रायपुर- मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की ने कहा है कि नरवा, गरवा, घुरवा, बाड़ी योजना से छत्तीसगढ़ देशभर में ग्रामीण अर्थव्यवस्था का रोल माॅडल बनेगा. इस योजना के जरिए गांव समृद्ध होंगे. उन्होंने इस योजना को लेकर संबंधित विभागों को समयबद्ध कार्ययोजना बनाने के निर्देश दिए हैं. गौरतलब है कि नरवा, गरवा, घुरवा, बाड़ी, छत्तीसगढ़ के चार चिन्हारी का यह नारा चुनाव के दौरान दिया था. अब इस नारे को योजना की शक्ल दी जा रही है.
योजना के संबंध में विस्तृत कार्ययोजना बनाए जाने के लिए मंत्रालय में आज हाईलेवल मीटिंग बुलाई गई. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बैठक में कहा कि छत्तीसगढ़ में नदी-नालों के पुर्नजीवन, गांव में पशुपालन, नस्ल सुधार, गोबर गैस और जैविक खाद जैसे कार्यों से गांव और किसानों को खुशहाल बनाया जा सकता है. कृषि लागत में कमी लायी जा सकती है. आवारा पशुओं की खेतों में रोकथाम कर द्विफसलीय रकबा भी बढ़ाया जा सकता है. उन्होंने विभिन्न विभागों के द्वारा संचालित योजनाओं के साथ नाला संवर्धन, गौठान निर्माण, जैविक खाद के उत्पादन एवं सब्जी एवं फलों की बाड़ी के उत्पादन से जोड़ने के निर्देश दिए हैं.
भूपेश बघेल ने कहा कि छत्तीसगढ़ में पानी की कमी नहीं है, इसके संरक्षण की जरूरत है. प्रत्येक विकासखंड में नदी-नालों के उद्गम स्थल से शुरू करते हुए पानी के प्रबंधन के लिए प्लानिंग करना होगा. उन्होंने इसके लिए इसरो से प्राप्त नक्शे का उपयोग करने पर बल दिया. उन्होंने कहा कि नदी- नालों में बारह महीने पानी रहे, इसके लिए छोटे-छोटे बोल्डर चेक डेम जैसी संरचनाओं की जरूरत है. इससे नदी-नालों को पुर्नजीवन मिलेगा. मुख्यमंत्री ने कहा कि गांवों में स्वयं के संसाधनों ने समृद्ध गांव बनने की क्षमता है, जरूरत है उनके समुचित संयोजन एवं समन्वय की. उन्होंने ग्रामीण अर्थव्यवस्था में जैविक खाद के प्रारंभिक संसाधन के रूप में चिन्हिंत करते हुए गोठान के निर्माण एवं सामुदायिक जैव उर्वरक एवं गोबर गैस निर्माण की जरूरत पर जोर दिया और निर्देशित किया कि इसे गौठान के किनारे ही विकसित किया जाए, ताकि गांव की मूलभूत जरूरतों पानी, जैविक उर्वरक एवं सामुदायिक गोबर गैस से ईधन की पूर्ति हो सके. मुख्यमंत्री ने गांवों में पशुओं के लिए गौठान निर्माण के लिए जगह का चिन्हांकन करने के साथ माडल नक्शा बनाने को कहा जिससे एकरूपता रहे. उन्होंने गौठान के पास नलकूप खनन कर इसमें सोलर पम्प लगाने, पानी की टंकी स्थापित करने और तार से फेसिंग कराने पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि किसान उपयोग से बचा हुआ पैरा गौठान में दे सकते है. यहां पैरा की कटाई के लिए पैरा कुट्टी मशीन भी लगायी जा सकती है. गौठान के नजदीक वर्मीकम्पोस्ट खाद बनाने और गोबर गैस संयंत्र लगाने का कार्य भी किया जा सकता है और इसके माध्यम से गोबर गैस कनेक्शन घर-घर भी दिया जा सकता है. इसी प्रकार नस्ल सुधार की भी व्यवस्था भी की जा सकती है. गौठान की व्यवस्था से पशुओं के द्वारा फसलों की चराई की समस्या भी दूर होगी. इसी तरह दूध संग्रहण केन्द्र और कलामंच भी बनाया जा सकता है. दुधारू पशुओं की देखरेख के लिए समिति भी बनायी जा सकती है.
कृषि मंत्री रविन्द्र चौबे ने कहा कि इस महत्वाकांक्षी योजना को मूर्त रूप देने के लिए सभी जिलों के प्रत्येक विकासखंड स्तर पर पायलेट प्रोजेक्ट बनाने जाने की जरूरत बताई. उन्होंने कहा कि नरवा, गरूवा, घुरवा और बारी छत्तीसगढ़ की पहचान है. ग्रामीण क्षेत्रों की समृद्धि में इनका योगदान रहा है. इनके संरक्षण और विकास से ही हम गांवों में समृद्धि और किसानों को खुशहाल बना सकते है. पंचायत एवं ग्रामीण विकास, वन, कृषि और इससे जड़े विभाग इसके लिए तैयारियां शुरू कर दे. चौबे ने कहा कि यह योजना ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए एक माइलस्टोन साबित होगी. पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री टी.एस. सिंहदेव ने सभी गांवों में पंचायत विभाग के द्वारा संचालित मनरेगा से गौठान के निर्माण एवं प्रत्येक ब्लॉक में 15 प्रतिशत गौठान को चिन्हांकित कर मॉडल के तौर पर विकसित करने के निर्देश दिए. उन्होंने कहा कि राजस्व विभाग द्वारा हर विकासखंड में गौठान के लिए जमीन का चिन्हांकन कर लिया जाए. इसके लिए पांच से सात एकड़ जमीन रखी जाए. मुख्य सचिव सुनील कुमार कुजुर ने कहा कि नरवा, गरूवा, घुरवा, बाड़ी के विकास और संवर्घन के लिए की उच्च स्तरीय समिति में अपर मुख्य सचिव वन, पंचायत एवं ग्रामीण विकास और कृषि शामिल किए गए है. अपर मुख्य सचिव आर.पी. मंडल ने बताया कि ग्राम पंचायतों में गौठान और चारागाह के लिए भूमि का चिन्हांकन 23-26 जनवरी के बीच आयोजित की जा रही ग्राम सभाओं के माध्यम से किया जाएगा.

नरवा, गरवा, घुरवा, बाड़ी योजना को लेकर बैठक में प्रेजेंटेशन देने वाले मुख्यमंत्री के सलाहकार डा.प्रदीप शर्मा ने कहा कि- छत्तीसगढ़ की आत्मा गांवों में बसती है. यहां के 70 फीसदी लोग गांवों में रहते हैं. पहले इन गांवों में नैसर्गिक संसाधनों में श्रम का निवेश करने से समृद्धि प्राप्त होती थी. धीरे-धीरे संसाधन ऐसे नहीं रहे कि श्रम का निवेश बढ़ सके. नालों में, तालाबों में पानी सूख गया, जमीन बंजर होती चली गई. ऐसी स्थिति में हमारे पास गांव में जो संसाधन उपलब्ध हैं, उन्हें पुर्नसंयोजित कर एक जगह लाकर हमने तय किया कि संसाधन को ठीक कर पाएंगे. नरवा, गरवा, घुरवा, बाड़ी. छत्तीसगढ़ की पहचान रही है. यहां के किसी भी गांव में चले जाएं यही चार चीजें मिलेंगी और जहां यह चारों चीजें होंगी वह गांव समृद्ध होगा. इस योजना के जरिए ऐसी जगह बनाई जाए, जहां जानवर घूम सके, बेहतर चारा खा सके. इसे हमने गौठान नाम दिया है. यह सरकार का गौठान होगा. कम से कम 3 एकड़ या उससे अधिक भी हो सकता है. इससे जुड़ा दस एकड़ का चारागाह तैयार किया जाएगा. प्रदीप शर्मा ने कहा सरकार ने एडवाइजरी जारी की है कि 26 जनवरी को सभी जिलों में ग्राम सभा की बैठक में गौठान, चारागाह की जमीनों का चिन्हांकन कर लिया जाए. जिससे आने वाले दिनों में जब इसका डिजाइन डेवलप हो जाए, जब क्रियान्वन की दिशा तय की जा सके. उन्होंने कहा कि

इस हाइलेवल बैठक में अपर मुख्य सचिव कृषि के.डी.पी. राव, अपर मुख्य सचिव पंचायत एवं ग्रामीण विकास आर. पी. मंडल, मुख्यमंत्री के सलाहकार  विनोद वर्मा,  रूचिर गर्ग, राजेश तिवारी, सहित संबंधित विभागों के वरिष्ठ अधिकारीगण उपस्थित थे. उल्लेखनीय है कि मुख्य सचिव की अध्यक्षता में नरवा, गरूवा, घुरवा और बारी के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए उच्च स्तरीय कमेटी बनायी गयी है. पूरे प्रदेश में कार्यक्रम का मूल्यांकन एवं गति देने का कार्य करेगी.