एक वक्त था, जब छत्तीसगढ़ के किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें उभरी होती थी. तेज धड़कनों के बीच किसानों का मायूस चेहरा ये बताने के लिए काफी होता था कि उसके जेहन में एक डर छिपा है. डर ऐसा की बुनियाद तक हिलाकर रख दे. ये डर था, बैंकों से लिया गया, वो कर्जा जिसकी बदौलत किसान खेती कर दो जून की रोटी जुटाता. फसल का वास्तविक दाम मिला तो ठीक, लेकिन यदि मौसम की मार फसलों पर पड़ी, तो क्या होगा ? बैंक का ब्याज कैसे भरा जाएगा? घर की जिम्मेदारी कैसे पूरी की जाएगी? ये चिंता हर वक्त बनी रहती. संघर्षों के बीच कट रही किसानों की जिंदगी में एक बड़ा बदलाव आया. ये साल था 2003-04 का, जब सूबे के मुखिया डाॅ.रमन सिंह ने किसानों की सबसे बड़ी पीड़ा को करीब से महसूस किया. यही वो दौर था, जिसने मायूस किसानों के चेहरे से मायूसी छिनी थी. यही वो दौर था जिसमें किसानों ने खिलखिलाना सीखा था. रमन ने किसानों की तकलीफों को दूर करने का जो वादा किया था, उसे पूरा भी किया.
आज हालात बदल गए हैं. आज प्रदेश का किसान खुशहाल हैं. किसान खुशहाल हुआ, तो पिछड़ा राज्य कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ ने कृषि के क्षेत्र में हासिल उपलब्धियों से देश के विकसित राज्यों को पछाड़ दिया. छत्तीसगढ़ की 80 प्रतिशत जनसंख्या का जीवन यापन खेती और खेती से जुड़े अन्य रोजगार मूलक काम-धंधों से जुड़ा हुआ है, लिहाजा रमन सरकार बनने के बाद छत्तीसगढ़ में किसानों और खेतिहर मजदूरों की खुशहाली के लिए खेती-किसानी को फायदेमंद बनाने के लिए ठोस रणनीति बनाई गई. राज्य सरकार की कृषि विकास योजनाओं और कार्यक्रमों के फलस्वरूप छत्तीसगढ़ में कृषि विकास दर राष्ट्रीय कृषि विकास दर से भी आगे बढ़ गया. खेती-किसानी की लागत को कम करने के लिए अनेक लाभकारी योजनाएं रमन सरकार ने शुरू की. प्रदेश में किसानों का सबसे बड़ा फायदा हुआ ब्याज मुक्त ऋण के जरिए. किसानों के हित के चिंतक मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह का कहना है कि-
राज्य के 11 लाख किसानों को ब्याज मुक्त ऋण मिलने से छत्तीसगढ़ में किसानों की अर्थव्यवस्था ने ऊंची छलांग लगाई है. किसानों को पहले खेती के लिए 14 प्रतिशत ब्याज पर ऋण लेना पड़ता था. इसके साथ ही ऊंची दर होने के कारण वे ब्याज पटाने के चक्कर में परेशान रहते थे और डिफाल्टर होने से उनकी प्रगति रूक जाती थी. मंहगे कर्ज के दुष्चक्र को हमने तोड़ दिया है. हमने लगातार ब्याज दर कम की है और अब किसानों को बिना ब्याज के अल्पकालीन कृषि ऋण दे रहे हैं, जिसका लाभ हर साल 11 लाख किसानों को मिल है. राज्य में किसान पहले सिर्फ 150 करोड़ रूपए का ही ऋण लेते थे, लेकिन आज ब्याज मुक्त ऋण मिलने के बाद धीरे-धीरे परिवर्तन आया है. आज हमारे किसान तीन हजार करोड़ रूपए से अधिक कृषि ऋण ले रहे हैं. किसानों द्वारा बीस गुना अधिक ऋण लेने से उनके उत्पादन का मूल्य भी कई गुना बढ़ा है.
बंधुआ मजदूर बनना अब किस्से कहानियों की बात हो गई
शून्य फीसदी ब्याज दर होने से किसानों की दशा और दिशा दोनों बदली है. मुंगेली जिले के किसान बलराम सिंह कहते हैं कि शून्य फीसदी ब्याज दर होने से गांवों में बाढ़ी प्रथा बंद हो गयी. पहले गरीब किसान अपनी जरूरत के समय बड़े किसानों से उधारी में खाद-बीज लेता था और उसे अगले सीजन में दोगुना चुकाता था. यानि कि इस प्रथा में सौ फीसदी से ज्यादा ब्याज गरीब किसानों को चुकाना पड़ता था. इतना ही नहीं बाढ़ी नहीं चुका पाने के कारण ज्यादातर किसान बंधुआ मजदूर बनने को मजबूर हो जाते थे. लेकिन अब ये किस्से कहानी की बात हो गई है. अब सरकार द्वारा शून्य फीसदी ब्याज पर ऋण मुहैया होने से हर किसान इसका फायदा ले रहा है और सूदखोरों के चंगुल से गरीब किसानों को मुक्ति मिल गई है. किसान रामशरण यादव बताते हैं कि आज से 15 साल पहले मैं कर्ज से लदा था और कर्ज चुकाने के लिये मुझे अपना दो एकड खेत बेचना पड़ा था. लेकिन जब से छत्तीसगढ की रमन सरकार ने शून्य फीसदी ब्याज में लोन देना शुरु किया है, तब से हम गरीब किसानों को बहुत सहुलियत हो गई है. अब हम अपनी पर्ची ले जाकर सोसाईटी जाते हैं और वहां हमें दोनों तरह का लोन मिल जाता है.यानि कि खाद-बीज के रुप में लोन और कृषि के दूसरे कार्यों के लिये नकद लोन भी.
अनाज उत्पादन में ढाई गुना वृद्धि
किसानों को उनका हक मिला, तो छत्तीसगढ़ कृषि उत्पादन में दिनोंदिन तरक्की करता चला गया. दो दफे राज्य ने कृषि कर्मण पुरस्कार भी हासिल किए. कृषि मंत्री बृजमोहन अग्रवाल कहते हैं कि राज्य गठन के बाद छत्तीसगढ़ में अनाज का उत्पादन दोगुना और उत्पादकता ढाई गुना तक बढ़ गई है. बीते 15 सालों में छत्तीसगढ़ में चावल उत्पादन में 39 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है, जबकि इसी अवधि में चावल उत्पादन में राष्ट्रीय स्तर पर दो प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई. बृजमोहन अग्रवाल का कहना है कि छत्तीसगढ़ में वर्ष 2016-17 में छत्तीसगढ़ में खाद्यान उत्पादन 9.32 लाख टन रहा, जो पिछले पांच साल के दौरान औसत पैदावार से करीब 2 लाख टन अधिक है. यानी पिछले 5 वर्षों की औसत उपज से यह बढ़ोत्तरी 26.68 प्रतिशत अधिक रही है. छत्तीसगढ़ मे कुल अनाज पैदावार में मक्का में भी खास वृद्धि दर्ज की गई. वर्ष 2015 में राज्य में मक्के की उपज 1.6 लाख टन हुई थी जो 2016 में बढ़कर 1.89 लाख टन हो गई. पिछले 15 वर्षों में चावल में 48 प्रतिंशत, गेहू में 148 प्रतिशत, कुल अनाज में 60 प्रतिशत, दलहन में 43 प्रतिशत, तिलहन में 158 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. कृषि मंत्री का कहना है कि राज्य सरकार ने किसानों को जीरो प्रतिशत ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराने की व्यवस्था की है और प्रति वर्ष लगभग 4 हजार करोड़ रुपये का ऋण किसानों को उपलब्ध कराया गया है. उन्होंने कहा कि किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य दिलवाने के लिए प्रदेश की 14 मंडियों को राष्ट्रीय कृषि बाजार (ई-नाम पोर्टल) से जोड़ा गया है. इस पोर्टल के माध्य से प्रतिवर्ष लगभग 300 करोड़ रुपये के कृषि उपज का क्रय-विक्रय हो रहा है. बृजमोहन अग्रवाल ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों की आय 2022 तक दुगना करने का लक्ष्य दिया है. इस लक्ष्य को शीघ्रता से प्राप्त करने के लिए राज्य सरकार प्रयास कर रही है. हम गांव, गरीब और किसानों के विकास के लिए सरकार पूरी निष्ठा के साथ काम कर रही है.
शून्य फीसदी ब्याज दर पर ऋण किसानों को उपलब्ध कराने के मायने
वर्ष 2003-04 में लगभग 4.75 लाख किसानों को 243 करोड़ रुपए का कृषि ऋण दिया जाता था, आज प्रदेश में किसान चार हजार करोड़ रूपए का ऋण ले रहे हैं.
वर्ष 2003-04 में लगभग 14 प्रतिशत की ब्याज दर पर कृषि ऋण मिलता था, लेकिन अब ब्याज दर अब घटकर शून्य प्रतिशत हो गयी है.
वर्ष 2003-04 में लगभग 3.50 लाख किसानों के क्रेडिट कार्ड बने, जो बढ़कर तीस लाख से ज्यादा हो गए हैं.
वर्ष 2003-04 में प्रति हेक्टेयर किसानों को लगभग सात से आठ हजार रुपए का ऋण मिलता था, वर्तमान में प्रति हेक्टेयर किसानों को 34 से 37 हजार रुपए ऋण मिल रहा है.
किसानों को दिए जा रहे कृषि ऋण में 40 प्रतिशत सामग्री के रूप में और 60 प्रतिशत नगद राशि के रूप में प्रदान करने की व्यवस्था से भी किसानों को कृषि कार्यो में सुविधा हुई है.
ब्याज मुक्त ऋण पाकर प्रदेश के किसानों के चेहरे अब खिलखिला उठे हैं. किसान बगैर किसी डर निश्चिंत होकर सरकार की शून्य ब्याज दर पर कृषि ऋण ले रहा है. किसानों को उनकी फसल का वास्तविक लाभ भी सरकार दे रही है. यही वजह है कि राज्य के किसान खुले दिन से रमन सरकार की योजनाओं को सराह रहे हैं. मुमकिन था कि किसानों की हालत की सुध पहले भी ली जा सकती थी. लेकिन इस पीड़ा को बखूबी किसी ने समझा तो संवेदनशील कहे जाने वाले मुख्यमंत्री डा.रमन सिंह ने. किसानों के बीच डा.रमन सिंह की लोकप्रियता ही थी कि कृषक समाज ने नय़ा नाम दिया- चाऊर वाले बाबा.