रायपुर। छत्तीसगढ़ के राज्यपाल बलरामजी दास टंडन का 91 वर्ष की आयु में निधन हो गया. 6 बार विधायक और पंजाब के उपमुख्यमंत्री रहे टंडन जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में से एक थे. उनका जन्म 01 नवंबर 1927 को अमृतसर पंजाब में हुआ. उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय लाहौर से स्नातक की उपाधि प्राप्त की. अमृतसर के चौक पासियां की एक तंग गली में उनका पैतृक घर है  यहीं उन्होंने अपना होश संभाला और यहीं से उनके राजनीतिक जीवन के सफर की भी शुरुआत हुई.

जीवन के शुरुआत से ही वे आरएसएस की विचारधारा से जुड़ गए थे. बलरामजी दास टंडन शुरु से ही कर्मठ स्वभाव के थे. संघ से जुड़े लोगों के मुताबिक वे बेहद अनुशासित व्यक्तित्व के व्यक्ति थे. 1950-51 में बीडी टंडन संघ का प्रचार करने के लिए हिमाचल प्रदेश के चंबा गए हुए थे. रात को उन्हें संदेश दिया गया कि वे जल्द डलहौजी पहुंचें, जहां संघ के प्रचारकों की बैठक है. टंडन रात को ही सफर पर पैदल निकल पड़े और 35 किलोमीटर चलने के बाद सुबह डलहौजी पहुंच गए. 1953 में भारतीय जनसंघ के तत्कालीन अध्यक्ष श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जम्मू-कश्मीर में धारा 370 हटाने के लिए विरोध-प्रदर्शन शुरू किया था. उस दौरान उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया था.
90 वें जन्मदिन की तस्वीर

जब बढ़ी हुई सैलरी लेने से इंकार किया

बलरामजी दास टंडन अपने सौम्य और शांत स्वभाव के लिए जाने जाते थे. केंद्र ने जब राज्यपालों का वेतन बढ़ाया था तब बलरामदास टंडन ने देश मे मिसाल पेश करते हुए कहा था कि वह बढ़ा हुआ वेतन नहीं लेंगे. टंडन मौजूदा स्वागत परंपरा के खिलाफ थे वे जब किसी भी कार्यक्रम में केवल एक फूल से ही स्वागत किये जाने का आग्रह करते थे.

ऐसी थी राजनीतिक यात्रा

टंडन 1953 में पहली बार अमृतसर नगर निगम के पार्षद निर्वाचित हुए. जिसके बाद वे अमृतसर विधान सभा क्षेत्र से वर्ष 1957, 1962, 1967, 1969 एवं 1977 में विधानसभा के लिए निर्वाचित हुए. वर्ष 1997 के विधानसभा चुनाव में टण्डन राजपुरा विधानसभा सीट से निर्वाचित हुए थे. उन्होंने पंजाब मंत्रिमंडल में वरिष्ठ केबिनेट मंत्री के रूप में उद्योग स्वास्थ्य स्थानीय शासन श्रम एवं रोजगार आदि विभागों में अपनी सेवाएं दी और कुशल प्रशासनिक क्षमता का परिचय दिया. टण्डन वर्ष 1979 से 1980 के दौरान पंजाब विधानसभा में विपक्ष के नेता भी रहे. टंडन जेनेवा में श्रम विभाग के अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधिमण्डल के उपनेता के रूप में शामिल हुए और सम्मेलन को सम्बोधित किया. उन्होंने नेपाल की राजधानी काठमाण्डू में सार्क देशों के स्थानीय निकाय सम्मेलन में भी भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व किया. 1975 से 1977 तक देश में आपातकाल के दौरान वे भी जेल में रहे.

बलरामजी दास टंडन ने वर्ष 1947 में देश के विभाजन के समय पाकिस्तान से आने वाले लोगों के लिए बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी.  1980 से 1995 के दौरान उन्होंने आतंकवाद का सामना करने तथा इससे लड़ने के लिए पंजाब के जनसामान्य का मनोबल बढ़ाया. उन्होंने आतंकवाद से प्रभावित परिवारों की मदद करने के उद्देश्य से एक कमेटी का गठन किया. टण्डन स्वयं इस फोरम के चेयरमेन थे. ‘ कॉम्पिटेंट फाउंडेशन के चेयरमेन के पद पर कार्य करते हुए उन्होंने रक्तदान शिविर निःशुल्क दवाई वितरण निःशुल्क ऑपरेशन जैसे जनहितकारी कार्यों के माध्यम से गरीबों एवं जरूरतमंदों की मदद की.

बलरामजी दास टंडन के सुपुत्र संजय टण्डन ने उनके जीवन पर आधारित किताब ‘एक प्रेरक चरित्र‘ लिखी जिसका विमोचन वर्ष 2009 में तत्कालीन पूर्व उप प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी ने किया. सौम्य स्वभाव के टंडन जी की खेलों में गहरी रूचि है. वे कुश्ती व्हालीबॉल तैराकी एवं कबड्डी जैसे खेलों के सक्रिय खिलाड़ी रहे हैं.