जहां की धरा का करीब आधा हिस्सा वन हो, उस धरा के निवासी विपन्न क्यों हो ? संपन्न क्यों नहीं? क्यों नहीं उन्हें उनकी मेहताना का उचित दाम मिले? क्यों नहीं उन्हें दाम के संग सम्मान मिले? वनवासियों के इसी हक और अधिकार को समझा सूबे के मुखिया डाॅ.रमन सिंह ने. वनवासियों के लिए रमन सरकार ने कई योजनाएं बनाई है. इन योजनाओं में से एक बड़ी योजना है चरण पादुका. मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने वनवासियों से जैसा कहा, वैसा किया. उन्होंने सरकार में आने के तीन साल बाद ही इस योजना की शुरुआत कर दी थी. आज इस योजना से 14 लाख से ज्यादा तेंदूपत्ता संग्राहक लाभांवित हो रहे हैं.  

ये जंगलों में नंगे पांव चलते थे. उबड़-खाबड़-कंटीले रास्तें में गांव-गांव चलते थे. ये वनवासी है. ये यहां के मूलनिवासी हैं. इनसे प्रदेश की वनसंपदा है. इनसे लघु वनोपज है. इनसे हरा सोना तेंदूपत्ता है, इनसे ही चार-चिरौंजी है, लेकिन सवाल ये था कि इनके लिए कौन है? संपन्न वन संपदा वाले प्रदेश में नंगे पांव वनोपज संग्रहण करने वाले आदिवासी विपन्न क्यों हैं? ये सवाल मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह को सत्ता में आने के पहले से ही सालता रहा, लिहाजा उन्होंने ये तय किया की वनवासियों को उनके किसी अधिकार से वंचित नहीं रखा जाएगा. वनसंपदा को इकट्ठा कर प्रदेश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने वाले वनवासियों को सरकार मजबूत करेगी. इससे पहले की वनवासियों के चलाए जा रहे अन्य योजनाओं की बात करें सबसे पहले बात उस योजना की जिसने नंगे पांव चुभने वाले आदिवासियों के दर्द को कम कर दिया, जिसने अब कंटीलें राहों में चलना आसान कर दिया. तेन्दूपत्ता तोड़ाई कार्य में लगे संग्राहकों को सरकार ने वर्ष 2006 में बड़ी सौगात दी और उनके लिए शुरू किया चरण पादुका योजना. मुख्यमंत्री डाॅ.रमन सिंह कहते हैं कि-

जब मैंने चरण पादुका योजना शुरू की थी तो लोगों ने मजाक उड़ाया था, आज इसी चरण पादुका योजना के कारण वनवासियों के पैरों में कांटे नहीं चुंभते. देश के अन्य राज्यों से छत्तीसगढ़ राज्य आदिवासियों के लिए कार्य और योजनाएं संचालित करने में अव्वल है. आप किसी भी राज्य में चले जाइए, अनुसूचित जातियों और जनजातियों के सामाजिक आर्थिक विकास के लिए जितनी योजनाएं छत्तीसगढ़ में चल रही हैं, उतनी किसी भी राज्य में नहीं. लोग बोलते थे कि, ये चरण पादुका क्यों दी जा रही, वनवासी चप्पल पहनते है. मेरा कहना था कि, चप्पल वो इसलिए नहीं पहनते कि उन्हें पहनना नहीं आता बल्कि इसलिए नहीं पहन पाते क्योंकि उनके पास चप्पल के लिए पैसे ही नहीं है. चप्पल नहीं होने के कारण वनवासियों के पैरों में गैंग्रीन की बीमारी हो जाती थी, इस कारण पैर काटने तक की नौबत आ जाती थी, मगर अब वो नौबत नहीं आती. राज्य सरकार ने 13 लाख तेंदुपत्ता संग्राहकों को अब तक चरण पादुका दी है.

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पांव में जूता-चप्पल का महत्व क्या होता है इसका एहसास आमतौर पर हममें से शायद ही किसी को हो. लेकिन बीजापुर की ग्राम इटपाल  की रहने वाली तेन्दूपत्ता संग्राहक परिवार की 70 वर्षिया महिला सदस्य सोनमती जानती हैं. सोनमती ने बताया कि  पूरी जिंदगी इन पहाड़ों,जंगलों में नंगे पांव आना जाना किया, बुढापे में छोटा से पत्थर का टुकड़ा भी चुभता है तो बड़ी तकलीफ देता है. रमन सरकार के चरण पादुका से राहत है. सोनमती कहती हैं कि सरकार ने इनके बारे में सोचा इनकी पीड़ा का सरकार को फिक्र है. वे बताती हैं नंगे पैर रहने से किन तकलीफों से उन्हें रोज दो-चार होना पड़ता था. जूते-चप्पल न होने के कारण से पांव जख्मी हो जाते थे. कई बार तो छाले भी पड़ जाते थे. इससे जख्म बढ़ने का खतरा रहता था. ऐसे में परिवार का भरण पोषण भी कठिन हो गया था. अब सरकार द्वारा विशेष चप्पल और जूते का वितरण करने से राहत मिली है. बलदेव राणा बताते हैं कि वनोपज और कृषि ही इनकी परंपरागत व्यवसाय है. वनोपज संग्रहण में जाने से कई बार नंगे पैर चोटिल हो गए, महत्वपूर्ण कार्य नंगे पांव असंभव हुआ करते थे. मगर चरण पादुका से कृषि कार्य के अलावा रोजमर्रा के कार्य करने में भी आसानी होती है. जिले के ग्राम जैतलूर में रहने वाले जोगेंद्र सिंह ठाकुर बताते हैं कि तेंदूपत्ता संग्रहण में संग्राहकों को होने वाली दिक्कतों की तरफ सरकार ने कदम उठाया है. जो सराहनीय तो है. इस चरण पादुका से वानांचल इलाकों के आदिवासियों में भी लोगों की सरकार से जुड़ने की इच्छा जागृत हुई है. वहीं अन्य आदिवासियों का कहना है कि गांव चारों ओर जंगल से घिरा है. पैरों के लिए पनही (चरण पादुका) मिलने से कांटे पत्थर या चोट से वे अपने को सुरक्षित महसूस करते हैं. क्योंकि पनही ने उनके पांव को सुरक्षा दी है. अब वे पहले के बनिस्बत ज्यादा दूरी तय करते हैं. वनोपज प्राप्त करने से उनकी क्षमता में भी इजाफा हुआ है. वे एक पखवाड़े में ढाई हजार रूपये का तेंदू पत्ता तोड़ लेते हैं. इससे उन्हें 15 हजार रूपये तक की अतिरिक्त आमदनी प्राप्त हुई है.

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नक्सलवाद का दंश झेल रहे बस्तर में आदिवासियों को नित-नए संघर्ष से हर दिन दो चार होना पड़ता है. जंगले के बीच पगडंडियों में चलना रोज पहाड़ों पर चढ़ना इनकी दिनचर्या में शामिल है. लेकिन इस दौरान कांटे से लेकर पेड़ों के ठूंठ और पत्थरों से इनके पांव घायल हो जाते. कई दफा पांव के ज़ख्म ठीक होने से पहले नए ज़ख्म लग जाते थे. ऐसे हालात पूरे बस्तर संभाग के साथ ही प्रदेश के सभी वनांचल क्षेत्रों का है. लेकिन रमन सरकार की चरण पादुका ने इन आदिवासियों के जीवन में बड़ा बदलाव ला दिया है. बस्तर जैसे धुर नक्सल और घने जंगलों में रहने वाले आदिवासियों के जीवन में रमन की चरण पादुका ने बड़ा बदलाव ला दिया है. प्रकृति के रक्षक कहलाने वाले ये आदिवासी जिनकी वजह से आज पर्यावरण संतुलित है. जंगल-पहाड़ ही इनके लिए सबकुछ है. ये ही इनके आजीविका का साधन भी हैं. अपने आजीविका के साधनों को इन्हें प्रति दिन तलाशना पड़ता था. जंगल दर जंगल और पहाड़ दर पहाड़ इन्हें यात्रा करना होता है. इस दौरान इन्हें सांप-बिच्छु, जहरीले कीड़े मकोड़ों के साथ ही नुकीले पत्थर कांटे से भी सामना करना पड़ता है. इस दौरान वे अक्सर घायल हो जाते थे. पांव के ज़ख्म ऐसे की उन्हें एक कदम चलने भी न दे. ऐसे में इनका जीवन यापन करना मुश्किलों से भर जाता. लिहाजा उन्हें उस हाल में भी जंगल-पहाड़ से गुजरना पड़ता. कई दफे तो ये ज़ख्म और भी गहरे हो जाते. कई-कई महीने  उन्हें ठीक होने में लग जाते. इनकी आजीविका का एक साथन तेंदूपत्ता भी है.

दरअसल छत्तीसगढ़ के कुल भौगोलिक क्षेत्र एक लाख 35 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में से 43 प्रतिशत इलाका अर्थात 59 हजार 772 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र वनों से परिपूर्ण है. छत्तीसगढ़ राज्य वन आवरण के मामले में मध्यप्रदेश और अरूणाचल के बाद तीसरे नम्बर पर है. छत्तीसगढ़ सहित देश की आर्थिक व्यवस्था में यहा के हरे-भरे वनों, बेशकीमती वनोपजों और मेहनतकश वनवासियों का महत्वपूर्ण योगदान है यही वजह है कि राज्य के जंगलों के संरक्षण और विकास के साथ यहां के वनवासियों की आमदनी का प्रमुख साधन बनाने के लिए मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के नेतृत्व में किए गए प्रयासों के उत्साहजनक नतीजे सामने आए हैं.  यहां लगभग एक सौ साठ प्रकार के लघु वनोपजों का उत्पादन होता है. अनुमान के अनुसार करीब साढ़े आठ सौ करोड़ रुपए का सालाना व्यापार इन लघु वनोपजों के माध्यम से होता है. राज्य सरकार ने इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए इनके वास्तविक संग्राहकों के हित में इनकी खरीदी, व्यापार और प्रसंस्करण के लिए पुख्ता  इंतजाम किए हुए है. इसलिए सरकार ने यह तय किया कि वनवासियों को कोई भी कमी नहीं होने दी जाएगी. डॉ. रमन सिंह ने बताया कि आज तेंदूपत्ता संग्रहाक ही नहीं उनके पूरे परिवार के लिए विभिन्न योजनाएं चलाई जा रहे हैं जिनसे वे लाभांवित हो रहे हैं.

एक नजर तेंदूपत्ता संग्राहकों के लिए चलाई जा रही योजना और लाभांवित परिवारों पर-

  • चरणपादुका योजना के तहत राज्य में अब 36 लाख 43 हजार तेंदूपत्ता संग्राहकों को चरणपादुकाएं दी जा चुकी हैं. इस साल अगस्त महीने से 12 लाख चरण पादुकाओं को वितरण किया जा रहा है.
  • साल 2018-19 में दस हजार 279 तेंदूपत्ता फड़ मुंशियों को साइकिल दी जा चुकी है. इन्हें बीमा योजना में भी शामिल रखा गया है.
  • 1 मार्च 2018 से तेंदूपत्ता संग्राहक परिवारों के मुखिया की बीमार पाॅलिसी में परिवर्तन किया गया है.
  • संग्राहकों को प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना में शामिल किया गया है.
  • प्राथमिक वनोपज सहकारी समितियों के प्रबंधकों की बीमा राशि में 75 हजार रूपए की वृद्धि की गई है.
  • साल 2016 में उनके लिए 25 हजार रूपए के बीमा का प्रावधान था, जिसे बढ़ाकर 2018 में एक लाख रूपए कर दिया गया है.

वन मंत्री महेश गागड़ा और आदिम जाति कल्याण मंत्री केदार कश्यप कहते हैं कि मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने वनवासियों के लिए एक ऐसी योजना बनाई जो मेरे दिल के बहुत करीब है. डॉ. रमन सिंह ने सही मायने में उस वर्ग की चिंता जो नंगे पाव ही जंगलों में चलते थे. चरण पादुका से वनवासियों का सम्मान बढ़ा है. तेंदूपता संग्राहकों के जीवन में यह बदलाव सरकार के नीतिगत प्रयासों का असर है. रमन सरकार हर साल तेंदूपत्ता संग्राहकों को बोनस तो देती है, सरकार ने चप्पल-जूता और साड़ी भी दे रही है. इसमें कोई दो राय नहीं सरकार के इन प्रयासों से या कहिए चरण पादुका योजना से कोई भी वनवासी अब नंगे पाव रहता होगा.

ऐसे में यही कहना होगा कि आदिवासियों की तकलीफों को अगर दूर करने का किसी ने काम किया है तो वह है डॉ रमन सिंह की सरकार ने. निश्चित ही चरण पादुका ने आदिवासियों की तकलीफों को कम करने का काम किया है. अब वे ना सिर्फ पहले से प्रतिदिन ज्यादा दूरी तय करते हैं वह भी बिना किसी तकलीफ के. बल्कि उनकी आमदनी भी बढ़ी है.

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