देश में महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए उन्हें पुरुषों के बराबरी का दर्जा देने की मांग उठते रही है. लोकसभा, विधानसभा सहित सभी सरकारी नौकरियों में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण दिए जाने को लेकर महिला बिल बनाया गया, लेकिन वह भी लोकसभा में लंबित पड़ा हुआ है. बरसों से उठ रही मांग आज भी संसद की दहलीज पर अधूरी पड़ी है. इस बीच कई सरकारें आई और गई लेकिन किसी ने भी इसकी सुध भी नहीं ली. वहीं छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह की सरकार ने महिलाओं को बराबरी का दर्जा देने की बात कही. उन्होंने जैसा कहा वैसा किया. रमन सरकार ने पंचायतों में महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत पद आरक्षित कर दिया. इसके साथ ही छत्तीसगढ़ देश का ऐसा पहला राज्य बना जहां महिलाओं को 50 प्रतिशत का आरक्षण दिया गया. इसी का नतीजा है कि सूबे की पंचायतों को आधे से ज्यादा महिलाएं संभाल रही हैं. यही नहीं वे बखूबी अपने सारे कार्यों को अंजाम देते हुए जन-जन तक विकास कार्य पहुंचा रही हैं. छत्तीसगढ़ के एक ऐसे ही जिले की कहानी हम आपको बताने जा रहे हैं जहां पंचायतों के भीतर सबसे ज्यादा महिलाएं चुनकर आई है चाहे वह जिला पंचायत हो या जनपद पंचायत हो और यह सब हुआ है उन्हें मिले आरक्षण की वजह से. जहां वे बेहतर तरीके से हर कार्य को अंजाम दे रही हैं.
चूल्हा फूंकती हुई. रोटी बनाती हुई. झाड़ू-पोंछा और घर का काम करती हुई. बच्चों का लालन-पालन करती हुई.. ऐसी न जाने कितनी तस्वीरें हैं जब महिलाओं की बात करते हैं तो जेहन में उभर कर सामने आती है. ये तस्वीरें ज्यादातर राज्यों की है. बदलते वक्त में महिलाआें का हर क्षेत्र में दखल बढ़ा है. पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर महिलाएं बराबरी से चल रही हैं. लेकिन जब बात महिलाओं को उनके अधिकार दिलाने की आती है तो वहां महिलाएं पिछड़ती सी दिखती हैं. खास तौर पर राजनीति में महिलाओं की स्थिति बेहद पिछड़ी हुई है. लेकिन छत्तीसगढ़ ने देश में अनूठी मिसाल पेश की. रमन ने महिला सशक्तिकरण की दिशा में बड़ा फैसला लिया. पंचायती राज अधिनियम में संशोधन कर महिलाओं के लिए पंचायतों में 50 प्रतिशत पद आरक्षित कर दिया गया. रमन सरकार के इस कदम के बाद सूबे की आधे से ज्यादा पंचायतों की बागडोर महिलाओं के हाथ आ गई. जहां महिलाएं पुरुषों से बेहतर काम कर देश भर में पहचानी जा रही हैं.
सूबे का बालोद जिला महिला सशक्तिकरण का सबसे अच्छा उदाहरण है. यहां जिला पंचायत में 14 सदस्यों में से 8 पर महिलाएं काबिज हैं. वहीं 6 पर पुरुष उम्मीदवार चुने गए हैं. यहां के पंचायत क्षेत्र क्रमांक 8 से बुधियारिन कुमेटी सदस्य निर्वाचित हुई हैं. इस क्षेत्र में 32 ग्राम पंचायतें आती हैं. इनके परिवार का राजनीतिक बैकग्राउंड रहा है. उन्हें आरक्षण का लाभ मिला और वे चुन कर आई. बुधियारिन इसके पहले डौण्डीलोहारा की जनपद अध्यक्ष भी रह चुकी हैं. जनपद अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने क्षेत्र में जो विकास कार्य किए उसका फायदा भी उन्हें मिला और वे जिला पंचायत सदस्य के रुप में चुनी गई. जिला पंचायत सदस्य बनने के बाद वे लगातार जिला पंचायत की हर कार्रवाई में आगे रहती हैं और जनहित के तमाम मुद्दों को सदन में रखती हैं. क्षेत्र में विकास के कार्य कराती हैं. बुधियारिन मानती हैं कि प्रदेश में महिलाओं के लिए सरकार द्वारा बेहतर कार्य किया जा रहा है. आदिवासी बहुल्य इस क्षेत्र में वे सशक्त महिला मानी जाती हैं. आज बुधियारिन का आत्म विश्वास इतना बढ़ गया है कि वे डौण्डीलोहारा विधानसभा क्षेत्र से टिकट के लिए अपनी उम्मीदवारी पेश की है.
जिला पंचायत बालोद के क्षेत्र क्रमांक 12 की सीट भी महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों में से एक सीट है. यहां से अनिता कुमेटी सदस्य निर्वाचित हुई हैं. क्षेत्र में इनकी राजनीतिक पकड़ बेहद मजबूत है. वे इस क्षेत्र से लगातार तीसरी बार निर्वाचित हुई हैं. सदस्य के तौर पर वे भी जिला पंचायत की हर गतिविधियों में सबसे आगे रहती हैं. उनका कहना है कि वह महिलाओं को राजनीतिक व सामाजिक क्षेत्र में संगठित करते हुए उनकी स्वास्थ्य व शिक्षा तथा आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाने प्रयासरत है. वर्तमान में ये डौण्डीलोहारा विधानसभा क्षेत्र के भाजपा की उम्मीदवार के रूप में अपनी दावेदारी पेश की है. अनिता कुमेटी ने एमए हिन्दी तक की शिक्षा ली है. रमन सरकार द्वारा दिए गए आरक्षण की बदौलत उनकी क्षेत्र की राजनीति में काफी मजबूत है. वे गोड़ समाज में काफी लोकप्रिय भी हैं. बालोद के पोड़कीभाट की रहने वाली सुशीला साहू महिला सशक्तिकरण का एक अच्छा उदाहरण हैं. सामान्य कृषक परिवार से आने वाली सुशीला जिला पंचायत के क्षेत्र क्रमांक 4 से निर्वाचित हुई हैं. इस क्षेत्र में 25 ग्राम पंचायतें आती हैं जिनका प्रतिनिधित्व वो कर रही हैं. सुशीला इसके पहले जनपद सदस्य भी रह चुकी हैं. इनके नेतृत्व में 2017 के बासिन सेवा सहकारी समिति का चुनाव में भाजपा को जीत दिलाई थी. क्षेत्र में सक्रिय रहते हुए खुद को विकास कार्य के लिए संकल्पित बताती हैं. वहीं उनके परिवार वालों को भी उन पर गर्व है. डामेश्वरी साहू को भी महिलाओं के लिए 50 फीसदी सीट आरक्षित होने का फायदा मिला वे गुरुर ब्लाक से जनपद अध्यक्ष निर्वाचित हुई हैं. इस क्षेत्र में 76 ग्राम पंचायतें आती हैं. इनके कुशल नेतृत्व क्षमता के बदौलत जनपद क्षेत्र में काफी विकास कार्य हुए है. मध्यमवर्गीय परिवार से आने वाली डामेश्वरी कौशल साहू 2018 के विधानसभा चुनाव में संजारी बालोद विधानसभा क्षेत्र से अपनी दावेदारी पेश की है. ग्राम परसुली निवासी जनपद अध्यक्ष का कहना है कि वर्तमान में राज्यशासन द्वारा पंचायती राज सहित अन्य क्षेत्रों में 50 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है लेकिन फिर भी महिलाए जागरूक नहीं है. आज के समाज में राज्य शासन द्वारा महिलाओंको पुरूषों के समकक्ष कार्यकरने का मौका दिया गया है. इसलिए मेरा लक्ष्य है कि मैअपने क्षेत्र के विकास में कोई कमी नहीं होने देना चाहती हूं एवं महिलाओं को जागरूक करके उनको आगे लाने प्रयासरत हूं.
मां कौशल्या की नगरी में सशक्त होती महिलाएं
ये तस्वीर माता कौशल्या की नगरी छत्तीसगढ़ की है. ये तस्वीर छत्तीसगढ़ महतारी की पावन धरा की है. ये तस्वीर संवेदनशील सरकार में महिलाओं के लिए किए जा रहे प्रयासों की है. ये तस्वीर महिलाओं के उत्थान की है. ये तस्वीर महिलाओं को मिले सम्मान की है. दरअसल संवेदनशील मुख्यमंत्री की संवेदनशीलता ही है कि उन्होंने प्रदेश की बालिकाओं और महिलाओं के सम्मान को संजोया, बुनियाद को मजबूत किया और प्रदेश के विकास में उनकी सहभागिता तय की. रमन सिंह मानते हैं कि प्रदेश को सशक्त बनाने में महिलाओं का सशक्त होना बेहद जरूरी है. लिहाजा रमन सरकार ने अपनी प्राथमिकताओं में बालिकाओं और महिलाओं को सर्वोपरी रखा. फिर चाहे वह पंचायतों के भीतर 50 प्रतिशत महिला आरक्षण की हो या फिर स्व-सहायता समूह के जरिए लाखों महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की. आज 56 प्रतिशत पंचायतों के भीतर महिलाएं निर्वाचित जन-प्रतिनिधि हैं. पंचायतों में महिला आरक्षण की बात आगे करेंगे. पहले आपको बताते हैं किस तरह से सरकार ने महिलाओं को आर्थिक रूप से सपन्न बनाकर उन्हें सशक्त कर रही हैं. मुख्यमंत्री डाॅ.रमन सिंह कहते हैं कि –
वक्त ने करवट बदली है, हालात बदले हैं, बदलते हालात ने तस्वीर बदली है. तस्वीर उस छत्तीसगढ़ की जो माता कौशल्या की जन्मभूमि है, जिसके चारों ओर मां महामाया, दंतेश्वरी, बमलेश्वरी जैसी आराध्या देवियां विद्यमान हैं. मातृत्व शक्ति के इस गढ़ ने संजो रखा है छत्तीसगढ़ को. यहां की महिलाएं आज सशक्त हैं, आत्मनिर्भर हैं.
महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में देश में बेजोड़ काम किया है. महिला उत्थान की दिशा में किए गए काम आज देश के भीतर मिसाल है. महिला संबल, तो प्रदेश अव्वल .इस मूलधारणा के साथ ही सूबे के मुखिया डॉ . रमन सिंह ने अपने कार्यकाल की शुरुआत की थी. बेहतर सोच का ही नतीजा है कि 15 साल के स्वर्णिम दिनों में महिलाओं को प्रदेश में बराबरी का सम्मान मिला है. छत्तीसगढ़ में महिला उत्थान की दिशा में सरकार ने सबसे बड़ा काम-काम स्व-सहायता समूह के माध्यम से किया है. यही वजह है कि महिला समूहों को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में देश भर में सबसे बढ़िया काम करने के लिए प्रदेश की दो महिलाओं को जिन्होंने महिला समूह के जरिए ही कामयाबी हासिल की है, उन्हें भारत सरकार ने पद्मश्री से नवाजा है. ये महिलाएं राजनांदगांव जिले की फूलबासन यादव और बालोद जिल की शमशाद बेगम. रमन सरकार की कारगार योजनाओं के बदौलत इन्होंने तमाम चुनौतियों के बीच खुद को न सिर्फ सशक्त बनाकर साबित किया, बल्कि अपनी तरह के हजारों महिलाओं को आज समूह के जरिए आत्मनिर्भर बनाने में लगी है. ऐसी ही आज हजारों-लाखों महिलाएं जो स्व-सहायता समूह से जुड़कर आज काम कर रही हैं. ऐसी ही कुछ महिलाओं से बीते दिनों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बातकर रमन सरकार की ओर से किए गए कार्यों की जमकर तारीफ की थी. सशक्त होते छत्तीसगढ़ की सशक्त नारी के लिए राज्य सरकार ने कई कदम उठाए हैं.
महिला सशक्तिकरण के लिए छत्तीसगढ़ ने देश में एक मिसाल के रूप में स्थापित हुआ है. बदलते छत्तीसगढ़ में महिलाओं की बदलती तस्वीरों को जानिए एक नजर में-
- महिलाओं को सशक्त बनाने में महिला स्व सहायता समूहों की विशेष भूमिका तय की.
- प्रदेश के 50 हजार आंगनबाड़ी केंद्रों में रेडी टू ईट बनाने और उसके वितरण का काम महिला स्व सहायता समूहों को दिया गया.
- स्कूलों में मध्यान्ह भोजन तथा आंगनबाड़ी केंद्रों में गर्म पका भोजन तैयार करने का सौ फीसदी काम स्व सहायता समूह कर रही हैं.
- प्रदेश के चार हजार से ज्यादा शासकीय उचित मूल्य की दुकानों का संचालन भी महिला स्व सहायता समूहों द्वारा किया जा रहा है.
- पंचायतों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने हेतु पंचायती राज संस्थानों में बढोतरी से महिलाओं में जागरूकता आई तथा ये अपने अधिकारों के प्रति सजग हुई है.
- महिलाएं आज आर्थिक रूप से बेहद मजबूत दिखाई देती है. महिलाओं को आर्थिक रूप से मजबूत बनाकर उन्हें सशक्त बनाया जा रहा है. महिलाओं का समूह आज हर क्षेत्र में काम कर रही हैं. महिला समूहों आज वे काम करने से पीछे नहीं हट रहीं है जिसे पुरुषों के एकाधिकार वाला माना जाता रहा है.
- छत्तीसगढ़ महिला कोष योजना में वर्ष 2003 से महिला स्वसहायता समूहों के लिए ऋण योजना शुरू की गई है.
- प्रारंभिक वर्ष में उन्हें सिर्फ पांच हजार रूपए का ऋण दिया जाता था. ब्याज दर 10 प्रतिशत थी.
- वर्ष 2004-05 में ऋण राशि बढ़ाकर पहली बार 10 हजार रूपए और दूसरी बार 20 हजार रूपए देने का प्रावधान किया गया.
- वर्ष 2006-07 में ब्याज दर 10 प्रतिशत से घटाकर 6.5 प्रतिशत कर दी गई.
- वर्ष 2009-10 में ऋण राशि बढ़ाकर पहली बार 25 हजार रूपए और दूसरी बार 50 हजार रूपए तक देने का प्रावधान किया गया.
- वर्तमान में वर्ष 2013-14 से उन्हें सिर्फ तीन प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज पर पहली बार 50 हजार रूपए और दूसरी बार में दो लाख रूपए तक ऋण सुविधा देने का प्रावधान किया गया.
- ब्याज दर 6.5 प्रतिशत से घटाकर सिर्फ तीन प्रतिशत कर दी गई। वर्ष 2003-04 से वर्ष 2016-17 में माह अक्टूबर 2016 तक तीस हजार 671 महिला समूहों को 60 करोड़ 90 लाख रूपए का ऋण दिया जा चुका है.
- रमन सरकार ने ने बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ का नारा दिया है. आज इसी नारे के साथ छत्तीसगढ़ में महिला साक्षरता का प्रतिशत लगातार बढ़ते जा रहा है. छत्तीसगढ़ देश का पहला राज्य है जहां लड़कियों को निःशुल्क शिक्षा कॉलेज स्तर तक दी जा रही है.
- साक्षरता के मामले में महिलाओं ने पुरुषों को पछाड़ा है. पुरुषों की साक्षरता 6 प्रतिशत बढ़ी है वहीं महिलाओं की साक्षरता 8 प्रतिशत बढ़ी है. प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में देखे तो सामुदायिक स्वास्थ्य स्वयंसेवी के रूप में 60 हजार मितानिन निःस्वार्थ भाव से समुदाय के स्वास्थ्य की बेहतरी के लिए काम कर रही हैं. यहां यह भी उल्लेखनीय है कि बिलासपुर में कई सिटी बस महिलाएं चला रही हैं.
- महिलाओं की सुरक्षा की बारी आई, तो देश में रमन सरकार ही थी, जिसने इसकी चिंता की. देश का पहला वन स्टॉप सेंटर सखी की स्थापना मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह की सोच का ही नतीजा रही. वन स्टॉप सेंटर सेंटर में हर वर्ग की महिलाओं को सहायता, मार्गदर्शन तथा संरक्षण प्रदान किया जा रहा है.
- सखी सेंटर में मदद के लिए टोल फ्री नंबर 181 भी जारी किया गया है. डॉ.सिंह ने कहा कि कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ छत्तीसगढ़ की महिलाएं बेहद जागरूक हैं। प्रदेश में वर्तमान में एक हजार पुरुषों के मुकाबले991 महिलाएं हैं, जो केरल के बाद दूसरे नंबर पर है।
वैसे बात नारी शक्ति के उस साहस की करे तो छत्तीसगढ़ के भीतर नशा मुक्ति अभियान के क्षेत्र में महिलाओं ने जन-जागरूकता को लेकर क्रांति ला दी है. नशा मुक्ति के क्षेत्र में भी छत्तीसगढ़ की महिलाएं काफी अच्छा काम कर रही हैं. इस काम के लिए यहां की महिलाएं भारत माता वाहिनी के रूप में संगठित हैं. वर्तमान में भारत माता वाहिनी प्रदेश के 17 जिलों के एक हजार 42 ग्राम पंचायतों में सक्रिय है. महिलाओं की जागरूकता और सक्रियता से राज्य के अनेक गांवों में शराब की दुकानें बंद हो चुकी हैं. यहां इस बात का उल्लेख करना जरूरी है कि भारत माता वाहिनी की महिलाएं नशाबंदी के साथ ही अवांछित कार्यों पर रोक लगाने के लिए गांवों में रात-रात को पहरा देती हैं. वहीं रमन सरकार ने महिलाओं के हक में दो बड़े फैसले लिए इसमें एक राशन कार्ड का मुखिया महिलाओं को तो बनाया है. दूसरा रजिस्ट्री में 2 प्रतिशत की छूट का आज महिलाएं पुरुषों के साथ कंधा से कंधा मिलाकर चल रही हैं. चाहे वह किसी भी क्षेत्र में हो. घर से लेकर बाहर तक हर कहीं महिलाओं का वर्चस्व बढ़ा है. समाज में, राजनीति में, प्रशासन में और यहां तक बेटियां अब आसमां में भी उड़ रही हैं. इसमें कोई दो राय नहीं कि छत्तीसगढ़ के भीतर में महिलाओं के उत्थान को लेकर जो काम हुआ है वह दूसरों राज्यों की तुलना में काफी अधिक है. रमन सरकार ने माताओं-बहनों और बेटियों से किया हुआ हर वादा निभाया है.
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