वैभव शिव/आशीष तिवारी, रायपुर। केन्द्र और राज्य की सत्ता में काबिज भाजपा को ही ओमप्रकाश चौधरी ने क्यों चुना ? क्या उन्हें अन्य दल में जगह नहीं मिलती ? क्या वे जिस ख्वाब के साथ राजनीति में आए वह अन्य दल में पूरा नहीं होता ? आखिर वो कौन सी बात रही, जिसकी वजह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह, डाॅ.रमन सिंह ओपी के लिए प्रेरणास्त्रोत बने? कहीं ओपी चौधरी ने राजनीति में आने में जल्दबाजी तो नहीं की? ऐसे तमाम सवाल हैं, जो इन दिनों सोशल मीडिया के जरिए उठाए जा रहे हैं.
आज आप इस साक्षात्कार के जरिए जान पाएंगे कि ओपी चौधरी ने भाजपा को ही क्यों चुना ? ओपी चौधरी ने लल्लूराम डॉट कॉम से खास-बातचीत में क्या कहा पढ़िए उनकी ही जुबानी-
बचपन की वो बातें मुझे आज भी याद है. मैं जब छोटा था. मुझे ठीक से याद है मैं हाई स्कूल में पहुँच चुका था. पढ़ाई के दिनों में कई मौके पर माता जी का पेंशन लेने के लिए रायगढ़ जिला कार्यालय जाना होता था. यहां पेंशन को लेकर कई लोगों भटकते देखा था. फिर ये भी देखता था कि कलेक्टर के बोलने पर काम हो जाता है. इन दिनों से मैं कलेक्टर बनने का सपने देखने लगा था. लेकिन पारिवारिक परिस्थितियां मेरे सपने के सामने चुनौतियां की तौर पर थी. क्योंकि बचपन में मैने अपने पिता जी को खो दिया था. फिर भी सपने को देखना मैंने बंद नहीं किया. चुनौतियों का सामना किया, विपरीत परिस्थितियों से लड़ा. मजबूरियों के बीच मैंने अपनी बारवीं की पढ़ाई नंदेली से पूरी की. 12 वीं की पढ़ाई के बाद से फिर मैंने अपने सपने को लक्ष्य के तौर पर सामने रखा लिया. इस लक्ष्य पर निशाना साधे मैं कड़ी मेहनत करने लगा.
2005 का वह सन् मैं कभी नहीं भूल सकता. क्योंकि यही वह वर्ष है जब मेरा सपना पूरा हो रहा था. मैंने आईएएस की परीक्षा पास कर ली. मेरे घर, गांव, जिले में जश्न का महौल था. लेकिन सफलता के साथ मुझे बचपन के वह दृश्य भी दिखाई दे रहे थे जब माता जी का पेंशन लेने मैं जाया करता था. 13 साल पहले हुई प्रशासनिक सेवा की इस शुरुआत में कभी लगा नहीं था कि कलेक्टर का पद छोड़कर राजनीति में आ जाऊंगा. लेकिन वक्त बीतते चला, प्रशासन में रहते हुए आंखों के सामने कई घटनाक्रमों को देखते चला, कई नवीन प्रयोग किए. अच्छी बात ये रही जो भी शुरुआत की सब में सफल रहा. इन्ही दिनों में सत्ता के काम-काज को भी बहुत करीब से देख रहा था. मैं देख रहा था बीते 13 साल से एक ऐसे व्यक्ति को काम करते हुए जिनके सामने पार्टी की नीति, सत्ता की चुनौती और विपक्ष के हमलों के बीच सादगी के साथ काम करने का हुनर है. सच कहूँ मुझे डॉ. रमन सिंह की सौम्यता, उनकी प्रयोगधर्मिता, उनका प्रशासन पर विश्वास तमाम चीजे प्रभावित कर रही थी और प्रेरित भी. डॉ. रमन सिंह बड़े दिल के व्यक्ति हैं. वे प्रतिशोध की राजनीति नहीं करते.
हालांकि तब भी ऐसा नहीं सोचा था कि राजनीति में आ ही जाऊंगा और भाजपा के साथ ही अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत करूँगा. इन्ही दिनों में यह भी देखा कि कैसे अनगिनत आरोपों के बीच कोई शख्स देश का सबसे बड़ा लीडर के तौर पर ऊभर आया है. आखिर जनता ने कैसे एक बीड़ जीत के साथ उन्हें प्रधानमंत्री के तौर पर चुना है और यह भी देखा की संगठन को कैसे पूरी मजबूती के साथ देश के विभिन्न राज्यों में एकजुट कर एक के बाद एक जीत हासिल की जा सकती है. यकीन नहीं हो रहा था कि राजनीति के तीन सितारे पीएम मोदी, राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह जैसे शख्सियतों को एक वक्त पर देख रहा हूँ. इनके सबके बीच मुझे मेरा घर, मेरी माटी और वे तमाम लोग याद आते थे जो मेरी आखों में अपने सपने को पूरा होते हुए देखते थे या देखना चाहते हैं. जब भी किसी न किसी अवसर पर गांव जाता, अपने इलाके के लोगों से मिलता, किसी सामाजिक कार्यक्रम में शामिल होता लगता यहीं पर ही सारा वक्त अपना दे दूँ. मैं ऐसा क्या करूँ कि अपने क्षेत्र के लोगों की मदद, उनकी सेवा उनके बीच ही रहकर कर सकूँ. इस सोच, चिंतन-मनन के साथ एक लंबा वक्त गुजरते गया.
इन्हीं दिनों में बहुत सुक्षमता के साथ सरकार के उन काम-काजों का भी आंकलन किया जिसे मैं बतौर कलेक्टर रहते हुए करीब से देखा था या उसमें अपने खुद को करीब से पाया था. जैसे रमन सरकार की अंत्योदय योजना. जिसके जरिए अंतिम व्यक्ति तक विकास को पहुँचना, पीडीएस के जरिए 1 रुपये किलो चांवल पहुँचाना, बस्तर में शोषण के कभी पर्याय रहा नमक को मुफ्त में देना. ऐसे कई अनगिनत योजनाएं जो मुझे व्यक्तिगत तौर पर जोड़ती रही. जुड़ना स्वभाविक भी था क्योंकि इनके आस-पास ही तो अपने बचपन को पाया भी था भले मैं जिया न हो. लेकिन बहुतों को इन विपरीत परिस्थतियों के बीच जीते हुए देखा था और इन चुनौतियों में अटल बिहारी वाजपेयी की कविताओं को भी पढ़ता और उससे प्रेरित होते रहता था…कि हार नहीं मानूंगा. सच कहूँ तो मैंने कभी हार नहीं मानी है और न मानूंगा.
इन सबके बीच एक चिंता हमेशा सताती जा रही थी कि 13 साल हो गए आईएएस बने. कई जिलों में कलेक्टर भी बन चुका हूँ. अब कलेक्टर का पद समाप्त होने वाला है. मुझे अब पदोन्नति मिल जाएगी और मैं मंत्रालय में किसी विभाग में बड़े पद पर पदस्त हो जाऊंगा. मतलब जनता से मेरी नजदकियां प्रत्यक्ष तौर पर कम हो जाएगी. सीधा जुड़ाव और संवाद जनता से नहीं हो पाएगी. कम से कम एक अधिकारी के तौर पर या काम-काज को लेकर तो नहीं. मैं विकल्प देखने लगा. मैं सोचने लगा कि क्या मेरे लिए राजनीति का माध्यम जनता से सीधे जुड़ाव के लिए सही होगा ? इस सवाल को मैंने घर में भी किया, दोस्तों के बीच भी.
आखिरकार तकरीबन साल भर की गहरी चिंतन के बाद मैंने कलेक्टर का पद त्याग करने का निर्णय ले ही लिया. साथ ही मैंने यह तय भी किया कि मुझे राजनीतिक जीवन की शुरुआत मुख्यमंत्री के साथ ही करनी है. लिहाजा मैंने भाजपा ज्वाइन करने का मन बना लिया. मैं अब तक की बातचीत में यह बता ही चुका था कि डॉ. रमन सिंह की कार्यशैली या उनका व्यक्तिगत व्यवहार मुझें प्रभावित करते रहा है. सच कहूँ तो मेरे इस फैसले को लेकर अन्य दल के लोग तरह-तरह की बातें कह रहे हैं, मेरे चाहने वाले भी बहुत से लोग मेरे फैसले को गलत भी ठहरा रहे हैं, मुझे आदर्श मानकर प्रशासनिक सेवा में जाने वाले युवा भी सवालों में उलझे होंगे ? लेकिन सच कहूँ तो आलोचनाओं से नहीं घबराता, बल्कि उससे मोटिवेट होता हूँ. मैं बहुत पाजीटिव आदमी हूं. मैं स्वच्छ और सकारत्मक राजनीति करने के लिए आया हूँ. मुझे यह पूर्ण विश्वास है कि मैं अपने घर वालों को, गांव वालों को, अपने क्षेत्रवासियों को, प्रदेशवासियों को, अपने युवा और शुभचिंतक साथियों को निराश नहीं होने दूँगा. मैं अच्छे करने के लिए हूँ, अच्छा ही करके दिखाऊंगा.
आईएएस बनना मेरी जिंदगी का सबसे कठिन वक्त था
जिंदगी के तमाम उतार-चढ़ाव के बीच मेरी जिंदगी में यदि सबसे कठिन वक्त कुछ रहा, तो वह आईएएस बनना था. पिता सरकारी नौकरी में थे, उनके जाने के बाद मेरे पास अनुंकपा नियुक्ति का भी आप्शन था. बावजूद इसके मेरी चौथी पढ़ी मां ने मेरे निर्णय को सराहा. मैं चाहता था मैं आईएएस बनूं. लिहाजा मैने अनुकंपा नियुक्ति छोड़ आईएएस की तैयानी करने का निर्णय़ लिया. मैं समझता हूं विपरित हालातों के बावजूद उस वक्त यह निर्णय लेना मेरी जिंदगी का सबसे कठिन वक्त था. लेकिन मैंने अपना मकसद सामने रखा. मैं जिस गांव से आता हूं, उस गांव की तस्वीर बदलने की चाहत मेरे जेहन में हमेशा से ही रही. इस बात का अब सुकून है कि कलेक्टर रहते हुए मैं समाज के सबसे निचले स्तर तक लोगों से जुड़ा. कुछ कर पाया. अब जब आईएएस की नौकरी छोड़ राजनीतिक सफर पर निकलने का निर्णय किया, ऐसे निर्णय में भी मेरी मां और मेरी पत्नि अदिती का साथ मिला. अदिती ने कहा- आपने तय किया है, बेहतर ही होगा. बगैर कुछ सोचे आप आगे बढ़ो. अच्छा-बुरा जो भी होगा हम मिलकर सामना करेंगे. परिवार का यह भरोसा ही मुझे ताकत देता रहा.
राजनीति तंत्र से खड़े किए जा सकते हैं बेहतर प्रशासक
प्रशासनिक तंत्र का हिस्सा रहते हुए मैंने यह हमेशा महसूस किया है कि लोकतांत्रिक देश में प्रशासनिक तंत्र, राजनीतिक तंत्र पर ही डिपेंट रहता है. मैं समझता हू राजनीति में रहकर भी बेहतर काम किया जा सकता है. राजनीति में रहते हुए सैकड़ों बेहतर प्रशासक खड़े किए जा सकते हैं. मैं देखता रहा हूं कि कई राज्यों में राजनीतिक संस्कृति की वजह से प्रशासन में निराशा का भाव रहता है. दूसरे राज्यों में काम करने वाले मेरे कई साथी इस निराशा के भाव से गुजरे भी हैं. लेकिन छत्तीसगढ़ में ऐसे हालात नहीं रहे. यहां मुख्यमंत्री डाॅ.रमन सिंह ने प्रशासनिक व्यवस्थाओं को एक सशक्त माध्यम माना है. भरोसा किया. उनके भरोसे का ही असर है कि देश के दूसरे राज्यों के तुलना में छत्तीसगढ़ में राजनीतिक और प्रशासनिक तंत्र में बेहतर सामंजस्य है.
अटल बिहारी बाजपेयी- दीनदयाल उपाध्याय ने किया प्रभावित
मेरी जिंदगी में ऐसे कई प्रेरणास्त्रोत रहे हैं. उनमें से एक हैं अटल बिहारी बाजपेयी. निस्वार्थ राजनीति और देशहित के लिए जीवन लगा देने की सीख उनसे मिली है. वो बचपन से ही मेरे आदर्श रहे हैं. पंडित दीनदयाल उपाध्याय की अंत्योदय के सिद्धांत ने भी मुझे बेहद प्रभावित किया है. समाज के अंतिम व्यक्ति तक की सोच रखने वाली यदि कोई विचारधारा कहीं दिखी, तो बीजेपी में ही नजर आई. यही वजह है कि मुझे बीजेपी की विचारधारा ने प्रभावित किया और मैं आज इसका हिस्सा बना हूं.