नई दिल्ली : बात अगस्त 1947 की है। पाकिस्तान बन चुका था । मुहम्मद अली जिन्ना ने भारत के ‘comptroller of Insurance’ को एक चिट्ठी लिखी और उनसे पाकिस्तान आ कर काम सम्भालने का बुलावा भेजा ।
उस ऑफ़िसर ने जिन्ना को टका सा जवाब लिख दिया -‘भारत मेरी जन्मभूमि है और मैं यहीं की मिट्टी का हूँ। यहीं रहूँगा और इसी देश की सेवा करूँगा’
उस वक़्त वह ऑफ़िसर शिमला में थे। वहाँ ज़बरदस्त दंगे हुए। बहुत क़त्लेआम हुआ। अंत में केवल दो मुस्लिम परिवार शिमला में बचे। उस ऑफ़िसर ने आख़िर अपना परिवार किसी तरह दिल्ली पहुँचाया, लेकिन ख़ुद डयूटी पर डटे रहे ताकि उस मुश्किल वक़्त में भारत सरकार का इक़बाल क़ायम रहे। नए नए आज़ाद हुए भारत की सरकार पर से जनता का भरोसा न उठ जाए ।
वक़्त बदला। उस ऑफ़िसर का बेटा बड़ा होकर भारत सरकार में शामिल हुआ। संयोग देखिए। जब बाबरी मस्जिद को गिराया गया, तो पाकिस्तान को जैसे मुहमाँगा मौक़ा मिल गया। उसने UN यानि संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत को दूसरे देशों के साथ मिल कर घेरने की मुहिम ही छेड़ दी। बहुत मुश्किल वक़्त था, देश की इज़्ज़त का सवाल था।
ऐसे में, उन्ही ऑफ़िसर के बेटे को UN में भारत का राजदूत नियुक्त किया गया। ये उसी का हुनर था, उसके शब्दों और कौशल का कमाल था कि उलटा पाकिस्तान ही अलग थलग पड़ गया। UN में पाकिस्तान की ये आज तक की सबसे बड़ी हार मानी जाती है।
उस शख़्स का नाम था हामिद अंसारी, जो भारत के उपराष्ट्रपति रहे। और जिन्ना का ऑफ़र ठुकरा कर, दंगों के बीच अकेले मोर्चा संभाल कर भारत का तिरंगा फहराये रखने वाले व्यक्ति हामिद अंसारी
के पिता अब्दुल अज़ीज़ अंसारी थे, जो महात्मा गांधी के साथ सालों कोषाध्यक्ष रहे।
वही हामिद अंसारी, जो कश्मीर राउंड टेबल के अध्यक्ष बने तो कश्मीरी पंडितों की वापसी की पुरज़ोर पैरवी की और उनके पुनर्वास का प्लान सरकार को सौंपा।
देश हामिद अंसारी और उनके पिता का हमेशा क़र्ज़दार रहेगा।
चमनलाल की फेसबुक वाल से साभार