सिर्फ यही जवाब है कि संविधान निर्माता अंबेडकर का पार्टी हमेशा से ही सम्मान करती रही है। बीजेपी का दावा है कि पार्टी हमेशा से ही पंडित दीनदयाल उपाध्याय के बताए अंत्योदय के रास्ते पर चलती आई है। ऐसे में दलित विरोधी कहना महज एक आरोप है। बीजेपी की दलील ये भी है कि पार्टी ने जाति की राजनीति नहीं की। राष्ट्रप्रेम के मूलमंत्र के साथ पार्टी ने हर वर्ग के विकास की कल्पना करते हुए देश को आगे बढ़ाने में अपनी भूमिका निभाई है। इधर अंबेडकर जयंती के मौके पर सूबे के मुखिया डा.रमन सिंह ने कहा कि आज हम देश संविधान निर्माता को याद कर रहे है। देश औऱ दुनिया बाबा की उन रास्तों में चलने का संकल्प लेता है। डा.रमन सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री ने अंबेडकर के नाम पर ही भीम एप लांच किया है, जो देश के विकास को एक नई दिशा देगी।
 
वैसे बीते 2013 चुनाव को याद करे तो बीजेपी को दलित याने सतनामी समाज के लिए आरक्षित 10 में 9 सीटें मिली थी। 2013 चुनाव में तब बीजेपी का दलित कार्ड हिस्सा गुरू बालकदास की अगुवाई वाली पार्टी सतनाम सेना रही। सतनाम सेना ने कई सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े किए जिसका सीधा फायदा बीजेपी को मिला और कांग्रेस की परंपरागत वोट बैंक को बड़ा नुकसान हुआ था।
 राजनीतिक विद्धान बताते हैं कि छत्तीसगढ़ में दलितों के प्रभाव वाली विधानसभा सीटों पर हमेशा से ही कांग्रेस का प्रभाव रहा है, लेकिन बीते चुनाव में बीजेपी को मिली बडी़ लीड ने सरकार बनाने में बडी़ भूमिका निभाई थी। मिशन 2018 को लक्ष्य बनाकर चल रही बीजेपी के सामने चौथी बार सरकार बनाने की सबसे बड़ी चुनौती है। ऐसे में पार्टी किसी भी मोर्चे पर कहीं कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती। यही वजह है कि बीजेपी दलितों के करीब आई है। लेकिन दलित क्या बीजेपी के संग बने रहेंगे इस पर फिलहाल संदेह बना हुआ है ?