बालकोनगर- नोवल कोविड-19 के इस दौर में वैश्विक बाजारों के रूझान इस बात की ओर संकेत हैं कि अर्थव्यवस्थाएं भीषण मंदी की ओर अग्रसर हैं। विभिन्न वस्तुओं और उत्पादांे की कीमतों में गिरावट आई है। पूरे विश्व में 9 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान हो चुका है वहीं भारत में हर दिन लगभग 35000 करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है। विश्व मुद्रा कोष के अनुमान के अनुसार वैश्विक अर्थव्यवस्था 3 फीसदी तक सिकुड़ सकती है। एल्यूमिनियम के क्षेत्र में हालात ये हैं कि विश्व के 90 फीसदी स्मेल्टरों का प्रचालन अलाभकारी स्थिति में पहुंच गया है।
अर्थशास्त्रियों के मुताबिक चीन में स्मेल्टरों के निरंतर प्रचालन में रहने से एल्यूमिनियम उत्पादों की भरमार हो जाएगी। यूरोप और उत्तरी अमेरिका में एल्यूमिनियम के उपयोगकर्ता प्राइमरी एल्यूमिनियम की खरीद के समझौते रद्द कर रहे हैं जिससे मांग में 5 मिलियन टन की गिरावट आई है। भारत का सकल घरेलु उत्पाद 6 से घटकर 2 फीसदी के स्तर पर पहुंचने की आशंका है। वैश्विक मंदी, देश में चीन से आयातित एल्यूमिनियम उत्पादों की डंपिंग, पश्चिमी गोलार्द्ध के बाजारों में मांग में कमी और मलेशिया और थाईलैंड जैसे एफ.टी.ए. देशों के सेमी फिनिस्ड उत्पादों के कारण एल्यूमिनियम के घरेलू उत्पादक और निर्यातकर्ता दबाव में है।
चुनौतीपूर्ण व्यावसायिक वातावरण में भारत एल्यूमिनियम कंपनी लिमिटेड (बालको) परिवार के समक्ष खुद का अस्तित्व बचाने और प्रतिस्पर्धा में बने रहने की चुनौती है। एल्यूमिनियम की कीमतें जनवरी, 2020 के 1800 डॉलर प्रति टन से 20 प्रतिशत घटकर अप्रैल, 2020 में 1450 डॉलर प्रति टन के स्तर पर पहुंच गई हैं। परिवहन, इलेक्ट्रिकल, पैकेजिंग एवं विनिर्माण जैसे मुख्य क्षेत्रों में एल्यूमिनियम की मांग निरंतर घट रह रही है। यदि एल्यूमिनियम क्षेत्र को प्रोत्साहित न किया गया तो मांग में 40-50 फीसदी की गिरावट आ सकती है। मांग में कमी और कमजोर निवेश गतिविधियांे के भयपूर्ण माहौल के बावजूद एल्यूमिनियम स्मेल्टर के निरंतर प्रचालन के बीच यह आशंका है कि आने वाले समय में वैश्विक बाजार में एल्यूमिनियम के मूल्य 1400 से 1450 डॉलर के आसपास ही रहेंगे।
एल.एम.ई. में एल्यूमिनियम के मूल्य मंे गिरावट का दौर जारी रहने से बालको बड़े घाटे और ऋणों के बोझ से दब जाएगा। ऐसे समय में व्यवसाय में बने रहने का मार्ग यही है कि लागत में निरंतर कटौती हो, आंतरिक कार्यक्षमता प्रभावहीनता से मुक्त बने, नए विचारों का तेजी से क्रियान्वयन हो, टालने योग्य खर्चों में कटौती तथा मानव संसाधन का सर्वोत्तम उपयोग हो। बालको परिवार के लिए जरूरी है कि व्यवसाय को बचाने के लिए इसका प्रत्येक सदस्य पारस्परिक सौहार्द्र एवं समन्वयनपूर्ण वातावरण में एकजुट होकर कंधे से कंधा मिलाकर काम करते हुए लागत में कटौती और नकदी के प्रवाह में बढ़ोत्तरी की दिशा में काम करे।
कैसे सुधरें घरेलू एल्यूमिनियम उद्योग के हालात: रोजगार की दृष्टि से एल्यूमिनियम उद्योग में सबसे अधिक संभावनाएं हैं। प्राइमरी उद्योग में यदि रोजगार का एक अवसर सृजित होता है तो डाउनस्ट्रीम और अपस्ट्रीम उद्योग में रोजगार सृजन की संभावनाएं दोगुनी हो जाती हैं। देश में 8 लाख से अधिक नागरिक एल्यूमिनियम उद्योग से रोजगार पाते हैं। यदि देश की एल्यूमिनियम क्षमता में 1 मिलियन टन का इजाफा होता है तब आजीविका के लगभग 2 लाख अवसर सृजित होते हैं। अगले वित्तीय वर्ष तक 2 फीसदी से बढ़कर 7 फीसदी की रीकवरी पाने और आजीविका के नए अवसरों के निर्माण की दिशा में देश के एल्यूमिनियम उद्योग का बड़ा योगदान हो सकता है।
देश की एल्यूमिनियम आधारित एम.एस.एम.ई. को सहारा देने के लिए सरकार को तत्परता से आगे आना होगा। एल्यूमिनियम के विशेषज्ञ कहते हैं कि सरकार तत्काल प्रभाव से एल्यूमिनियम पर न्यूनतम आयात मूल्य लागू करे अथवा आयात पर मात्रात्मक प्रतिबंध लगाए। सस्ते आयात पर लगाम कसने के लिए आयात शुल्क 10-15 प्रतिशत हो। वर्तमान में यह दर 7.5-10 फीसदी है। एल्यूमिनियम उद्योग को कोर उद्योगों के समूह में शामिल किया जाए। इसके साथ ही एल्यूमिनियम और एल्यूमिनियम स्क्रैप के लिए राष्ट्रीय नीति घोषित हो। बॉक्साइट और कोयला जैसे कच्चे माल की भरपूर उपलब्धता, बेहतरीन मानव संसाधन और एम.एस.एम.ई. के माध्यम से मूल्य संवर्धन के जरिए ही देश एल्यूमिनियम के क्षेत्र में आत्मनिर्भर होकर वैश्विक एल्यूमिनियम उद्योग की प्रतिस्पर्धा में टिका रह सकता है।