रायपुर। अभी तक हम लैला-मजनूं, शिरी-फरहाद, रोमियो-जूलियट की प्रेम कहानियों को ही देखे और सुने हैं. जिन्होंने अपने प्रेम के लिए खुद को कुर्बान कर दिया. एक तरह से ये प्रेमी युगलों के लिए एक आदर्श और प्रेरणा रहे हैं लेकिन इन सबके बीच हम बस्तर अंचल में भी ऐसी ही एक प्रेमी युगल झिटकू-मिटकी हुए . लेकिन आदिवासी अंचल के इस प्रेमी युगल के बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं. बस्तर की वादियों में इस प्रेमी जोड़े की अमर प्रेम कथा पीढ़ी दर पीढ़ी गूंज रही है.
सदियों बाद इन प्रेमी युगल को अब पूरा देश जानने लगेगा. इनकी प्रेम कहानी की दिल्ली में गूंजेगी. बस्तर के इस प्रेमी युगल की प्रतिमा राष्ट्रपति भवन की शोभा बढ़ाने जा रही है. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की बस्तर यात्रा के दौरान मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने बस्तर के इस प्रेमी युगल की प्रतिमा राष्ट्रपति को भेंट की. बस्तर की घड़वा शिल्पकला पर निर्मित 40-40 किलो वजनी इस बेलमेटल को छत्तीसगढ़ हस्तशिल्प विकास बोर्ड ने स्थानीय कलाकारों से तैयार करवाया है.
कौन हैं झिटकू-मिटकी
इिटकू मिटकी की जोड़े को बस्तर में देवी देवताओं की तरह पूजा जाता है. इन्हें प्रेम के देवी-देवता की तरह पूजा जाता है. यहां के युवा इनकी कसमें खाते हैं मान्यता है कि इनकी पूजा करने से प्यार अधूरा नहीं रहता. लिहाजा हर बस्तरिया युवा-युवती इनकी पूजा करते हैं ताकि इनका प्रेम परवान चढ़ सके.

झिटकू और मिटकी की यह पुरानी अमर प्रेमगाथा बस्तर जिले के विकासखंड विश्रामपुरी के पेंड्रावन गांव की है. इसके अनुसार गोंड आदिवासी का एक किसान पेंड्रावन में निवास करता था. उसके सात लड़के और मिटकी नाम की एक लड़की थी. सात भाइयों में अकेली बहन होने के कारण वह भाइयों की बहुत प्यारी और दुलारी थी.

मिटकी के भाई इस बात से सदैव चिंतित रहते थे कि उनकी प्यारी बहन जब अपने पति के घर चली जाएगी तो वे उसके बिना नहीं रह पाएंगेइस कारण भाइयों ने एक ऐसे व्यक्ति की तलाश शुरू की जो शादी के बाद भी उनके घर पर रह सके. वर के रूप में उन्हें झिटकू मिलाजो भाइयों के साथ काम में हाथ बंटाकर उसी घर में रहने को तैयार हो गया.

गांव के समीप एक नाला बहता थाजहां सातों भाई और झिटकू पानी की धारा को रोकने के लिए छोटा-सा बांध बनाने के प्रयास में लगे थे. दिन में वे लोग बांध बनाते थे और शाम को घर चले जाते थेलेकिन हर रात पानी बांध की मिट्टी को तोड़ देता और उनका प्रयास व्यर्थ हो जाता था. एक रात एक भाई ने स्वप्न में देखा कि इस कार्य को पूर्ण करने के लिए देवी बलि मांग रही है. अंधविश्वास के आधार पर उन्होंने इस बात के लिए हामी भर ली और बलि के लिए झिटकू का चयन कर लिया. एक रात उन्होंने उसी बांध के पास झिटकू की हत्या कर दी. बहन को जब मालूम हुआ तो उसने भी झिटकू के वियोग में बांध के पानी में कूदकर अपने जीवन को समाप्त कर लिया. इस बलिदान की कहानी जंगल में आग की तरह सभी गांवों में फैल गई.

इस प्यार और बलिदान से प्रभावित होकर ग्रामीण आदिवासी झिटकू और मिटकी की पूजा करने लगे. आज ये आदिवासी प्रेम की सफलता के लिए झिटकू-मिटकी की पूजा को सही मानते हैं. उनका कहना है कि यहां पूजा करने के बाद कोई भी प्रेमी-प्रेमिका का सपना अधूरा नहीं रहता है. सदियों बाद आज के आधुनिक युग में झिटकू-मिटकी की ख्याति बस्तर के सुदूर गांवों से देश की राजधानी तक भी फैल चुकी है.