सरगुजा/रायपुर। छत्तीसगढ़ में उद्योगपति अडानी के लिए भूपेश सरकार भी क्या रमन सिंह के रास्ते पर चल पड़ी है ? यह सवाल छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन की ओर से उठाए जा रहे हैं. सवाल सिर्फ उठाए ही नहीं जा रहे बल्कि सीधे तौर पर सीबीए के संयोजक आलोक शुक्ला का यह आरोप है कि वर्तमान कांग्रेस सरकार भी अडानी को फायदा पहुँचाने में जुट गई है.  आरोपों और सवालों के साथ बकायदा आलोक शुक्ला ने मुख्यमंत्री के नाम कलेक्टर को जो ज्ञापना सौंपा उसमें उन्होंने कहा है कि स्थानीय आदिवासी, ग्रामीणों के विरोध के बाद भी कोल खनन के लिए जबरन भूमि अधिग्रहण किया जा रहा है. और यह सब सरकारी तंत्र, पुलिस-प्रशासन की मौजूदगी में किया जा रहा है.

आलोक शुक्ला ने गांव में हो रहे विरोध की तस्वीरें और वीडियो भी जारी किया है जिसमें पुलिस की मौजूदगी और ग्रमीणों की भीड़ के बीच नाराजगी साफ तौर पर देखीं और सुनी जा सकती है. आलोक शुक्ला का कहना है कि सरगुजा जिले के उदयपुर में परसा कोल ब्लॉक खनन का ठेका एमडीओ के तहत अडानी के पास है. और इसके लिए नियम विरुद्ध तरीके से भूमि अधिग्रहण किया जा रहा है. जबकि पाँचवी अनुसूचित क्षेत्रों बिना ग्राम सभा के अनुमति का ऐसा नहीं किया जा सकता. इस मामले में शिकायत के बाद भी किसी तरह की कोई कार्यवाही नहीं हो रही है.
आलोक शुक्ला ने बताया कि आज फतेपुर गांव में भारी पुलिस बल की मौजूदगी में सर्वे का काम जबरन कराया जा रहा, जिसका ग्रामीण विरोध भी कर रहे हैं. उन्होंने इस मामले में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से तत्काल संज्ञान लेते हुए कार्यवाही की मांग की है.

हम यहाँ छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन और स्थानीय ग्रमीणों की ओर से मुख्यमंत्री के नाम कलेक्टर सौंपे गए ज्ञापन की कॉपी पोस्ट कर रहे हैं जिसमें आलोक शुक्ला ने बड़े विस्तार अडानी और सरकार की स्थिति को बताया है. उन्होंने इस मामले में सरकार से अडानी के खिलाफ आपराधिक मुकदमा भी दर्ज करने की मांग की है.

मुख्यमंत्री के नाम कलेक्टर दिए ज्ञापन की कॉपी में छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन ने यह लिखा है

सरगुजा जिले के उदयपुर जिले में संचालित परसा ईस्ट केते बासन कोयला खदान एवं प्रस्तावित परसा कोल ब्लॉक राजस्थान राज्य विधुत उत्पादन निगम लिमिटेड को आवंटित हैं, इसका खनन का ठेका MDO के माध्यम से अडानी कंपनी के पास हैं. इन दोनों परियोजनाओं को यहाँ के निवासरत आदिवासी और अन्य परपरागत वन समुदाय के अधिकारों का हनन कर, संवैधानिक प्रावधानों, नियमो – प्रक्रियाओं की धज्जियाँ उड़ाकर संचालित किया जा रहा हैं. कम्पनी और शासकीय कर्मचारी मिलकर षड्यंत्र पूर्वक फर्जी जानकारियों के आधार पर फर्जी ग्रामसभाओं के प्रस्ताव तैयार कर इन खनन परियोजनाओं को स्वीकृतियां प्रदान करवा रहे हैं l हम प्रभावित ग्रामीणों द्वारा कई बार शासन प्रशासन के समक्ष आवेदन लिखित रूप में सोंपे गए लेकिन आज तक हमारे किसी भी आवेदन पर कार्यवाही नही की गई.

अतः आज ग्राम फतेहपुर से उदयपुर तक हम प्रभावित ग्रामीणों द्वारा पदयात्रा निकालकर उपरोक्त मुद्दों से सम्बंधित निम्न मांगो पर कार्यवाही हेतु ज्ञापन आपको सादर प्रेषित हैं. यदि हमारी इन मांगो पर शीघ्र कार्यवाही नही हुई तो हम प्रभावित ग्रामीण आदिवासी रायपुर तक पदयात्रा कर अपनी मांग राज्य सरकार के समक्ष रखने मजबूर होंगे.

1. परसा कोल ब्लाक हेतु साल्ही, हरिहरपुर एवं फतेहपुर ग्राम की भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया निरस्त की जाये :- जैसा आप जानते हैं कि सरगुजा जिला संविधान की पांचवी अनुसूची में शामिल हैं.  इन क्षेत्रों की पंचायती राज व्यवस्था कायम करते हुए देश की संसद ने पेसा कानून 1996 में यह प्रावधान किया कि इन क्षेत्रों में किसी भी परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण के पूर्व ग्रामसभा की सहमती आवश्यक हैं. प्रस्तावित परसा कोल ब्लाक हेतु तीन गाँव की भूमि अधिग्रहण की कार्यवाही ग्रामसभा स्वीकृति लिए बिना ही संपादित कर दी गई जो कि पेसा कानून 1996 एवं भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनार्व्यवास्थापन में उचित प्रतिकार और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम 2013 की धारा 41 की उपधारा (3) का खुला उल्लंघन हैं l अतः तत्काल इस भूमि अधिग्रहण की कार्यवाही को रद्द किया जाये.

2. परसा कोल ब्लाक हेतु स्टेज 1 वन स्वीकृति को निरस्त कर वनाधिकार कानून के उल्लंघन की जाँच की जाये :- वनाधिकार मान्यता कानून 2006 की धारा 4(5) एवं केन्द्रीय वन पर्यावरण एवं क्लाइमेट चेंज मंत्रालय का दिनांक 30 जुलाई 2009 का आदेश हैं कि किसी भी वन भूमि के डायवर्सन के पूर्व वनाधिकारों की मान्यता की प्रकिया की समाप्ति की घोषणा एवं ग्रामसभा की लिखित सहमती आवश्यक हैं. परियोजना प्रभावित गाँव साल्ही, हरिहरपुर, फतेहपुर एवं घाट्बर्रा गाँव में अभी भी व्यक्तिगत वनाधिकारो की मान्यता की प्रक्रिया जारी हैं, सामुदायिक वन संसाधन लंबित हैं.

नियमानुसार हमारी ग्रामसभाओं ने कई बार वन भूमि के डायवर्सन के विरोध में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर शासन को भेजे हैं, परन्तु उन प्रस्ताव को लगातार दरकिनार कर अडानी कंपनी के दवाब में वनाधिकारों की मान्यता की प्रक्रिया की समाप्ति दिखाने जबरन प्रस्ताव लिखवाए गए. अतः नियम विरुद्ध हासिल स्टेज 1 स्वीकृति को निरस्त कर वनाधिकार कानून के उल्लंघन की जाँच की जाएँ .

इस संवंध में हम यह भी कहना चाहते हैं कि जंगल-जमीन पर पीढियों से हमारी आजीविका और संस्कृति निर्भर हैं और यदि खनन में इसका विनाश होता हैं तो न सिर्फ आजीविका बल्कि हमारा अस्तित्व ही ख़त्म हो जायेगा. इस संवंध में वनाधिकार मान्यता कानून की धारा 2 (क), 3 (1) (झ), तथा 5 (क) (ख) (ग) हमारे पारंपरिक सीमा के अन्दर प्राकृतिक सम्पदा और संस्कृति की सुरक्षा और प्रवंधन की जिम्मेदारी ग्रामसभा को सोंपता हैं l इसलिए ग्रामसभाओं का इस खनन परियोजना का सतत विरोध एवं वन संपदा बचाने किये गए प्रस्ताव का सम्मान किया जाये.

3. ग्रामसभा का फर्जी प्रस्ताव तैयार करवाने वाले अधिकारी और अडानी कंपनी पर अपराधिक मुकदमा दर्ज किया जाये. प्रस्तावित परसा कोल ब्लाक की पर्यावरणीय स्वीकृति की प्रक्रिया में हमारी आपत्तियों पर केन्द्रीय वन पर्यावरण एवं क्लाइमेट चेंज मंत्रालय की पर्यावरणीय प्रभाव आंकलन समिति (EAC) ने प्रभावित समुदाय की आजीविका पर प्रभाव और खनन हेतु ग्रामसभाओं की लिखित सहमती की मांग की. इस संवंध में अडानी कम्पनी ने स्थानीय शासकीय कर्मचारियों के साथ मिलकर ग्राम साल्ही, हरिहरपुर एवं फतेहपुर की ग्रामसभाओ के फर्जी प्रस्ताव तैयार कर मंत्रालय की EAC कमिटी के समक्ष प्रस्तुत किये l इन फर्जी प्रस्तावों के खिलाफ ग्रामीणों ने जाँच और कार्यवाही हेतु जिला कलेक्टर को (संलग्न क्रमांक1) और स्थानीय थाने में मामला पंजीबद्ध करने आवेदन दिया (संलग्न क्रमांक 2) परन्तु आज अभी तक हमारे आवेदन पर कोई भी कार्यवाही नही की गई हैं. अतः हमारी ग्रामसभाओ के कूटरचित फर्जी प्रस्ताव तैयार करने वाले कर्मचारियों और अडानी कम्पनी पर अपराधिक मामला पंजीवध किया जाएँ.

4. परसा ईस्ट केते बासन खनन परियोजना के विस्तार पर रोक लगाते हुए ग्राम घाटबर्रा के भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को रद्द किया जाये :- इस परियोजना की वन स्वीकृति को माननीय नेशनल ग्रीन ट्रिव्युनल के द्वारा वर्ष 2014 में निरस्त किया जा चूका हैं l यह मामला फ़िलहाल माननीय उच्चतम न्यायलय में लंबित हैं l न्यायालय से अंतिम फैसला आने के पूर्व इस खनन परियोजना के विस्तार की अनुमति पर रोक लगाई जाये एवं ग्राम घाटबर्रा के भूमि अधिग्रहण की कार्यवाही को रद्द किया जाएँ.

5. वनाधिकार मान्यता कानून के तहत आवेदित एवं सत्यापित रकबे का व्यक्तिगत वनाधिकार पत्रक बनाया जाये. ग्राम साल्ही एवं घाटबर्रा पंचायत में वनाधिकार मान्यता कानून की प्रक्रिया के तहत आवेदकों द्वारा जमा किये गये वनाधिकार के दावों का सत्यापन एवं ग्रामसभा से अनुमोदन के बाद भी कम क्षेत्रफल का अधिकार पत्रक प्रदान किया जा रहा हैं (संलग्न 3) जबकि नियमानुसार दावेदार को लिखित सुचना के बिना उसके दावे को ख़ारिज नही किया जा सकता. अतः वनाधिकार समिति से सत्यापित और ग्रामसभा से अनुमोदित क्षेत्रफल का वनाधिकार पत्रक दावेदार को प्रदान किया जाएँ.