रायपुर। छत्तीसगढ़ की भूपेश सरकार ने अपने दो चुनावी वादों किसानों की ऋण माफी और पच्चीस सौ रुपये में धान खरीदी को पूरा कर दिया है. किसानों की ऋण माफी का पैसा उनके खातों में आना शुरु हो गया है वहीं उन्हें धान बेचने पर सत्रह सौ रुपये की बजाय अब पच्चीस सौ रुपये मिलने लग गया है. सरकार के इन दोनों फैसलों की ना सिर्फ तारीफ हो रही है बल्कि देश भर में इसकी चर्चाएं भी शुरु हो गई है. किसानों की मांग को लेकर हाल ही में दिल्ली में हुए पैदल मार्च का नेतृत्व करने वाले स्वराज इंडिया के संयोजक योगेन्द्र यादव ने सरकार के इस फैसले की तारीफ की है.
योगेन्द्र यादव ने धान का समर्थन मूल्य पच्चीस सौ रुपये करने का स्वागत किया है. लल्लूराम डॉट कॉम से बातचीत में उन्होंने कहा कि ये दोनों कांग्रेस के चुनावी वादे थे और दोनों पर घोषणा करके पहला कदम सही दिशा में उठाया है. हालांकि उन्होंने कुछ राज्यों के अनुभवों को लेकर आशंका भी जताई. उन्होंने कहा कि अन्य राज्यों का कर्जमाफी का अनुभव बताता है कि सरकार की तरफ से शासनादेश जारी हो जाता है, लेकिन वो शासनादेश किसान तक और उसके बैंक तक पहुंचे उसके कर्ज उसके अकाउंट में लाल लाइन लगे इसमें बहुत समय लगता है. काफी अड़चनें आती है, बहुत सी शर्तें होती है और तमाम तरह की बाधाएं होती है. जब ये बाधाएं पार होकर सचमुच आपको समाचार आने लगे कि किसानों का कर्ज माफ होने लग गया है. तब मानियेगा उससे पहले न मानियेगा. क्योंकि पंजाब में, कर्नाटक में, महाराष्ट्र में उत्तरप्रदेश में चारों राज्यों में इस तरह के प्रयोग हो चुके हैं वहां किसान अब भी ठगा महसूस कर रहा है. जहां तक धान की फसल का पच्चीस सौ रुपये के दाम की बात है यह बहुत अच्छा निर्णय है. क्योंकि किसान की सबसे पहली मांग कर्ज माफी नहीं है, पहली मांग है कि उसको फसल का ठीक दाम मिले. पच्चीस सौ अच्छा दाम है. अब यह सुनिश्चित करना होगा कि यह दाम वास्तव में सब किसानों को मिल जाए. इसमें तमाम तरह की सरकारी अड़चने सरकारी दस्तावेज की शर्तें यह सब न लगाई जाए और यह केवल एक सीजन के लिए न हो बल्कि अगले सीजन के लिए भी हो.
इकॉनॉमी को होगा तीन गुना फायदा
वहीं सरकार के इस फैसले का इकॉनॉमी में पड़ने वाले असर पर योगेन्द्र यादव ने कहा कि जहां तक किसानों को पच्चीस सौ रुपये देने की बात है इससे निश्चित ही किसानों को फायदा होगा. किसानों के घर में पैसा जाएगा. तमाम अर्थशास्त्री बताते हैं कि ग्रामीण क्षेत्र में खास तौर पर कृषि क्षेत्र में अगर कोई पैसा जाता है तो उससे ग्रामीण क्षेत्र में खरीद बढ़ती है ग्रामीण अर्थव्यवस्था सुधरती है और कुल मिलाकर हर एक रुपया जो गांव और किसान के पास जाता है तो उससे पूरी अर्थव्यवस्था को तीन गुना फायदा होता है और गरीबी खत्म करने में बहुत मदद मिलती है. रही बात कर्ज मुक्ति की कर्ज मुक्ति देश के ऊपर ऋण है जिसे खत्म करना होगा लेकिन कर्ज मुक्ति का अनुभव यह बताता है छोटी-छोटी किस्तों में आंशिक रुप से कर्ज माफ कर देने से न तो किसान को बहुत फायदा होता है और न ही अर्थव्यवस्था को. अगर करना है तो एक झटके में किया जाए, सम्पूर्ण कर्ज समाप्त किया जाए. सिर्फ बैंकों और सहकारी समतियों का ही नहीं साहुकार का जो कर्ज है वो उसको भी समाप्त किया जाए और एक स्थाई व्यवस्था किया जाए जिससे कि किसान कभी कर्ज में न डूबे.