किसी भी देश या प्रदेश में रहने वाले नागरिकों के लिए जितनी जरूरी मूल भूत सुविधाएं होती हैं उतनी ही जरूरी स्वास्थ्य सेवाएं भी. देश के साथ ही प्रदेश में भी एक समय डॉक्टरों की भारी कमी थी. सरकार ने इन्फ्रास्ट्रक्चर तो विकसित कर अस्पताल खोल दिए लेकिन डॉक्टरों की कमी की वजह से वैसी स्वास्थ्य सेवाएं आम जनता को मुहैया नहीं हो पा रही थी जैसी होनी चाहिए थी. एक तरह से स्वास्थ्य सेवाएं ही बगैर डॉक्टर के बीमार हो चली थी. इसकी वजह से बड़ी संख्या में लोग झोला छाप डॉक्टरों और बैगा गुनिया व झाड़-फूंक जैसे अंधविश्वासों की गिरफ्त में आने लगे थे. ऐसी स्थिति किसी भी ऐसे राज्य के लिए बेहद चिंताजनक हो जाती है और प्रदेश को विकास की रेस में पीछे धकेल देती है. इन सारी समस्याओं को एक डॉक्टर, एक अच्छा शासक-प्रशासक ही समझ सकता है. ऐसे में बीमार स्वास्थ्य सेवाओं का इलाज बेहद जरूरी हो जाता है. सूबे के मुखिया खुद एक डॉक्टर हैं इसलिए वे इस समस्या को ज्यादा बेहतर तरीके से समझ सकते थे. रमन ने बेहतर चिकित्सकों की कमी को दूर करने का वादा किया. बेकाबू होते हालात को पटरी पर लाया. उन्होंने जैसा कहा, वैसा किया. अब छत्तीसगढ़ में स्थिति पहले से बेहतर होती चली जा रही है.

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ढाई करोड की आबादी वाला छत्तीसगढ़ बीमार हो रहा था, इलाज न होने से बीमारी गंभीर होती जा रही थी. बीमारी ऐसी की दवा के साथ सर्जरी भी जरुरी थी. सर्जरी आसान भी नहीं थी, क्योंकि इस सर्जरी में न तो कोई चीर-फाड़ करना था और न ही सिलाई. रमन अपनी डॉक्टर की भूमिका में आए और शुरु कर दी बगैर चीर फाड़ वाली सर्जरी. दरअसल प्रदेश की आबादी तेजी से बढ़ रही है. बढ़ती हुई आबादी को सारी सुविधाओं के साथ ही चिकित्सा व्यवस्था की भी जरुरत थी. लेकिन यह व्यवस्था दुरुस्त कैसे होती. प्रदेश में डाक्टरी शिक्षा के लिए महज 2 ही शासकीय मेडिकल कालेज थे. इन कॉलेजों में गिन चुने युवाओं को ही एडमिशन मिलता था. मेडिकल की तैयारी उस दौरान बेहद कठिन मानी जाती थी. वजह थी इन कालेजों में गिनी चुनी कुछ ही सीटें. सूबे की बागडोर संभालने के बाद डॉ रमन ने सबसे पहला कार्य चिकित्सा शिक्षा को लेकर किया. मुख्यमंत्री ने प्रदेश में और मेडिकल कॉलेज खोले जाने का निर्णय लिया. इन शासकीय मेडिकल कॉलेज के अलावा प्रदेश में निजी मेडिकल कॉलेज को भी खोले जाने के रास्ते साफ किया और उन्हें अनुमति दी. सीएम की इस पहले के बाद प्रदेश में शासकीय मेडिकल कॉलेजों की संख्या दो से बढ़कर 6 हो गई. वहीं 3 निजी मेडिकल कॉलेजों को भी अनुमति दे दी. इसके साथ ही प्रदेश में मेडिकल कॉलेजों की संख्या चार गुना हो कर दो से सीधे 9 हो गई. इन कॉलेजों में मेडिकल की भी सीटें पहले से कई गुना हो गई.

अस्पतालों को चलाने के लिए सिर्फ एमबीबीएस डॉक्टरों की ही आवश्यकता नहीं होती उसके लिए अन्य स्टाफ की भी जरुरत होती है. इसके लिए खास तौर पर नर्सों की. सूबे में नर्सों की भी भारी कमी थी. सन 2000 में प्रदेश में मात्र एक ही निजी नर्सिंग महाविद्यालय था. रमन सरकार ने मेडिकल व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए प्रदेश में 7 नए नर्सिंग कॉलेज शुरु कर दिए वहीं निजी नर्सिंग कालेजों खोलने के लिए प्रोत्साहन दिया. जिसके बाद अब प्रदेश में 8 शासकीय नर्सिंग कॉलेज और 76 निजी नर्सिंग कालेज हो गए हैं. शासकीय और निजी नर्सिंग कॉलेजों में सीटों की संख्या अब तकरीबन साढ़े तीन हजार पहुंच गई है. वहीं दंत चिकित्सा को लेकर भी प्रदेश का बुरा हाल था. सन 2000 में प्रदेश में मात्र एक ही निजी दंत महाविद्यालय था लेकिन रमन सरकार ने इस पर भी बड़ा फैसला लेते हुए राजधानी में एक डेंटल कालेज की स्थापना की इसके साथ ही प्रदेश में पांच निजी मेडिकल कॉलेज हो गए हैं. सरकार के इस कदम के बाद अब प्रदेश में डेंटिस्टों की कमी खत्म हो गई है.

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बस्तर के बीहड़ों से भी निकल रहे डाॅक्टर

बचपन से डॉक्टर बनने की इच्छा मन मे पाले एक सरकारी स्कूल से अपनी पढ़ाई शुरू करने वाली दोरनापाल निवासी माया कश्यप ने आज वो मुकाम हासिल कर लिया है. जिसकी चर्चा पूरे जिले में होने लगी है. माया कश्यप दोरनापाल के साथ ही जिले की भी पहली डॉक्टर बनने जा रही है. उन्हें एमबीबीएस के कोर्स में दाखिला मिल चुका है. जो आने वाले कुछ वर्षों में अपनी पढ़ाई पूरी कर के डॉक्टर बन जाएगी. ये इसलिए भी बड़ी बात है जहां कभी कोई डॉक्टर भी आने को लेकर तैयार नहीं होता था. उधर माया ने कहा कि मेडिकल कालेज में चयन होने से उसका ख्वाब पूरा हो गया है और डॉक्टर बन कर वहां के लोगों की सेवा करना चाहती है. माया जब अपनी कक्षा 6वी की पढ़ाई कर रही थी तब उसके सिर से उसके पिता का साया उठ गया था. घर के हालात ऐसे हो गए थे कि एक बारगी उसे ऐसा लगा कि वह अब आगे की पढ़ाई कभी नहीं कर पाएगी.  मगर दृढ़ इच्छा शक्ति के कारण आज माया ने वह संभव कर दिखाया जो किसी ने भी सोचा नहीं था. माया की इस सफलता और परिवार के आर्थिक हालातों की जानकारी जब सूबे के मुखिया डॉ रमन सिंह को लगी तो उन्होंने तुरंत ही उसकी पढ़ाई का सारा खर्चा उठाने की घोषणा कर दी.
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दोरनापाल की बेटी माया कश्यप के साथ ही बारूद के आंगन से निकला एक और गरीब आदिवासी किसान का बेटा भी डाॅक्टर बनकर लोगों की सेवा करने का सपना साकार करने जा रहा है. कहते है मेहनत करने वाले की कभी हार नहीं होती. हालात कितने विपरित और संघर्षपूर्ण हो, मेहनत करने वाले इन परिस्थितियों में सीख लेते हुए अपने लक्ष्य तक पहुंच जाते है. यह कहानी एक ऐसे ही एक युवक की जो अपनी कड़ी मेहनत से निर्धारित लक्ष्य की पहली कड़ी पार कर लिया है. कोन्टा विकासखण्ड के अति नक्सल प्रभावित क्षेत्र बड़े केड़वाल का रहने वाला गरीब आदिवासी किसान का बेटा हरीश पोड़ियाम का जीवन बेहद संघर्षणपूर्ण रहा है. नक्सलियों की वजह से गांव में न तो स्कूल था और न ही अन्य कोई सुविधा. लिहाजा प्राथमिक शिक्षा के लिए हरीश पोड़ियामी गांव छोड़कर सुकमा आ गया. यहां रामपुराम गांव में प्राथमिक शिक्षा के बाद उसका चयन जवाहर नवोदय विद्यालय सुकमा में हुआ. मीडिल से हाई स्कूल तक की पढ़ाई करने के बाद वह 11-12वीं की पढ़ाई के लिए कवर्धा स्थित जवाहर नवोदय विद्यालय चला गया. अब वह रायपुर स्थित जवाहर लाल नेहरू चिकित्सालय महाविद्यालय में डॉक्टरी की पढ़ाई करेगा. वहीं हरीश का कहना है कि वह डॉक्टर बनकर इसी नक्सल क्षेत्र में ही अपनी सेवाएं देना चाहता है. हाल ही में पिता की एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई.  पिता के गुजरने के बाद परिवार आर्थिक तंगी की चपेट में आ गया. परिवार का गुजारा खेती से ही होता है.  माॅं पीसे पोड़ियामी वनोपज बेचकर बेटे को शिक्षा दिलाई. लेकिन डाॅक्टर की पढ़ाई के लिए आर्थिक तंगी अब अड़चन बन गई है. हरीश के मामा का कहना है कि हरीश के एमबीबीएस में चयन होने से उन्हें बेहद खुशी मिली है.

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रमन सरकार के इन कदमों से प्रदेश में डॉक्टरों की कमी इन 15 साल के शासन में धीरे-धीरे पूरी हुई है वहीं आने वाले कुछ सालों में प्रदेश के इन कॉलेजों से इतने बच्चे पढ़कर बाहर निकलेंगे की प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाएं देश में अव्वल हो जाएगी. न सिर्फ ये बच्चे प्रदेश की जनता का इलाज करेंगे बल्कि इनकी सेवाएं डॉक्टरों की कमी से जूझ रहे अन्य राज्यों को भी प्राप्त होगी. हम ऐसा क्यों कह रहे हैं यह जानने व समझने के लिए आपको इन आंकड़ों पर भी गौर करना होगा.

  • प्रदेश में पहले महज दो ही मेडिकल कॉलेज थे जिनमें सीटों की संख्या बेहद कम थी. 6 शासकीय और 3 निजी मेडिकल कॉलेज खुलने के बाद यहां सीटों की संख्या. गवर्मेंट मेडिकल कालेजों में एमबीबीएस की 650 सीट हो गई है वहीं निजी कालेजों में एमबीबीएस की सीट 450 हो गई है. अब प्रदेश में एमबीबीएस की कुल सीट 1100 हो गई है. याने कि 1100 छात्रों को इन सीटों पर एडमिशन मिलेगा और हर साल लगभग इतनी ही संख्या में या इसके आस-पास छात्र डॉक्टर बनकर निकलेंगे. मतलब हर साल हजार की संख्या में प्रदेश को डॉक्टर मिलेंगे.
  • डेंटल कॉलेज की बात करें तो शासकीय दंत महाविद्यालय में 100 सीटें और पांचों निजी डेंटल कॉलेजों में सीटों की संख्या 500 हो गई है. जिससे अब हर साल 600 छात्रों का बीडीएस में प्रवेश होगा और लगभग इतनी ही संख्या में डेंटिस्ट भी प्रदेश को मिलेंगे.
  • 1 से बढ़कर 8 शासकीय नर्सिंग काॅलेजों व 76 निजी नर्सिंग कॉलेजों में 3390 सीट हो गई है. इतने ही छात्र-छात्राएं हर वर्ष नर्सिंग क्षेत्र में अपना कैरियर बनाएंगे.
  • डीकेएस भवन में सुपर स्पेशिएलिटी अस्पताल के साथ ही पीजी की पढ़ाई भी शुरु कर दी गई है.
  • रायपुर मेडिकल कॉलेज में कैंसर यूनिट की स्थापना.
  • बिलासपुर में भी राज्य कैंसर अस्पताल की स्थापना.
  • सभी मेडिकल कॉलेजों में ट्रामा यूनिट की स्थापना.
  • रायपुर, बिलासपुर, जगदलपुर और रायपुर में पीजी सीट प्रारंभ

रमन सरकार के इन कदमों ने छत्तीसगढ़ में स्वास्थ्य सेवा एवं चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में एक नई क्रांति ला दी है. प्रदेश में शासकीय चिकित्सालयों के अलावा अब बड़ी संख्या में निजी नर्सिंग होम और बड़े-बड़े अस्पताल खुल गए हैं. जहां अब बड़े पैमाने पर छात्रों को मेडिकल के क्षेत्र में कैरियर बनाने का मौका मिलेगा वहीं बड़ी संख्या में युवाओं को रोजगार भी मिलेगा. छत्तीसगढ़ में इतने बड़े पैमाने पर चिकित्सीय शिक्षा की पढ़ाई शुरु होने के बाद प्रदेश के युवाओं को मेडिकल के क्षेत्र में कैरियर बनाने के लिए प्रोत्साहित किया है. उसी का ही नतीजा है कि अब उन इलाकों के युवा इस क्षेत्र में कैरियर बनाने के लिए आगे बढ़ रहे हैं जिसकी आबोहवा गोलियों की गूंज और बारूद के धुएं से भरी हुई थी. सुकमा जिले का नाम आते ही जेहन में नक्सलवाद या नक्सल घटना जेहन में आ जाता है. नक़्सलवाद का खात्मा सरकार विकास के रास्ते तय करना चाहती है यहां के दो होनहारों ने बता दिया कि अब सुकमा बदलाव की ओर कदम बढ़ाने लगा है. यहां रहने वाले बच्चे ज्यादा से ज्यादा पटवारी या फिर शिक्षक ही बनना चाहते थे. मगर अब यहां के बच्चे एमबीबीएस की पढाई करने लगे हैं. जहां इस जिले में खुद डॉक्टर की कमी रही है.

नक्सल प्रभावित क्षेत्र के बच्चे अब चिकित्सा के क्षेत्र में नाम रोशन करने जा रहे हैं. जिस तरीके से घोर नक्सल प्रभावित इलाके सुकमा से पहली बार किसी बेटी का चयन एमबीबीएस के लिए हुआ है. तो वह दिन दूर नहीं जब बस्तर के बेटे और बेटियां देश के भीतर मेडिकल के क्षेत्र में अपनी सेवाएं देते हुए नजर आएंगे. इससे यह भी समझा जा सकता है कि बस्तर को आने वाले वक्त में नक्सल प्रभावित क्षेत्र के रुप में नहीं बल्कि तकनीक और मेडिकल के क्षेत्र में उन्नत बस्तर के तौर पर देखा जाएगा.
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