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उल्लेखनीय है कि केन्द्र सरकार द्वारा अखिल भारतीय सेवा अधिनियम 1951 के तहत वर्ष 1966 में जिन तीन अखिल भारतीय सेवाओं का गठन किया गया था, उनमें वन सेवा भी शामिल हैं। वनो का वैज्ञानिक प्रबंधन इस अखिल भारतीय सेवा संवर्ग का मुख्य उददेश्य है। अंग्रेजों के जमाने में भारतीय वन सम्पदा के प्रबंधन के लिए ब्रिटिश हुकूमत ने वर्ष 1867 में इम्पीरियल फारेस्ट सर्विस (आईएफएस) का गठन किया था। उन दिनों इस सेवा के अधिकारियों का प्रशिक्षण फ्रांस, जर्मनी, लंदन, कैम्ब्रिज आदि में दिया जाता था। देहरादून में 1906 में इम्पीरियल फारेस्ट रिसर्च इस्ट्रीट्यूट की स्थापना की गयी, जहां 1927 से 1932 तक अधिकारियों को प्रशिक्षण दिया जाता था। इसके बाद वर्ष 1938 में अधिकारियों के प्रशिक्षण के लिए देहरादून में इंडियन फारेस्ट कॉलेज की स्थापना की गयी। उस दौर में वानिकी संघीय सरकार का विषय था। वर्ष 1955 में से प्रांतीय सूची में स्थानांतरित कर इम्पीरियल सेवा को समाप्त कर दिया गया। वर्तमान में देहरादून के इंडियन फारेस्ट कॉलेज का नाम इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी कर दिया गया है, जहां भारतीय वन सेवा के अधिकारियों को प्रशिक्षण दिया जाता है।
नवम्बर 2000 में छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद अखिल भारतीय सेवा संवर्ग में 115 अधिकारी नये राज्य को मिले। वर्तमान में इस सेवा संवर्ग के अन्तर्गत छत्तीसगढ़ के वन विभाग में 153 अधिकारी हैं। इनमें दस महिला अधिकारी हैं। छत्तीसगढ़ राज्य के एक लाख 35 हजार वर्गकिलोमीटर भौगोलिक क्षेत्रफल में से 59 हजार 772 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र है, जो राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 44.21 प्रतिशत है। देश में वनक्षेत्रों के मामले में छत्तीसगढ़ तीसरा राज्य है। प्रदेश सरकार ने वनों की सुरक्षा में ग्रामीणों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए संयुक्त वन प्रबंधन योजना के तहत सात हजार 887 वन प्रबंधन समितियों का गठन किया है, जिनमें 27 लाख 63 हजार सदस्य शामिल हैं, जिन्हें वन विभाग के साथ समन्वय कर करीब 33 हजार 190 वर्ग किलोमीटर के वन क्षेत्रों के संरक्षण और संवर्धन की जिम्मेदारी सौपी गयी है। इस योजना के साथ ही वनवासियों की आमदनी बढ़ाने के लिए लघु वनोपज सहकारी समितियों के माध्यम से तेन्दूपत्ता संग्रहण और अन्य लघु वनोपजों के संग्रहण कार्यों का सुचारू संचालन भी भारतीय वन सेवा के अधिकारियों द्वारा किया जा रहा है।