कहते हैं विकास का पैमाना सड़कों से तय होता है, जहां सड़कें नहीं, वहां विकास का पहुंचना बेहद मुश्किल हो जाता है. छत्तीसगढ़ में भी करीब डेढ़ दशक पहले का हाल ऐसा ही था. सड़कें तो थी नहीं और पगडंडियों के बूते विकास पहुंचाने की बात बेमानी थी. विकास के वादे के साथ साल 2003 में सूबे में रमन सरकार आई. सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी कि आधारभूत संरचना खड़े करने की, लेकिन इन चुनौतियों के बीच दूरदृष्टि सोच वाले रमन ने विकास की नई इबारत लिखने की ठानी. लक्ष्य तय किया. विकास के पैर में पहिया लगाने का बीड़ा उठाया. रमन ने कहा विकास चाहिए, तो दूरदराज के गांवों को सड़कों से जोड़ना होगा. जैसा कहा-वैसा हुआ भी. कभी जो पगडंडियां विकास में बाधा बनी खड़ी थी, आज वहां चमचमाती सड़कें विकास का नया सफर तय कर रही हैं. ये सड़कें ही हैं, जिसने राज्य को विकास की दिशा में लंबी छलांग लगाने का मौका दिया है. ये सड़कें ही है, जो आज बस्तर में नक्सलवाद को मुंह चिढ़ाते खड़ी हैं. ये सड़कें ही हैं, जिसने अंदरूनी इलाकों के युवाओं को बेहतर भविष्य का रास्ता दिखाया है. यही वो सड़कें हैं, जिसने छत्तीसगढ़ को ‘विश्वसनीय छत्तीसगढ़’ बनाया है.

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साल 2000 में मध्यप्रदेश से अलग होकर जब छत्तीसगढ़ बना, तो विरासत में विकास की अधउजली कहानियां ही मिली, जो बताती थी कि जिस छत्तीसगढ़ ने अपने संसाधनों के बूते अरसे तक मध्यप्रदेश को सींचा था, वह छत्तीसगढ़ विकास की कोरी कल्पना का हकदार बना. शुरूआती तीन सालों में राजनीतिक अस्थिरता का शिकार रहे इस राज्य में बुनियादी अधोसंरचना खड़ा कर पाना भी मुमकिन न हो सका, लेकिन भविष्य हालात बदलने को आतुर था. साल 2003 में सत्ता की दहलीज पर बीजेपी सरकार चुनकर आई. सूबे के मुखिया डाॅ.रमन सिंह बने. डाॅक्टरी के पेशे से राजनीति में आए थे, लिहाजा उन्होंने प्रदेश की नब्ज बखूबी टटोली और उन्हें ये समझने में जरा भी वक्त नहीं लगा कि विकास की लंबी दौड़ का हिस्सा बनना है, तो इसकी शुरूआत सड़क क्रांति से करनी होगी. रमन ने प्रदेश में सड़कों के विकास की कार्ययोजना बनाई. सरगुजा से लेकर बस्तर तक, राजनांदगांव से लेकर जशपुर तक सड़कों का जाल बिछाए जाने का जो सिलसिला शुरू हुआ, डेढ़ दशक बाद ही यह जारी है. आज छत्तीसगढ के हर कोने में-हर हिस्से में चमचमाती सड़कें बिछी हुई है. सड़क बेहतर हुई, तो विकास सुदूर इलाकों तक पहुंचने लगा. हालात बदलते देर नहीं लगी. कभी दूसरे राज्यों को विकास की दौड़ दौड़ते दूर से देखने वाले छत्तीसगढ़ ने अपनी बनाई सड़कों पर ऐसी दौड़ लगाई कि विकसित राज्यों की सूची में शामिल हुआ.

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मुख्यमंत्री डाॅ.रमन सिंह ने अपनी प्राथमिकता में हमेशा से ही सड़क अधोसंरचना को पहले पायदान पर रखा. रमन कहते हैं कि- बेहतर सड़कें ही बेहतर विकास का रास्ता तय करती हैं, लिहाजा यही वजह रही कि सड़कें हमेशा से ही उनकी प्राथमिक योजनाओं में शामिल रही. रमन की पहली ही थी कि प्रदेश के दुर्गम इलाकों को भी बेहतर सड़कों से जोड़ा गया. पुल-पुलियां बनाकर विकास से कट से चुके इलाकों को जोड़कर नई तस्वीर सामने लाई. साल 2003 में लोक निर्माण विभाग का जो बजट महज 773 करोड़ रूपए था, वह आज बढ़कर करीब आठ हजार करोड़ रूपए तक पहुंच गया है.

नक्सलियों के मंसूबों पर फिर पानी

छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाकों में बनाई जा रही पक्की सड़कों से नक्सलियों को घेरने में सुरक्षाबलों को खासी सहूलियत मिल रही है. केंद्र में मोदी सरकार के काबिज होने के बाद राज्य के विकास के लिए खजाना खोल दिया गया. चार साल में सड़क परियोजनाओं के लिए मिले फंड का सही उपयोग कर रमन सरकार ने नक्सल प्रभावित जिलों में ही करीब 1600 किलोमीटर की सड़क बना ली है. नीति आयोग ने हाल ही में नक्सल प्रभावित इलाकों के लिए छह सौ किलोमीटर नई ग्रामीण सड़कों को भी मंजूरी दी है. आज धुर नक्सल प्रभावित इलाकों में न केवल अच्छी सड़कें बनी हैं, बल्कि इसके निर्माण का क्रम निरंतर जारी है.

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बस्तर में सुकमा जिले को नक्सलियों की राजधानी कहा जाता है, यहां के स्थानीय निवासियों को बुनियादी जरूरतों के लिए भी मोहताज होना पड़ता रहा है. सड़कें न होने की वजह से ग्रामीणों ने काफी कुछ झेला हैं. यहां के स्थानीय शिक्षिका बताती हैं कि सड़क निर्माण नहीं होने की वजह से हालात काफी दयनीय थे. लेकिन सड़क बन जाने के बाद जिंदगी में खुशहाली आ गई है. छात्र मनोज बताते हैं कि सड़कों के नहीं होने से जीवन प्रभावित होता था. गांव में कभी कोई बीमार हुआ, तो वक्त पर अस्पताल नहीं ले पाने की वजह से मौत भी हुई. लेकिन अब बेहतर सड़कें होने से वक्त पर अस्पताल पहुंचने में सहूलियत हो रही है. छात्र किरण मौर्य का कहना है कि सड़कों के नहीं होने से हम पिछड़ेपन का शिकार थे, लेकिन अब हालात बदल गए हैं. हमें सरकारी योजनाओं का लाभ भी जल्दी मिल जाता है. मुख्यमंत्री डाॅ.रमन सिंह का कहते हैं कि-

नक्सल क्षेत्रों में हमारे विजय का रास्ता हमारी सड़कें ही तय कर रही हैं. जहां-जहां सड़क जाएगी, विकास जाएगा. पिछले चार सालों में भारी नक्सल विरोध के बावजूद नक्सली इलाकों में 1320 किलोमीटर सड़कों का निर्माण पूरा किया गया है.

समग्र विकास के लिए मजबूत अधोसंरचना जरूरी

पीडब्ल्यूडी मंत्री राजेश मूणत कहते हैं कि राज्य के चहुंमुखी विकास के लिए मजबूत अधोसंरचना का होना बेहद जरूरी है. इसके मद्देनजर सरकार द्वारा छत्तीसगढ के दुर्गम वनांचल सहित गांव-गांव तक अधोसरंचना के निर्माण और इसके सुदृढ़ीकरण पर विशेष जोर दिया जा रहा है. राज्य गठन के समय विरासत में सड़क, भवन तथा पुल-पुलियों का कमजोर इंफ्रास्ट्रक्चर की समस्याएं मिली थी. इनमें वनांचल में नक्सली गतिविधियां भी बाधक थी. लोक निर्माण विभाग द्वारा इसे चुनौती के रूप में लिया गया. 15 सालों में सड़कों और भवनों तथा पुलों के निर्माण के क्षेत्र में तत्परतापूर्वक कार्य करते हुए विकास का परचम लहराया जा रहा है. छत्तीसगढ़ में सड़कों के विकास का महत्व प्रदेश तक ही सीमित न होकर अंतरराज्यीय आवागमन से भी संबंधित है. यहां खनिज संपदा की प्रचुरता के साथ-साथ पर्यटन स्थलों की भी उपलब्धता है. इसलिए राज्य में सुगम आवागमन की सुविधा के लिए पुल-पुलियों सहित सड़कों का जाल तेजी से फैलाया जा रहा है.

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आंकड़े एक नजर में-

  • वर्ष 2003-04 में पीडब्ल्यूडी विभाग का बजट 773 करोड़ रूपए का था, जो वर्ष 2016-17 में बढ़कर करीब आठ हजार करोड़ रूपए हो गया है. बजट में लगभग दस गुना बढ़ोतरी हुई है.
  • राज्य में बीते पंद्रह सालों में मार्गों की बेहतर कनेक्टिविटी स्थापित की गई है. इनमें श्रेणीवार वर्ष 2003 में राष्ट्रीय राजमार्ग 2225 किलोमीटर, राज्यमार्ग 3213 किलोमीटर, मुख्य जिला मार्ग 2118 किलोमीटर  और ग्रामीण मार्ग 28,768 किलोमीटर थी, जो वर्ष 2017 की स्थिति में राष्ट्रीय राजमार्ग 3222 किलोमीटर, राज्यमार्ग 4369 किलोमीटर, मुख्य जिला मार्ग 11, 338 किलोमीटर और ग्रामीण मार्ग 14,298 किलोमीटर हो गया है.
  • 995 नए पुलों का निर्माण कराया गया.
  • 6081 नवीन भवनों का निर्माण किया गया.
  • समस्त जिला मुख्यालय राष्ट्रीय राज्यमार्ग से जुड़ गए हैं.
  • प्रदेश में सभी ब्लॉक मुख्यालयों को 7 मीटर चौड़ी सड़कों से जोड़े जाने की व्यवस्था की गई है. इसके तहत 124 ब्लॉक मुख्यालय 7 मीटर चौड़ी सड़क से जोड़े जा चुके हैं. शेष को आगामी 1 वर्ष के भीतर जोड़े जाने का लक्ष्य है.
  • प्रदेश के सभी राष्ट्रीय राज्यमार्गों का निर्माण इस तकनीक से कराया गया है. जिस पर 80 से 100 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से वाहन चल सकें.
  • वर्तमान में समस्त राष्ट्रीय राजमार्गों की शहरी भागों में बायपास का निर्माण किया जा रहा है. जिसके अंतर्गत प्रदेश में राष्ट्रीय राजमार्गों पर 26 बायपास का निर्माण कार्य प्रगति पर है.
  • छत्तीसगढ़ में भारत माला योजनांतर्गत 410 किलोमीटर नये इकोनॉमिक कारीडोर के रुप में राष्ट्रीय राजमार्ग निर्मित करने का प्रावधान किया गया है. भारतमाला योजना के अंतर्गत रायपुर-दुर्ग मार्ग को 6 लेन बायपास निर्माण, रायपुर से विशाखापट्नम मार्ग तथा बिलासपुर-सीपत-उरगा-हाटी-पत्थलगांव मार्ग को 4 लेन निर्माण शामिल है.
  • रायपुर दुर्ग के मध्य 4 नए चौराहे, कुम्हारी, ट्रांसपोर्टनगर, चंद्रा मौर्या टाॅकीज तथा पावर हाउस चौक पर फ्लाईओव्हर का निर्माण कार्य प्रस्तावित है.
  • एनएचडीपी योजना अंतर्गत 1283 किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्गों का उन्नयन किया जा रहा है. जिसमें 405 किलोमीटर की सड़कें बनाई जा चुकी है.
  • प्रदेश में समस्त राष्ट्रीय राजमार्गों को एलडब्लूई योजना अंतर्गत 296 किलोमीटर सड़क को न्यूनतम 10 मीटर चौड़ीकृत मार्ग में निर्माण किया जा रहा है.
  • 1962 किलोमीटर के मार्गों को राजमार्गों के रुप में घोषित.
  • बस्तर जैसे सुदूरवर्ती क्षेत्र में 1890 किलोमीटर सड़कें बनाई गई है.
  • एमडब्ल्यूई योजना के अंतर्गत 1326 किलोमीटर सड़कें बनाई गई हैं.
  • राज्य मद से 39 हजार 961 किलोमीटर की सड़कों का उन्नयन किया गया है. (बीटी 32256 किलोमीटर, सीमेंट रोड 975 किलोमीटर, अन्य-6729 किलोमीटर).
  • राज्य में विभाग द्वारा 14 वर्ष की अवधि में कुल 995 पुलों का निर्माण किया गया. इसके अलावा वर्तमान में 181 पुल और बनाए जा रहे हैं.
  • 15 रेलवे ओव्हर ब्रिज और 4 रेलवे अंडर ब्रिज का निर्माण किया गया.
  • दो फ्लाई ओव्हर का निर्माण विधानसभा मार्ग तथा राजनांदगांव में बायपास मार्ग में किया गया.
  • बस्तर जैसे सुदूरवर्ती क्षेत्र में 138 नग पुल बनाए गए.
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छत्तीसगढ़ में सड़क के रास्ते विकास की रफ्तार और इस रफ्तार में प्रदेश की योजनाओं को मूर्त रूप देने के लिए भारत सरकार ने सेतु भारतम योजना अंतर्गत पांच रेलवे ओव्हर ब्रिज का निर्माण कार्य राष्ट्रीय राजमार्गों पर प्रगति/प्रस्तावित है. इसे वर्ष 2019 तक छत्तीसगढ़ के समस्त राष्ट्रीय राजमार्ग को लेबल क्रासिंग से मुक्त करने का लक्ष्य रखा गया है. कह सकते हैं. सड़क, पुल, रेल्वें क्रांसिंग पर ब्रिज निर्माण का जो काम बीते 15 साल में रमन सरकार ने किया है वह अपने आप में इतिहास रचने जैसा है. वास्तव में सरकार ने जैसा कहा, वैसा किया.

 

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