छत्तीसगढ़ एक ऐसा राज्य जिसकी एक बड़ी पहचान आज देश और दुनिया में नक्सल प्रभावित राज्य के रूप में है. लेकिन इसी छत्तीसगढ़ की एक पहचान नक्सल हिंसा के बीच देश और दुनिया में अब एजुकेशन हब के रूप में हो रही है. ये बदलाव उसी बस्तर से हो रहा है जो सबसे ज्यादा नक्सल प्रभावित इलाका है. उसी दंतेवाड़ा इस बदलाव का आगाज हुआ जहां सबसे अधिक नक्सल घटनाएं हुई है. ये बदलाव उसी इलाके ही बच्चों की देन जो नक्सल हिंसा के शिकार हुए है. बस्तर से बदलते छत्तीसगढ़ी की ये कहानी अटल बिहारी वाजपेयी एजुकेशन सिटी की. उस एजुकेशन सिटी की जहां राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री तक सब जा चुके हैं. जहां हर किसी के लिए लिए गौरव भरा होता है. आखिर ये बदलाव आया कैसे…कैसे नक्सल हिंसा के शिकार बच्चें आज तरक्की की राह पर है.. मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने शिक्षा के रास्ते नक्सलवाद को खत्म करने का जो वादा बस्तरवासियों से किया उसे उन्होंने पूरा भी किया. आज हमारी इस खास-पेसकश जैसा कहा, वैसा किया में कहानी जवांगा से शुरू एजुकेशन सिटी की.

ये नई सुबह…ये नया सवेरा….ये शांति की धुन….ये मद-मस्त बच्चें विधून….ये मधूर गीत…ये कर्णप्रिय संगीत….ये बदलाव…ये आगाज…उस इलाके की जो आज भी लाल आतंक की दंश को झेल रहा. ये उस इलाके की तस्वीर जहां नक्सलवाद की समस्या आज भी है. लेकिन इस समस्या को जड़ से खत्म करने की शुरुआत हो गई है. अब इस इलाके बच्चें शिक्षा के रास्ते नक्सलवाद को सीधी चुनौती दे रहे हैं. ये बस्तर के बच्चें है….ये बच्चें नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा, सुकमा, बीजापुर, जगदलपुर के हैं. इनमें सैकड़ों बच्चों ने अपने परिवार को खोया है. किसी ने मां…किसी बाप…किसी ने भाई …किसी बहन…लेकिन अब वे शिक्षा पाकर इस इलाके कुछ देना चाहते हैं. क्योंकि सरकार ने इन्हें इन हालातों से निकालने का रास्ता निकाला है. सरकार ने इन्हें देश में सबसे अच्छी शिक्षा देने एक नई शुरुआत की. इस आगाज का नाम एजुकेशन सिटी. जी हां साल 2013 में दंतेवाड़ा के जवांगा से देश के भीतर एक ऐसी शिक्षा व्यवस्था की शुरुआत जिन्होंने शिक्षण जगत में इतिहास रच दिया. आज इस व्यवस्था के मुरीद राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तक हैं. दोनों ही जवांगा के एजुकेशन सिटी आ चुके हैं और वे बार-बार यहां आना चाहते हैं. वे यहां कि उन नक्सल हिंसा के शिकार बच्चों से मिलना चाहते हैं जो आज अच्छी शिक्षा लेकर नक्सलवाद को खत्म करने के लिए तैयार हो रहे हैं.

दंतेवाड़ा के जवांगा एजुकेशन सिटी में शिक्षा व्यवस्था के साथ-साथ खेल और संगीत से जुड़ी भी शिक्षा दी जाती है. इसके साथ-साथ बच्चों को आधुनिक तकनीक के साथ तैयार किया जा रहा है. जिससे वे देश में किसी भी शैक्षेणिक की शिक्षा से वे दूर न रहे. इस एजुकेशन सिटी में 17 संस्थाओं के साथ एक विराट परिसर है. परिसर के अंदर सारी सुविधाएं मौजूद हैं. यह पूरी तरह से आवासीय विद्यालय हैं. दिव्यांग बच्चों के लिए दो सक्षम संस्थाएं भी संचालित है. इसके साथ आस्था संस्थान भी है.

ये हैं इस एजुकेशन सिटी की खासियत


  • एजुकेशन सिटी 120 एकड़ के कैंपस में मौजूद है. एनएमडीसी-डीएवी पॉलिटेक्निक के अलावा कैंपस में 14 अलग-अलग संस्थान हैं.
  • इनमें औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानडिग्री कॉलेज,स्पोर्ट्स अकैडमीसीबीएसई और राज्य बोर्ड के स्कूलदिव्यांग बच्चों के लिए दो आवासीय स्कूललड़कों और लड़कियों के लिए हॉस्टल और 800 सीटों वालों ऑडिटोरियम भी शामिल हैं.
  • संबंधित अधिकारियों ने बताया कि इस कैंपस में 7,000 छात्र-छात्राओं को हॉस्टल सुविधाओं से लैस शिक्षा मिल सकती है.

इसी तरह दंतेवाड़ा के बाद सुकमा में भी एक भव्य एजुकेशन सिटी बनाया गया है. इसके बाद इसी साल मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह राजधानी रायपुर के सड्डू में 18 एकड़ में बन रही एजुकेशन सिटी में करीब 40 करोड़ रूपए के विकास कार्यो का लोकार्पण एवं भूमिपूजन किया था. एजुकेशन सिटी में 400 सीटर का छात्रावास बनकर तैयार हो गया है। भविष्य में इस कैम्पस में एक हजार छात्रों के अध्ययन की व्यवस्था सुनिश्चित होगी. इस शैक्षणिक परिसर में एक हजार सीटर क्षमता वाले ऑडिटोरियम का निर्माण भी किया जा रहा है. जहां बच्चों के लिए विभिन्न सांस्कृतिक और साहित्यिक कार्यक्रम आयोजित हो सकेंगे. प्रयास विद्यालय में छात्रों को अध्ययन के लिए बेहतर माहौल प्रदान करने के लिए जिला खनिज न्यास निधि से अत्याधुनिक सुविधाओं को भी विकसित किया गया है. यहां सेवन जेनेरेषन के 65 आधुनिक कम्प्यूटर से युक्त एक सुसज्जित लैब बनायी गई है जहां लीजलाईन के अलावा आरएफ से भी स्ट्रांग इंटरनेट की कनेक्टिविटी सुनिष्चित की गई है. इसे आई टी सेन्टर के रूप में विकसित किया जा रहा है. इंटरनेट व इंटेरेक्टिव बोर्ड युक्त सभी क्लासों को स्मार्ट क्लास बनाया गया है जहां छात्र आधुनिक तरीके से पाठ्यक्रम का अध्ययन कर सकेंगे. इसके अलावा पूरे विद्यालय भवन को महापुरूष की फोटो उनके विचारों और सिद्धातों से कलरफूल बनाया गया ताकि बच्चें प्रतिदिन इन्हें देखकर मोटिवेट हो सकें और उन्हें अध्ययन के लिए बेहतर वातावरण मुहैया हो सके. विद्यालय परिसर में खेल सुविधाओं के लिए बैडमिंटन, बास्केटबॉल और व्हॉलीबॉल कोर्ट भी बनाया गया है। छात्रों के लिए ओपन एयर जिम के साथ ही बाहर कैम्पस में बैठकर पढ़ने के लिए गजिबों का निर्माण किया गया है. पूरे परिसर में पाथवे का निर्माण जहां छात्र वाकिंग-जागिंग कर सकेंगे। प्रकाष के लिए पूरे कैम्पस में स्ट्रीट लाईट लगायी गई है. इस एजुकेषन सिटी में 500सीटर प्रयास विद्यालय के अलावा 300 सीटर पोस्ट मैट्रिक अनुसूचित जनजाति कन्या छात्रावास, 50 सीटर अनुसूचित अनुसूचित जाति कन्या छात्रावास तथा अल्पसंख्यक छात्राओं के लिए 50 सीटर हॉस्टल का निर्माण भी किया जा रहा है. पूरे परिसर को हरा-भरा ऑक्सीजोन के रूप में विकसित करने विभिन्न प्रजातियों के पौधों का रोपण किया गया है.

मोदी और राष्ट्रपति कोविंद ने भी की थी बच्चों की तारीफ

यही वजह है कि आज इस एजुकेशन सिटी को देखने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी जवांगा आते हैं. दंतेवाड़ा के जवांगा स्थित एजुकेशन सिटी का नाम देश भर में हैं. साल 2015 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस एजुकेशन सिटी में आए थे. उन्होंने नक्सल हिंसा के शिकार बच्चों को दी जा रही शिक्षा व्यवस्था की खूब तारीफ की थी. उन्होंने इस दौरान एजुकेशन सिटी में पढ़ रहे बच्चों से काफी देर तक बातचीत की थी. उन्होंने बच्चों के सवालों का जवाब भी दिया था.

इसके बाद साल 2018 में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद छत्तीसगढ़ के दौरे पर आए. वे दो दिनों तक बस्तर में रहे. इस दौरान राष्ट्रपति एजुकेशन सिटी जवांगा भी पहुँचे यहां उन्होंने यहां के बच्चों से मुलाकात से काफी देर मुलाकात और बात की थी. वास्तव में जिस तरह से दंतेवाड़ा के भीतर नक्सल हिंसा के शिकार बच्चों को शिक्षा दी जा रही है फिर चाहे वह एजुकेशन सिटी के जरिए हो या फिर प्रयास के जरिए. इससे आज बस्तर बदल रहा है. बस्तर की बदलती हुई तस्वीर आज नया छत्तीसगढ़ को गढ़ रहा है. आखिर कैसे नया छत्तीसगढ़ गढ़ा जा रहा ये हम आगे आपको नक्सल हिंसा के शिकार उन आदिवासी बच्चों के जरिए ही दिखाएंगे जो कि एजुकेशन सिटी में ही पढ़ रहे है.

 

नक्सली हिंसा की वजह से दंतेवाड़ा का नाम देश भर में जाना और पहचाना जाता है. यहां हिंसा के निशान, निर्दोषों के खून के छींटों से रंगी सड़कें और फिज़ा में घुली बारुद की महक, फोर्स द्वारा बनाए गए मोर्चे पाइंट. ऐसा लगता है कि यह किसी जंग के मैदान की तस्वीर है. लेकिन अब धीरे-धीरे दंतेवाड़ा की तस्वीरें बदलनी शुरु हो गई है. तस्वीर के साथ ही तकदीर बदलने की शुरुआत हो गई है. और यह सब हुआ है मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह की उस सोच की बदौलत जिसमें उन्होंने हिंसाग्रस्त क्षेत्र के बच्चों के हाथों में बंदूक की जगह कलम देने की बात कही थी. डॉ रमन ने जैसा कहा वैसा किया. आज दंतेवाड़ा की पहचान देश के अलावा विदेशों में एजुकेशन हब के रुप में स्थापित होती जा रही है. नक्सलगढ़ के एजुकेशन हब में पढ़ रहे ऐसे बच्चों को जो हिंसाग्रस्त थे और एजुकेशन हब ने कैसे उन्हें संवारने में लगा हुआ है.

जहां गोलियों की गूंज और बारुद की गंध की महक फैली थी. जिस बस्तर संभाग में नक्सली बेखौफ तांडव मचाते रहे, निर्दोष लोगों की हत्या करते रहे. मासूम हाथों से नक्सली कलम छीनकर हथियार पकड़ा रहे थे. जहां अक्षरों की इबारत की जगह उन्हें हथियार चलाने की ट्रेनिंग दी जाती थी. किसी ने सोचा भी नहीं था कि दशकों से माओवादी हिंसा ग्रस्त उस बस्तर की तस्वीरें भी कभी बदलेंगी. नन्हे हाथ कभी कलम थाम पाएंगे. उसी नक्सलगढ़ के एक हिस्सा दंतेवाड़ा के गीदम स्थित जवांगा में रमन सरकार ने एक ऐसी एजुकेशन हब का निर्माण शुरु किया. जिसका नाम पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के नाम पर रखा गया है. इस एजुकेशन सिटी में इंग्लिश मीडियम स्कूल आस्था विद्या मंदिर भी खोला गया है. जहां हिंसा से ग्रस्त बच्चों के मस्तिष्क से हिंसा की उन तस्वीरों को मिटाकर उन्हें सक्षम बनने का ख्वाब पूरा करने का प्रण था. दंतेवाड़ा के उस जवांगा की ख्याति ने पीएम मोदी और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को भी आने को मजबूर कर दिया. यहां पढ़ने वाले बच्चे नक्सली हिंसा से ग्रस्त हैं.

 

नक्सलियों ने पिता की कर दी थी हत्या, बेटी आईएएस बन कर क्षेत्र की करना चाहती है सेवा

धुर नक्सल इलाका सुकमा की रहने वाली इंदु मानिकपुरी केरलापाल की रहने वाली हैं. इनके पिता ठेकेदार थे और नक्सलियों ने उनके पिता की हत्या उस वक्त कर दी थी जब इंदु महज 2 वर्ष की थी. छोटी सी उम्र में नक्सली हिंसा से पिता को खो चुकी इंदु इसी एजुकेशन हब में आज पढ़ाई कर रही हैं. यहां दाखिले के बाद इंदु का जीवन पूरी तरह से बदल गया है. मन में एक सकारात्मक सोच के साथ मिल रही शिक्षा ने इंदु को एक दिशा दे दी है. इंदू कहती हैं जो जिस फील्ड में जाना चाहता है उसका यहां से सपना पूरा होगा, यहां सबकुछ सिखाया जा रहा है. शायद गांव में रहती तो मैं भी मजदूरी कर रही होती. पढ़ लिख कर कामयाब हो जाउंगी. इंदू का सपना आईएएस अधिकारी बनकर इसी आदिवासी अंचल में विकास और लोगों की सेवा करने का है. जहां इंदू अपने ख्वाब को सच करने में जुटी हुई है.

नक्सल हिंसा की शिकार बनी नेशनल प्लेयर

इंदू की तरह ही यहां और कई लड़किया हैं जिनके सिर से नक्सलियों ने उनके माता-पिता का साया छीन लिया. आज उन सारी बच्चों को एक नई दिशा मिल गई है. इसी विद्यालय में उषा कड़ती भी पढ़ाई करती हैं. ऊषा भी घोर नक्सल इलाके मिरतुल से आती हैं. उनके पिता गांव के सरपंच थे और उनकी हत्या भी नक्सलियों ने बेहद निर्मम तरीके से कर दी थी जब वह छोटी थीं. इस स्कूल में दाखिला मिलने के बाद ऊषा की रुचि खेल के क्षेत्र में आगे बढ़ने की थी. उन्हें स्कूल में भरपूर प्रोत्साहन मिला और आज वे नेशनल प्लेयर हैं क्रिकेट की. नक्सली हिंसा से ग्रस्त इस बेटी को हौसला देने का काम इसी स्कूल ने किया. जिसका नतीजा है कि आज वे नेशनल प्लेयर हैं. उषा बताती हैं कि स्कूल में स्मार्ट क्लास के माध्यम से पढ़ाई कराई जाती है.

संगीत-चित्रकारी के साथ ही आधुनिक विज्ञान की दी जाती है शिक्षा

इस  अटल बिहारी वाजपेयी एजुकेशन सीटी में बच्चों को हर तरह की शिक्षा दी जाती है और उनके भीतर की प्रतिभा को बाहर निखारा जाता है. जिन छात्रों की रुचि संगीत की शिक्षा में है उन्हें संगीत की शिक्षा दी जाती है. इन बच्चों को आधुनिक संगीत के वाद्य यंत्र भी बजाना सिखाया जाता है. अब बच्चे आक्टोपेड, कांगो, तबला,  आर्गन अच्छे से बजाना सीख गए हैं. वहीं जिन बच्चों का चित्रकारी में इंट्रेस्ट है उन्हें चित्रकारी की बारीकी सिखाई जाती है. इसके अलावा यहां स्मार्ट क्लास के माध्यम से पढ़ाई कराई जाती है जहां बच्चों को प्रोजेक्टर के माध्यम से पढ़ाया जाता है. स्कूल में आधुनिक विज्ञान लैब, लायब्रेरी, कंप्यूटर लैब मौजूद है जहां पढ़ने वाले बच्चे आधुनिकतम शिक्षा ले रहे हैं. इस विद्यालय परिसर में विज्ञान की एक अत्याधुनिक प्रयोगशाला है. यहां पढ़ने वाले छात्रों को विज्ञान के साथ तकनीक की भी शिक्षा दी जाती है. अभी हाल में ही देश राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की तस्वीर भी बच्चो ने भेंट की थी. दुधिरास के रहने वाला प्रकाश मरकाम का कहना है कि स्कूल में सभी सुविधा मौजूद है. यहां अच्छे से पढ़ाई कराई जाती है. जब भी अपने गांव दुधिरास जाता हूँ तो सभी लोग मुझसे मिलने आते है मुझे यह देखकर बहुत अच्छा लगता है. वहीं छात्र मोहित का कहना है कि यहां कि अत्याधुनिक विज्ञान की प्रयोगशाला में सभी तरह के उपकरण मौजूद है. वह किसी की भी 3 डी पिक्चर बनाने में सक्षम है.

आईआईटी और मेडिकल में मिला एडमिशन

यहां रहकर पढ़ने वाले बच्चों को सारी सुविधाएं व शिक्षा सरकार द्वारा निशुल्क दिया जा रहा है. स्कूल के प्राचार्य बताते हैं कि वंचित बच्चों को यहां पढ़ाई कराई जाती है. यहां बच्चों के नर्सरी से लेकर ग्रजुएशन तक की गुणवत्ता युक्त पढ़ाई कराई जा रही है. दिव्यांगों के लिए भी अलग से यहां क्लासेस है जहां उन्हें पढ़ाई कराई जाती है. प्राचार्य के मुताबिक यहां के बच्चे आईआईटी, इंजीनियरिंग और मेडिकल में भी पढ़ाई कर रहे हैं. उनका कहना है कि यहां से पढ़ाई करने वाले बच्चे इन क्षेत्रों की दशा और दिशा जरुर बदलेंगे.

निश्चित रुप से जवांगा स्थित इस एजुकेशन सिटी में दी जाने वाली शिक्षा से बच्चों के मन मस्तिस्क से हिंसा की काली तस्वीर मिट जाएंगी और यहां पढ़ने वाले बच्चे नए बस्तर हिंसा मुक्त बस्तर और विकसित बस्तर के निर्माण करने में कामयाब होंगे. व उनके कामयाबी की लिखी इबारत को एक दिन दुनिया सलाम करेगी.

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