नई दिल्ली। केन्द्र सरकार के पर्यावरण मंत्रालय ने छत्तीसगढ़ के परसा में घने हसदेव अरंद जंगल में ओपन कास्ट कोल माइनिंग को अपनी मंजूरी दे दी है. हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, हसदेव अरंद लगभग 170,000 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला मध्य भारत के घने जंगलों में से एक है. परसा हसदेव अरंद के 30 कोयला ब्लॉकों में से एक है, जिस पर राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड (आरवीयूएनएल) का स्वामित्व है.
बताया जा रहा है कि इस खदान की क्षमता पांच मीट्रिक टन प्रतिवर्ष है और इसका संचालन अडानी इंटरप्राइजेज लिमिटेड की इकाई राजस्थान कोलिरीज लि. (आरसीएल) करती है. इसे फरवरी 2019 में पहले चरण की वन मंजूरी मिली थी. वन सलाहकार समिति की बैठक के मिनट्स से पता चलता है कि खदान के लिए इस्तेमाल की जाने वाली 841 हेक्टेयर की जमीन एक घने जंगल का हिस्सा है.
ओपन कास्ट माइनिंग में क्षेत्र से मिट्टी और वनस्पतियों को हटाने के बाद कोयले के लिए खुदाई होती है. पर्यावरण मंत्रालय द्वारा परसा खदान को 21 फरवरी 2019 को अंतिम मंजूरी मिलने से पहले इसे विशेष मूल्यांकन समिति (ईएसी) के समक्ष तीन बार विचार करने के लिए लाया गया. इससे पहले 15 फरवरी 2018 की बैठक में ईएसी ने इस परियोजना के लिए ग्राम सभा की सहमति और जनजातीय आबादी पर इसके प्रभाव को लेकर राज्य के जनजाति कल्याण विभाग से टिप्पणी मांगी थी. इसके साथ ही जंगल में चलने वाले हाथी गलियारे पर खनन के प्रभाव को लेकर राज्य के वन्यजीव बोर्ड से भी राय मांगी थी.
ईएसी ने 24 जुलाई 2018 की बैठक में एक बार फिर से उसी स्पष्टीकरण की मांग की. इस बैठक की मिनट्स से पता चलता है कि आरवीयूएनएल ने सितंबर 2018 में इन दोनों सवालों पर जानकारी पेश की लेकिन ग्रामसभा की सहमति ली गई या नहीं, इसकी कोई जानकारी नहीं है. ईएसी ने यह भी पूछताछ की कि क्या हसदेव अरंद में कोयला खनन से संबंधित कानूनी मामले भी हैं.
सुप्रीम कोर्ट में दो मामले लंबित हैं, जिनमें छत्तीसगढ़ में आरवीयूएनएल के परसा-केन्टे एक्सटेंशन कोयला ब्लॉक के आबंटन और अडानी इंटरप्राइजेज के साथ ज्वाइंट वेंचर और कोयला आपूर्ति समझौते को रद्द करने की छत्तीसगढ़ के वकील सुदीप श्रीवास्तव की याचिका शामिल है.
वहीं, छत्तीसगढ़ के चुनिंदा वनक्षेत्रों में खनन पर प्रतिबंध लगाने के राष्ट्रीय हरित अधिकरण के निर्देश में ढील देने की आरवीयूनएल की याचिका है. वन सलाहकार समिति ने इन लंबित मामलों के संदर्भ में परसा खदान को मंजूरी देने पर विचार के लिए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) से राय मांगी.
ईएसी की 21 फरवरी की बैठक में कहा गया कि राज्य में कोयला खदान पर परसा खदान को दी गई पर्यावरणीय मंजूरी सुप्रीम कोर्ट और छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के लंबित मामलों के अधीन है. ईएसी ने अन्य शर्तें भी रखी हैं, जैसे हर तीन साल में पर्यावरणीय मंजूरी के लिए किसी तकनीकी संस्थान या एजेंसी से थर्ड पार्टी आकलन कराना जरूरी है.
छत्तसीगढ़ बचाओ आंदोलन ने इस परियोजना से संबद्ध पर्यावरणीय और कानूनी चिंताओं को लेकर 20 फरवरी को ईएसी को पत्र लिखा था. इस पत्र में कहा गया कि उत्तरी छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले के दो गांवों ने जिला कलेक्टर के समक्ष शिकायत दर्ज कराई कि ग्रामसभा की सहमति कथित तौर पर फर्जी थी.
कार्यकर्ताओं और कानूनी विशेषज्ञों द्वारा एक अन्य मुद्दा यह भी उठाया गया कि हसदेव अरंद से सटे परसा पूर्व और केटे बसाओ कैप्टिव कोयला ब्लॉक को दी गई वन मंजूरी इस शर्त पर दी गई कि छत्तीसगढ़ सरकार मुख्य हसदेव अरंद क्षेत्र को खोलने की मंजूरी नहीं देगी. हाालंकि, पिछले महीने जिस परसा ओपन कास्ट माइन को मंजूरी दी गई, वह मुख्य हसदेव अरंद वनक्षेत्र में है.
दिल्ली में सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च (सीपीआर) की कानूनी अनुसंधानकर्ता कांची कोहली ने कहा, ‘लंबित कानूनी मुद्दों और प्रक्रियात्मक खामियों के अलावा परसा में ओपन कास्ट खनन की मंजूरी पूरी तरह से एहतियातन सिद्धांतों के खिलाफ थी. खनन को मंजूरी देने से मध्य भारत के आखिरी बचे फोरेस्ट पैचेज को फ्रैगमेंट करेगा, वन अधिकारों का उल्लंघन होगा और मानव-वन्यजीव के बीच संघर्ष बढ़ेगा.’
साल 2009 में पर्यावरण मंत्रालय ने हसदेव अरंद को खनन के लिए वर्जित क्षेत्र के रूप में वर्गीकृत किया था. पर्यावरण कार्यकर्ताओं का कहना है कि यहां खनन को मंजूरी देना वन संरक्षण के लिए हानिकारक होगा.
छत्तीसगढ़ के वकील सुदीप श्रीवास्तव ने कहा, ‘परसा खनन को पर्यावरणीय मंजूरी देना अवैध है क्योंकि वन सलाहकार समिति ने पहले कहा था कि हसदेव अरंद को खनन के लिए खोला नहीं जा सकता. भारत के वन सर्वेक्षण की 2014 की रिपोर्ट में सिफारिश की थी कि हसदेव अरंद को खनन से मुक्त होना चाहिए.’ मीणा परसा से जुड़े कोयला ब्लॉक आवंटन को रद्द करने के लिए अदालत का रुख कर चुके हैं.
आरवीयूएनएल के निदेशक (तकनीकी) एसएस मीणा ने कहा, ‘हमें सिवाय अतिंम वन मंजूरी मिलने के सभी मंजूरियां मिल गई हैं. अंतिम वन मंजूरी भी कभी भी मिल सकती है. सुप्रीम कोर्ट में लंबित मामले अन्य कोयला ब्लॉकों को लेकर है इसलिए उससे यह परियोजना प्रभावित नहीं होगी.’
अडानी समूह के प्रवक्ता ने कहा, ‘अडानी समूह एक जिम्मेदार कॉरपोरेट नागरिक है और यह हमारी पर्यावरण और समुदायों को लेकर हमारी चिंता से पता चलता है. खनन के अलावा अडानी समूह छत्तीसगढ़ में सौर बिजली, गैस वितरण, सड़क निर्माण और अन्य कामों से भी जुड़ा हुआ है. हम छत्तीसगढ़ के लोगों औ यहां के पारिस्थितिकी को लेकर प्रतिबद्ध है औ देश की ऊर्जा सुरक्षा हमारे प्रयासों का हिस्सा है.’
सौजन्य- द वायर