छत्तीसगढ़ का समूचा बस्तर संभाग आज पूरी तरह से नक्सल प्रभावित है. लेकिन इस बस्तर में नक्सलवाद के बीच शिक्षा के रास्ते बदलाव की बयार भी है. सरकार की ओर से हर संभव यह कोशिश है कि इलाके का कोई भी बच्चा शिक्षा वंचित न रहे. लिहाजा घोर नक्सल प्रभावित इलाके मे संचालिक पोट केबिन स्कूल के रास्ते सरकार जंग के बीच शिक्षा की अलख जगा रही है. जैसे हमने दिखाया किस तरह से बच्चें विपरीत परिस्थितियों के बीच पढ़ने के लिए आगे आए हैं. अब आपको यह बताते कि बच्चों को सिर्फ पाठ नहीं पढ़ाया जा रहा है बल्कि, उन्हें कई तरह के कार्य भी सीखाएं जा रहे हैं. उन्हें शिक्षा के साथ खेल, रोजगार संबंधी जानकारी भी दी जा रही है. 

पूरी तरह नक्सल प्रभावित इलाके में विकास की ऐसी तस्वीर देखना मन को सुकून देने वाला है. ऐसी तस्वीर को देखना नए बस्तर को साकार होते देखना है. जरा सोचिए लाल खतरे के बीच कैसे बच्चें नई जिंदगी को गढ़ रहे हैं. बच्चों को आज पढ़ाने के साथ-साथ खेल-कूद में भी आगे बढ़ाया जा रहा है. साथ ही स्कूल के भीतर ही उन्हें व्यवसायिक शिक्षा भी दी जा रही है. उन्हें खेती करना भी सीखाया जा रहा है.

पोटा केबिन उन बच्चों के लिए एक तरह से वरदान साबित हुआ जो बच्चें नक्सली हिंसा के बीच अपनी पढ़ाई यह देखते ही बनती है. पोटा केबिन स्कूल में आदिवासी बच्चों को राजीव गांधी शिक्षा मिशन, यूनीसेफ और विज्ञान आश्रम पुणे की ओर सहयोग किया जाता है. राज्य सरकार के प्रयासों से आज बीजापुर जिले के पोटा केबिन स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को हर तरह की सुविधा मिल रही है. बच्चों को स्कूली पाठ्यक्रम की शिक्षा के साथ-साथ कम्प्यूटर की शिक्षा,व्यवसायिक प्रशिक्षणतकनीकी ज्ञान यहां खेती और स्वास्थ्य संबंधी प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है. स्कूल में पढ़ने वाली छात्राओं की आज ना सिर्फ सोच बदली हैबल्कि अब इनमें से कोई डॉक्टरकोई इंजीनियर तो कोई मंत्री तक बनने का सपना देख रही है. छात्र भी भविष्य के सुनहरे कल को गढ़ रहे हैं. जिन नक्सलियों ने उनके क्षेत्र को अशांत कर दिया है. उनके सामने यहीं छात्र पढ़-लिखकर चुनौती बनकर खड़ा होना चा रहे हैं. किसी को इंजीनियर बनना तो कोई छात्र चाहता है कि वे अपने गाँव में अध्यापक बनकर जाए और बच्चों को शिक्षित करें.


पोटा केबिन को लेकर किसी तरह का कोई विशेष सेटअप नहीं. लेकिन अनुदेशकों के जरिए बच्चों की पूरी व्यवस्था संभाली जा रही है. यही वजह है कि आवासीय पोटा केबिन में आज बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं पढ़ाई कर रहे हैं. वह एक तरह से चुनौती दे रहे हैं नक्सलवाद को. शिक्षक कमल झाड़ी कहते हैं कि सरकार की कोशिशे रंग ला रही है. वहीं अनुदेशक कहते हैं कि पहले 18 महीने के लिए बच्चों को रखा जा रहा था लेकिन अब सतत शिक्षा दी जा रही है.

दरअसल शिक्षा के रास्तें ही विकास का खाखा तैयार हो सकता है. सरकार ने शिक्षा के रास्तें ही बस्तर के भीतर में नक्सलवाद को खत्म करने की ठानी है. सरकार को आज इसमें बड़ी सफलता मिल रही है. आदिवासी बाहुल्य इलाके वनवासी बच्चें बस्तर से निकलकर देश के बड़े संस्थानों में शिक्षा ले रहे हैं. चाहे वह एजुकेशन सिटी के जरिए हो या प्रयास के जरिए हो या फिर पोटा केबिन के जरिए. दर्द को मिटाने और आदिवासी के जीवन में खुशियां लाने का काम सरकार ने बखूबी किया.

 


छत्तीसगढ़ का समूचा बस्तर संभाग आज पूरी तरह से नक्सल प्रभावित है. लेकिन इस बस्तर में नक्सलवाद के बीच शिक्षा के रास्ते बदलाव की बयार भी है. सरकार की ओर से हर संभव यह कोशिश है कि इलाका कोई भी बच्चा शिक्षा वंचित न रहे है. लिहाजा घोर नक्सल प्रभावित इलाके मे संचालिक पोट केबिन स्कूल के रास्ते सरकार जंग के बीच शिक्षा की अलख जगा रही है. जैसे हमने दिखाया किस तरह से बच्चें विपरीत परिस्थितियों के बीच पढ़ने के लिए आगे आए हैं. अब आपको यह बताते कि बच्चों को सिर्फ पाठ नहीं पढ़ाया जा रहा है बल्कि, उन्हें कई तरह के कार्य भी सीखाएं जा रहे हैं. उन्हें शिक्षा के साथ खेल, रोजगार संबंधी जानकारी भी दी जा रही है. 

पूरी तरह नक्सल प्रभावित इलाके में विकास की ऐसी तस्वीर देखना मन को सुकून देने वाला है. ऐसी तस्वीर को देखना नए बस्तर को साकार होते देखना है. जरा सोचिए लाल खतरे के बीच कैसे बच्चें नई जिंदगी को गढ़ रहे हैं. बच्चों को आज पढ़ाने के साथ-साथ खेल-कूद में भी आगे बढ़ाया जा रहा है. साथ ही स्कूल के भीतर ही उन्हें व्यवसायिक शिक्षा भी दी जा रही है. उन्हें खेती करना भी सीखाया जा रहा है.

पोटा केबिन उन बच्चों के लिए एक तरह से वरदान साबित हुआ जो बच्चें नक्सली हिंसा के बीच अपनी पढ़ाई यह देखते ही बनती है. पोटा केबिन स्कूल में आदिवासी बच्चों को राजीव गांधी शिक्षा मिशन, यूनीसेफ और विज्ञान आश्रम पुणे की ओर सहयोग किया जाता है. राज्य सरकार के प्रयासों से आज बीजापुर जिले के पोटा केबिन स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को हर तरह की सुविधा मिल रही है. बच्चों को स्कूली पाठ्यक्रम की शिक्षा के साथ-साथ कम्प्यूटर की शिक्षा,व्यवसायिक प्रशिक्षणतकनीकी ज्ञान यहां खेती और स्वास्थ्य संबंधी प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है. स्कूल में पढ़ने वाली छात्राओं की आज ना सिर्फ सोच बदली हैबल्कि अब इनमें से कोई डॉक्टरकोई इंजीनियर तो कोई मंत्री तक बनने का सपना देख रही है. छात्र भी भविष्य के सुनहरे कल को गढ़ रहे हैं. जिन नक्सलियों ने उनके क्षेत्र को अशांत कर दिया है. उनके सामने यहीं छात्र पढ़-लिखकर चुनौती बनकर खड़ा होना चा रहे हैं. किसी को इंजीनियर बनना तो कोई छात्र चाहता है कि वे अपने गाँव में अध्यापक बनकर जाए और बच्चों को शिक्षित करें.

पोटा केबिन को लेकर किसी तरह का कोई विशेष सेटअप नहीं. लेकिन अनुदेशकों के जरिए बच्चों की पूरी व्यवस्था संभाली जा रही है. यही वजह है कि आवासीय पोटा केबिन में आज बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं पढ़ाई कर रहे हैं. वह एक तरह से चुनौती दे रहे हैं नक्सलवाद को. शिक्षक कमल झाड़ी कहते हैं कि सरकार की कोशिशे रंग ला रही है. वहीं अनुदेशक कहते हैं कि पहले 18 महीने के लिए बच्चों को रखा जा रहा था लेकिन अब सतत शिक्षा दी जा रही है.

दरअसल शिक्षा के रास्तें ही विकास का खाखा तैयार हो सकता है. सरकार ने शिक्षा के रास्तें ही बस्तर के भीतर में नक्सलवाद को खत्म करने की ठानी है. सरकार को आज इसमें बड़ी सफलता मिल रही है. आदिवासी बाहुल्य इलाके वनवासी बच्चें बस्तर से निकलकर देश के बड़े संस्थानों में शिक्षा ले रहे हैं. चाहे वह एजुकेशन सिटी के जरिए हो या प्रयास के जरिए हो या फिर पोटा केबिन के जरिए. दर्द को मिटाने और आदिवासी के जीवन में खुशियां लाने का काम सरकार ने बखूबी किया.

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