छत्तीसगढ़ छद्म साहित्यकारों के लिए भी उर्वर भूमि है। हमारे साहित्य को इस तरह संक्रमित किया गया कि माटीपुत्र मौलिक रचनाकारों से अन्याय हुआ, उन्हें अपमानित किया गया।
छत्तीसगढ़ का साहित्य सम्बन्धों पर चलता है। इन सम्बन्धों से छद्म साहित्यकार पनपते हैं।
इस मकड़जाल से परे स्वाभिमानी लक्ष्मण मस्तूरिया ने छत्तीसगढ़ का ’राज्य-गान’ लिखा है-
“ मोर संग चलव गा…मोर संग चलव जी” 
इस गीत की हर पंक्ति ख़ास है और छत्तीसगढ़ मन की व्यथा-कथा कहती है- 
“ओ गिरे थके हपटे मन
अऊ परे डरे मनखे मन” 
चिंतन कीजिए यह क्यों लिखा होगा मस्तूरियाजी ने। गिरे, थके, हपटे….कौन हैं? यह दो पंक्तियाँ हमारा पूरा इतिहास और वर्तमान कहती हैं। यह गीत छत्तीसगढ़ के राज्य बनने के पूर्व लिखा गया और आज भी इसकी सामयिकता, इसका यथार्थ जस का तस है।
यह गीत किसने न सुना होगा?
अब इसकी ये विशेष पंक्तियाँ दोहराइए-
“महानदी मै अरपा पैरी
तन मन धो हरियालव
कहाँ जाहु बड़ दूर हे गँगा…..
कहाँ जाहु बड़ दूर हे गँगा
पापी ईहे तरो रे 
मोर संग चलव गा” 
ये ध्येय और बोध पंक्तियाँ हमेशा याद रखिएगा- 
“ कहाँ जाहू बड़ दूर हे गँगा” 
हमारी गंगा तो महानदी, अरपा और पैरी हैं। 
आश्चर्य, घोर आश्चर्य और अपमान इससे बड़ा क्या कि लक्ष्मण मस्तूरिया जी को पद्मश्री सम्मान नहीं मिला। राज्य सरकार का यह लोक-संस्कृति और कलाकार को अपमानित करता रवैया है। छद्म साहित्यकार इससे ख़ुश ही होंगे, इससे उन्हें सरकारी प्रश्रय मिलता है। उनका साहित्यिक व्यापार चलता है। एक छत्तीसगढ़िया होने के नाते क्या आप ख़ुद से यह सवाल पूछ सकते हैं-
“मस्तूरियाजी को पद्मश्री क्यों नहीं मिला?”
मेरे मुताबिक़ जवाब है- क्योंकि छत्तीसगढ़ का साहित्य जगत भ्रष्ट है। सरकार उन्हें पोषित करती है जो उसके तलुए में जीभ लगाते हैं। हमारी पहचान, हमारे साहित्य तक पर बाहरियों का क़ब्ज़ा है। मस्तूरियाजी जैसे स्वाभिमानी इस वातावरण में असहज महसूस करते रहे होंगे। क्या आपको लगता है छत्तीसगढ़ में मस्तूरियाजी से अधिक लोकप्रिय और जनवादी कवि-गीतकार हुआ कोई? शर्म आनी चाहिए हमें???
यह आलेख अताह तापस चतुर्वेदी(युवा कलमकार)  के हैं


आगे नंदकिशोर शुक्ल( साहित्यकार और स्वतंत्र पत्रकार) लिखते हैं-

ए आलेख लs अवस करके पढ़व-गुनव अउ कुछु जमीनी-जंग करे बर निकरव घर ले बाहिर ! सोसल-मीडिया घलाव ले थोर-बहुत बाहिर निकरव ! कब तक घर-गिरस्थी, नउकरी-चाकरी, नाम-जस, पद-पइसा-परसिद्धी-पुरुस्कार आदि के माया-मोह के जंजाल मँ फँस के अपन रतन-अमोला जइसे मानुस-जीवन लs खइता करत रइहव ? कुछु त बिचार करव…जइसे ‘छत्तीसगढ़़ के रतन अमोला बेटा’ अचानक चल दिहिस वइसने कब, कोन, कहाँ, कइसे चल दिही तेला कोन जानsथे ? तेखरे सेती सियानमन कइथें के ए अनमोल समे के सदुपयोग  करव, खइता झन करव…