विश्व मातृभाषा पर आयोजित हुआ कार्यक्रम
रायपुर। जन भाषा से राजभाषा बन चुके छत्तीसगढ़ी को 19 साल बाद भी शिक्षा का माध्यम और सरकारी राज-काज की भाषा नहीं बनाए जाने को लेकर छत्तीसगढ़ियों में रोष बढ़ते जा रहा है. इसका नजारा गुरुवार को संस्कृति विभाग के सभागार में आयोजित विश्व मातृभाषा दिवस के कार्यक्रम में दिखा. यहां छत्तीसगढी सहित अंचल की अन्य भाषा-बोली जैसे हल्बी, गोंडी, कोड़ुक, भतरी, सरगुजी पर चर्चा हुई. भाषाविदों, बुद्धिजीवियो, पत्रकारों सहित अन्य लोगों ने मातृभाषा के संरक्षण और संवर्धन पर चिंता जाहिर की. छत्तीसगढ़ी राजभाषा मंच और छत्तीसगढ़िया महिला क्रांति सेना की ओर से आयोजित इस कार्यक्रम में रायपुर सहित अन्य जिलों से भाषा के जानकारों और छत्तीसगढ़ी के लिए काम करने करने वाले लोगों ने अपनी बातें रखी.
छत्तीसगढ़ी राजभाषा मंच के संयोजक नंदकिशोर शुक्ल ने छत्तीसगढ़ी सहित अन्य आंचालिक भाषाओं पर तकनीकी और भौगोलिक जानकारी देते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ी सहित अ प्रदेश की अन्य भाषाओं में सरकार को तत्काल प्राथमिक स्तर की शिक्षा देने की शुरुआत करनी चाहिए. छत्तीसगढ़ी के साथ गोंडी, हल्बी, सरगुजी, कोड़ुक, भतरी सहित अन्य भाषाओं का पूरा समृद्ध व्याकरण है. यहां न लिपी की समस्या है और न ही वर्णमाला और न ही पाठ्यक्रम की. जरूरत है तो बस सरकार की ओर से आदेश जारी करने की.
उन्होंने भाषाओं के आधार पर बने राज्यों जैसे गुजराती से गुजरात, मराठी से महाराष्ट्र, तेलगु से आंध्र, कर्नड से कर्नाटक, तमिल से तमिलनाडु, मयालयी से केरल, बंगाली से बंगाल, असमी से असम जैसे अन्य कई का उदारहण देते हुए कहा फिर छत्तीसगढ़ियों से छत्तीसगढ़ बने राज्य में छत्तीसगढ़ी की उपेक्षा क्यों? सरकार ने खुद से पहल नहीं की तो हम हर स्तर पर ही छत्तीसगढ़ी में पढ़ाई-लिखाई और सरकारी काम-काज के लिए मजबूर कर देंगे. छत्तीसगढ़ी ही छत्तीसगढ की असल चिन्हारी है.
भाषाविद डॉ. व्यासनारायण दुबे ने कहा कि छत्तीसगढ़ी में पढ़ाई-लिखाई करने से ही किसी भी भाषा को बचाकर रखा जा सकता है. अगर आज हम हिंदी में पढ़ना-लिखना बंद करा दें तो हिंदी बचेगी क्या? यहां किसी भी भाषा का विरोध नहीं है लेकिन अपनी मातृभाषा को बचाने के लिए काम तो करना होगा. और मातृभाषा तभी जीवित रह सकती है जब उसे शिक्षा और सरकारी काम-काज की भाषा बनाई जाएगी.
संस्कृति विशेषज्ञ अशोक तिवारी ने भी असम के भीतर रहने वाले प्रवासी छत्तीसगढ़ियों का उदाहरण देते हुए कहा कि आज असम जैसे क्षेत्र में वहां के मूल निवासी हो चुके छत्तीसगढ़ियों ने भी भाषा और संस्कृति को जिंदा रखा है तो फिर अपने ही छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़गी, हल्बी-गोंडी, सरगुजी की उपेक्षा क्यों? हमारी संस्कृति की मूल पहचान भाषा है. भाषा ही असल चिन्हारी है.
छत्तीसगढ़िया महिला क्रांति सेना के अध्यक्ष लता राठौर ने कहा कि महतारी भाषा को बचाने हम महतारी-बहने अब जागरुक हो चुके हैं. हमारी महतारी अस्मिता को बचाने हम पूरा जीवन समर्पित कर देंगे. अब छत्तीसगढ़ की महिलाएं भी इस दिशा में काफी आगे बढ़ चुकी हैं.
गोंडी भाषा में अपनी बात रखते हुए दो छात्र मुकेश और रमेश ने महत्वपूर्ण बात कही. उन्होंने अमेरिका का उदाहरण देते हुए कहा कि कोई भी देश तभी तरक्की कर सकता है जब वहां उसे स्कूल में जाके भाषा न बदलना पड़े. मतलब यहां हमारी मातृभाषा कुछ और होती और हमें स्कूल में जाके किसी और भाषा में पढ़ना पढ़ता है. उन्होंने कहा कि हमारी भाषा गोंडी है लेकिन चाहकर भी उसमें पढ़ नहीं सकते. हम जिस इलाके से आते हैं वह सीमा तेलांगाना से लगता है और वहां तेलगु का प्रभाव है. लेकिन हमारे तक छत्तीसगढ़ी क्यों नहीं पहुँच रही जबकि वो हमारी राजभाषा है?
छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के सचिव जेआर भगत ने अपनी मातृभाषा कोड़ुक में अपनी बात रखते हुए कहा कि कोड़ुक जशपुर अंचल में बोली जाती है. लेकिन झारखंड में यह शिक्षा का माध्यम है. नेपाल में इसे राजभाषा का दर्जा है. भूटान में इस भाषा को खासा महत्व है. ऐसे में हम सबको मिलकर छत्तीसगढ़ में अपनी मातृभाषाओं को भी इसी तरह सम्मान दिलाने के लिए काम करना होगा. और हम सब मिलकर इसे आगे बढ़ाएंगे.
संस्कृति विभाग के संचालक चंद्रकांत उइके ने भी अपनी मातृभाषा छत्तीसगढ़ी में अपनी बातें रखी. उन्होंने कहा कि संस्कृति विभाग पूरी तरह से राजभाषा छत्तीसगढ़ी को राज-काज की भाषा बनाने की दिशा में प्रयासरत् हैं. आप लोगों की मांगें सरकार तक पूरी प्राथमिकता के साथ पहुँचाई जाएगी. छत्तीसगढ़ियों के जनभावना के अनुरूप अब किसी भी स्तर पर छत्तीसगढ़ी की उपेक्षा नहीं की जा सकती. प्रदेश के मुख्यमंत्री खुद छत्तीसगढ़ी भाषा को आगे बढ़ाने के लिए गंभीर है.