रायपुर. चर्चा ज़ोरों पर है कि इस बार रायपुर की लोकसभा सीट में कड़ी चुनौती को देखते हुए बीजेपी अपने सबसे कद्दावर नेता बृजमोहन अग्रवाल को उतार सकती है. विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद बीजेपी ये मान चुकी है कि जैसे जीत पिछले कुछ चुनाव में बीजेपी को लोकसभा चुनाव में मिलती रही है. वैसी जीत मुमकिन न हो. लिहाज़ा पार्टी उन उम्मीदवारों पर दांव खेल सकती है जो अपने दम पर जीत का माद्दा रखते हैं. दिल्ली से आ रही खबरों के मुताबिक पार्टी अब वरिष्ठ नेताओं को रिटायर करने के मूड में है. रमेश बैस देश के तीसरे सबसे वरिष्ठ सांसद हैं. उनकी उम्र 72 साल हो चुकी है. पार्टी अगर वरिष्ठों को रिटायर करने के फॉर्मूले पर काम करती है तो भी उनकी टिकट कटने के आसार हैं.
माना जा रहा है कि बैस पिछला चुनाव मोदी लहर में जीते थे. उससे पहले के चुनावों में कुर्मी वोटबैंक के सहारे लगातार जीतते आए हैं. लेकिन इस चुनाव में न तो मोदी लहर दिख रही है न ही अब रमेश बैस कुर्मी वोटबैंक के सबसे बड़े नेता रहे हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के साथ मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सबसे बड़े कुर्मी नेता के तौर पर उभरे हैं. दूसरी तरफ, कुर्मी समेत पिछडा वर्ग बड़ी संख्या में कांग्रेस में शिफ्ट हुआ है. ये वर्ग राज्य सरकार की योजनाओं और घोषणाओं से बेहद खुश है. ऐसा कई चुनाव बाद हुआ कि रायपुर लोकसभा के तहत आने वाली विधानसभा सीटों पर कांग्रेस ने बीजेपी को पछाड़ा है. बीजेपी रायपुर लोकसभा की 9 सीटों में से 2 ही जीत पाई थी, कांग्रेस ने 6 सीट और 1 जोगी की पार्टी ने जीता था. जबकि बीजेपी पूरे लोकसभा में वो 75, 420 वोटों से पीछे थी.
बीजेपी के रणनीतिकार इसी बात को लेकर मंथन कर रहे हैं कि इस गढ्ढे को कैसे पाटा जाए. अब इस बात की चर्चा ज़ोर पकड़ रही है कि इस कठिन लड़ाई में वो अपने सबसे धुरंधर राजनीतिक लड़ाके बृजमनोहन अग्रवाल को रमेश बैस की जगह उतारे. विधानसभा चुनाव में बिना बहुत ज़्यादा प्रचार किए भी बृजमोहन अग्रवाल ने रायपुर दक्षिण से कांग्रेस की सुनामी में आसान जीत दर्ज की थी. इस जीत से साफ हो गया कि उनकी व्यक्तिगत लोकप्रियता बरकरार है. इसी बिनाह पर पार्टी द्वारा बृजमोहन को लोकसभा चुनाव में लड़ाने की रणनीति पर विचार कर रही है.
दो और कारण बृजमोहन के दावे को मज़बूत बना रहे हैं. विधानसभा चुनाव में 9 सीटों में से 7 पर सामान्य वर्ग के प्रत्याशियों ने जीत दर्ज करके जातिगत समीकरणों के छत्तीसगढ़ में असरकारक होने की थ्योरी फिर झूठला दी है. दूसरा कारण है कि जिन दो दावेदारों के कांग्रेस से लड़ने की सबसे ज़्यादा चर्चा है. उनके खिलाफ बृजमोहन को मनोवैज्ञानिक बढ़त हासिल है. किरणमयी नायक को वे 2013 के चुनाव में भारी अंतर से हरा चुके हैं. जबकि प्रमोद दुबे ने उनके खिलाफ 2018 के विधानसभा चुनाव में मैदान में उतरने से ही मना कर दिया था.
बृजमोहन के उतरने का सबसे नकरात्मक असर प्रमोद दुबे की दावेदारी पर पड़ने की आशंका है. विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी रायपुर दक्षिण से बृजमोहन अग्रवाल के खिलाफ प्रमोद को चुनाव लड़ाना चाहती थी लेकिन प्रमोद ने उनके खिलाफ लड़ने से ही साफ मना कर दिया था. बृजमोहन से प्रमोद दुबे की नज़दीकियों के कई किस्से राजनीतिक गलियारों में चर्चित रहे हैं. दोनों की नज़दीकियों को लेकर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह प्रमोद दुबे को फटकार भी लगा चुके हैं. बृजमोहन के चुनाव में उतरने पर ये सवाल प्रमोद दुबे को लेकर उठ सकते हैं. चर्चाओं के मुताबिक बृजमोहन के चुनाव लड़ने की स्थिति में उनके समर्थक भी इस बात को लेकर आश्वस्त नहीं हैं कि प्रमोद दुबे चुनाव लड़ेंगे या नहीं. लड़ेंगे तो कितना ज़ोर लगाकर लड़ पाएंगे, ये भी बड़ा सवाल है.