रायपुर। पिता की विरासत भी बखूबी संभाला, सारी जिम्मेदारियों का भी निर्वहन बेहतर तरीके से किया. लेकिन इन सबके बीच में एक पुत्र ने उन निशानियों को भी सहेजा जो महज निशानी बल्कि, पूरी जिंदगानी भी है. तो आखिर इस जिंदगानी की क्या है पूरी कहानी आज हम आपको यही तो बताने जा रहे हैं. आपको सुनाने जा रहे हैं सारागाँव से निकलकर संसद की गलियारों तक पहुँचने के बाद विधान सदन में बैठने वाले एक ऐसे नेता से जुड़ी दिलचस्प कहानी जो अपने परिवार के नहीं बल्कि कांग्रेस और राजनीति के भी महंत हैं.
इस तस्वीर को बहुत अच्छे देखिए. क्योंकि यह तस्वीर ही पूरी कहानी को बयां करने जा रही है. इस तस्वीर में एक निशानी दिख रही होगी. ये निशानी ही महंत की जिंदगानी है. एक ऐसी निशानी जिसके बिना महंत के राजनीतिक कैरियर को लिखा ही नहीं जा सकता. क्योंकि इस निशानी के जरिए महंत विधायक, सांसद, मंत्री तक बनते रहे हैं. अब विधान सदन में भी इसी निशानी के माध्यम से बैठेंगे.
दरअसल जिस महंत की बात हम कर रहे हैं उनका पूरा नाम है डॉ. चरण दास महंत. और जिस निशानी को लेकर यह दिलचस्प कहानी जा रही है वो ये पेन. ये पेन बेहद खास क्योंकि इससे जुड़ी है डॉ. महंत की यादें. ये पेन डॉ. महंत की अपनी नहीं है. ये है उनके पिता जी बिसाहूदास महंत की है. अपनी पिता के इसी निशानी को डॉ. महंत 44 साल से संभाल रहे हैं. मतलब तब से जब उन्होंने जनप्रतिनिधि के तौर पर राजनीतिक यात्रा की शुरुआत की थी.
इस कहानी की शुरुआत सन् 1974-75 से होती है. महंत पहली बार विधायक चुने गए थे. तब उन्होंने इसी पेन से अपने शपथ पत्र में हस्ताक्षर किए थे. तब से लेकर अब तक जब कभी भी उन्होंने शपथ लिया फिर चाहे वह विधायक हो या सांसद या फिर मंत्री इसी पेन से ही दस्खत किए. अब जब उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष का नामांकन दाखिल किया उन्होंने अपनी पिता की निशानी वाले पेन का इस्तेमाल किया. वे जब कोई नई जिम्मेदारियों का निर्वहन करते हैं वे अपने पिता के इस निशानी के साथ ही करते हैं.