रायपुर. गौरी लंकेश, कलबुर्गी, गोविंद पानसरे और ऐसे न जाने कितने कलमकारों को निशाना बनाया गया. कोई गोली अब तक कलम को रोक न सकी. लिखने वाले, चंद लोगों की नज़रों में अखर रहे हैं. ऐसा ही एक लिखने वाला आज के दिन जन्मा था. इंकलाबी पंजाबी कवि अवतार सिंह संधू उर्फ ‘पाश’. 9 सितंबर 1950 को पैदा हुए पाश को खालिस्तानी उग्रवादियों ने 23 मार्च के दिन गोली मार दी थी. लेकिन उनके लिखे को मिटा नहीं सके. आज जब गौरी लंकेश के जिस्म को गोलियों से छलनी कर खत्म कर दिया गया है तब पाश की ये कविता बहुत कुछ कहती है. आज जब हर बात पर देशभक्त होने का हिसाब और सबूत देना पड़ता है तो पाश की ये कविता बहुत कुछ कहती है. पाश की कविता कहती है कि हमें अपने ही देश की सुरक्षा से ख़तरा है. पाश की ये कविता बहुत ही मशहूर है. और प्रासंगिक भी…आप भी पढ़िए…

‘आंख की पुतली में हां के सिवाय कोई भी शब्द अश्लील हो तो हमें देश की सुरक्षा से खतरा है’- पाश

देश की सुरक्षा से खतरा
यदि देश की सुरक्षा यही होती है
कि बिना जमीर होना ज़िन्दगी के लिए शर्त बन जाए
आंख की पुतली में हां के सिवाय कोई भी शब्द
अश्लील हो
और मन बदकार पलों के सामने दण्डवत झुका रहे
तो हमें देश की सुरक्षा से ख़तरा है.

हम तो देश को समझे थे घर-जैसी पवित्र चीज़
जिसमें उमस नहीं होती
आदमी बरसते मेंह की गूंज की तरह गलियों में बहता है
गेहूं की बालियों की तरह खेतों में झूमता है
और आसमान की विशालता को अर्थ देता है

हम तो देश को समझे थे आलिंगन-जैसे एक एहसास का नाम
हम तो देश को समझते थे काम-जैसा कोई नशा
हम तो देश को समझते थे कुरबानी-सी वफ़ा
लेकिन गर देश
आत्मा की बेगार का कोई कारख़ाना है
गर देश उल्लू बनने की प्रयोगशाला है
तो हमें उससे ख़तरा है

गर देश का अमन ऐसा होता है
कि कर्ज़ के पहाड़ों से फिसलते पत्थरों की तरह
टूटता रहे अस्तित्व हमारा
और तनख़्वाहों के मुंह पर थूकती रहे
क़ीमतों की बेशर्म हंसी
कि अपने रक्त में नहाना ही तीर्थ का पुण्य हो
तो हमें अमन से ख़तरा है

गर देश की सुरक्षा को कुचल कर अमन को रंग चढ़ेगा
कि वीरता बस सरहदों पर मर कर परवान चढ़ेगी
कला का फूल बस राजा की खिड़की में ही खिलेगा
अक़्ल, हुक्म के कुएं पर रहट की तरह ही धरती सींचेगी
तो हमें देश की सुरक्षा से ख़तरा है.

ये कविता लल्लूराम डॉट कॉम ने ‘कविता कोश’ से ली है.

पाश की एक अन्य कविता भी सुनिए…

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