पुरुषोत्तम पात्र, गरियाबंद. लोकसभा चुनाव चल रहा है. सभी राजनीतिक पार्टियां और चुनाव आयोग लोगों से मतदान करने की अपील कर रहे हैं. मगर गरियाबंद में एक ऐसा गांव है जहां के मतदाता अपने अस्तित्व के लिए हर चुनाव में इसलिए बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते है कि चुनाव जीतने के बाद कोई ना कोई तो उनकी लड़ाई लड़ेगा. मगर अब तक ऐसा हुआ नहीं, यहां के मतदाता इस बार भी इसी मंशा से मतदान में बढ़- चढ़कर हिस्सा लेने की बात कह रहे हैं.

सुनने में बडा अजीब लगता है कि किसी गांव के मतदाता इसलिए मतदान में हिस्सा लेते है कि कोई जीतने के बाद उनके अस्तित्व की लड़ाई लड़ सके, मगर ये सोलह आने सच है और ये गांव है गरियाबंद जिले का बुद्धूपारा, देवभोग विकासखंड मुख्यालय से महज 4 किमी की दूरी पर बसे लगभग 600 की आबादी वाले बुद्धूपारा गांव का कोई सरकारी रिकार्ड नहीं है, ना गॉव को राजस्व रिकार्ड में दर्ज है और ना ही खुद की कोई ग्राम पंचायत है. बल्कि सबसे दुखद और हास्यपद बात तो ये है कि ये छोटा सा गांव तीन पंचायतों में बटा हुआ है. गॉव का कुछ हिस्सा लाटापारा पंचायत में आता है तो कुछ घोघर और मुंगझर पंचायत में शामिल है, गांव के लोग इससे बहुत परेशान है.

1952 से बसे इस गांव के लोग लंबे समय से अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे है. समस्या का समाधान नहीं होने का खामियाजा भी भुगत रहे हैं. गांव के नाम पर आंगनबॉडी और प्राथमिक स्कूल है, जब यहॉ पढ़ने वाले बच्चों को आधारकार्ड या फिर वोटरआईडी जैसे दूसरे दस्तावेज बनवाने हो तो बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. गॉव का नाम सरकारी रिकार्ड में दर्ज नहीं होने के कारण कई तरह के एफिडेविट देने पड़ते है. यही नहीं तीन पंचायतों के बीच फंसा होने के कारण विकास कार्य भी अधर में लटके पड़े है. तीनों पंचायते एक दूसरे का हिस्सा बताकर अपने हाथ खड़े कर देती है.

लाटापारा पँचायत सीमा पर रहने वाले ग्रामीण दुष्यंत कश्यप ने बताया कि कई सालों से मांग के बावजूद उनके हिस्से में पँचायत ने अब तक पक्की सड़क नाली निर्माण व पेय जल की सुविधा नहीं करवाया, जबकि मूँगझर में आने वाले हिस्से में सीसी सड़क बन चुका है. घोघर ने नाली निर्माण करवा दिया है. उनके मोहल्ले के लोग अन्य पँचायत के हिस्से में पेय जल के लिये आश्रित है, जबकि पूरा गांव निस्तारी के लिए 3 किमी दूर स्थित मूँगझर के तालाब पर आश्रित है. साल भर पहले घोघर पँचायत को 100 मीटर नाली का निर्माण कराना था, चयनित स्थल ओर केवल 60 मीटर बन सका क्योकि आगे मूँगझर पँचायत का सीमा आ गया. आगे बढाने में तकनीकी दिक्कतों का हवाला देकर अफसरो ने मना कर दिया.

मूँगझर सरपँच सुसीला देवी ने बताया कि इस आश्रित ग्राम में सोलर पम्प की स्वीकृति मिली हुई है. स्थल चयन कारण अभी तक नहीं बन पाया, हालांकि अब वे मुख्य सड़क के किनारे मौजूद बरगद पेड़ के पास उसे जल्द बनवाएंगे.

यंहा मौजूद आंगनबाड़ी, प्राथमिक स्कूल मूँगझर पँचायत संचालित करता है. इसलिए इनसे जुड़े सभी रिकॉर्ड में मूँगझर लिखा होता है,जबकि जन्म प्रमाण पत्र, आधार व वोटर आईडी में जिस पँचायत के इलाके में आते है उसी पँचायत का नाम होता है. आगे चल कर रिकार्ड दुरूस्त कराने पलको को हलफनामा दायर करने की नोबत आन पड़ती है. आंगनबाड़ी में भी रिकार्ड तैयार करने की व्यवहारिक दिक्कतों का सामना संचालको को करना होता है.

अब इसे सरकारी त्रुटि कहें या फिर अधिकारियों की लापरवाही कि इतने लंबे समय से मांग करने के बाद भी ग्रामीणों की एक छोटी सी और जायज मांग का भी जिला प्रशासन समाधान नहीं कर पाया. गरियाबंद जिला प्रशासन की सबसे अहम और ताज्जूब की बात तो ये है कि इसी देवभोग विकासखंड के झिरनीखोल जैसे गॉव को राजस्व गॉव घोषित कर दिया गया. जबकि 600 की आबादी वाले बुद्धूपारा को राजस्व गांव घोषित करना मुनासिब नहीं समझा. हालांकि बुद्धूपारा के मतदाता इस बार फिर इसी आशा के साथ मतदान करने वाले है कि जीतने के बाद प्रत्याशी उनके अस्तित्व को बचाने की लड़ीई जरुर लड़ेगा.