कभी सुना है कि बहुमूल्य चिरौंजी के बदले किसी को नमक लेते. कभी सुना है कि नमक के लिए कोई मीलों तक का सफर तय कर सकता है. क्या कभी सुना है कि नमक एक बड़ी आबादी की सबसे बड़ी जरूरत बन गई थी. जी हां, छत्तीसगढ़ के जनजातीय इलाके खासतौर पर बस्तर में एक जमाना था जब नमक की जरूरत को पूरा करने जद्दोजहद करनी पड़ती थी. नमक मिल जाए, इसलिए चिरौंजी, महुआ, तेदूपत्ता जैसी बेशकीमती वनोपज नमक के बदले  दिए जाते थे. नमक व्यापारियों का बोलबाला था. रमन सरकार ने जनजातीय इलाकों की इस सबसे बड़ी जरूरत को महसूस किया. बस फिर क्या था. संवेदनशील मुख्यमंत्री डा.रमन सिंह की महत्वाकांक्षी योजना मुख्यमंत्री अमृत नमक योजना शुरू की गई. अब वनवासी इलाकों में रहने वाला आदिवासी नमक के बदले अपनी बेशकीमती वनोपज नहीं चुकाता. क्यूंकि उनकी सबसे बड़ी जरूरत को पूरा किया है राज्य के मुखिया डा.रमन सिंह ने.

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नमक के बिना जिंदगी बे-स्वाद है. जिंदगी में स्वाद न हो तो फिर वह जिंदगी भी कोई जिंदगी है. इसे शायद वे लोग ही बेहतर तरीके समझते रहे हैं, जिन्हें नमक की कीमत महंगे चार और चिरौंजी से चुकानी पड़ती थी. ये कहानी उन आदिवासी परिवारों की जिन्हें नमक एक सदी तक नसीब ही नहीं थी. कई सरकारे आती-जाती रही लेकिन किसी ने नहीं सोचा कि जंगल-बीहड़ में रहने वाले वनवासियों के जीवन में नमक की स्वाद भी घोली जाए. जनता से मिने समर्थन को नमक के साथ अदा की जाए. नमक की कुचक्र में फंसे आदिवासियों को मुक्ति तब मिली जब छत्तीसगढ़ के भीतर में 2003 में भाजपा की सरकार आई. एक ऐसी सरकार ने जिन्होंने तय किया राज्य की सबसे बड़ी आबादी आदिवासियों की सबसे बड़ी जरूरतों में से एक नमक की जरूरत को पूरा किया जाएगा. रमन सरकार ने आदिवासियों से वादा किया कि उन्हें अब प्रदेश के भीतर में उन्हें शासन के साथ नमक मुफ्त दिया जाएगा. रमन सरकार ने जैसा कहा, वैसा किया. आज प्रदेश के भीतर लाखों परिवारों को निःशुलक आयोडीन युक्त अमृत नमक वितरित किया जा रहा है.

नमक का जिक्र होते ही जेहन में महात्मा गांधी की यादें कौंध पड़ती है. महात्मा गांधी का वह दांडी मार्च. अब आप गांधी के आंदोलन से निकलकर बस्तर के संघर्षों को याद करिए. नमक को लेकर यहां आंदोलन तो नहीं हुए लेकिन शोषण जरूर होते रहे. सदियों तक नमक को लेकर यहां के आदिवासी सेठ-साहूकारों के कूचक्र में फंसे रहे हैं. दरअसल दो दशक पहले तक बस्तर के भीतर में नमक की कीमत क्या थी यह वहां के आदिवासियों से मिलकर आप बेहतर समझ सकते हैं. बस्तर में भोले-भाले आदिवासी सदियों तक नमक के नाम पर शोषण का शिकार होते रहे. रमन सरकार आने के पूर्व तक आदिवासियों को नमक के लिए महंगी कीमत अदा करनी पड़ती थी. उन्हें जंगल से लाख, चार, चिंरौंजी नमक के लिए इक्कठा करके लाना पड़ता था. सेठ-साहूकार, व्यापारी महंगे चार-चिरौंजी के बदले उन्हें गड़ा नमक देते थे. रमन सरकार ने आदिवासियों को इस शोषण से मुक्ति दिलाने का संकल्प लिया.

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साल 2003 में जैसे ही छत्तीसगढ़ में रमन सरकार आई. सरकार ने पीडीएस सिस्टम को दुरूस्त करने की दिशा में काम किया. सरकार ने आदिवासियों की सबसे बड़ी जरूरत को महसूस किया. सरकार ने आदिवासियों को निःशुल्क नमक देने की योजना बनाई. जल्द ही इस योजना को सरकार ने लागू कर दिया. बस्तर में सबसे मजबूत राजनीतिक परिवार से जुड़े मंत्री केदार कश्यप की भी नमक को लेकर पुरानी यादें जुड़ी है. ऐसी यादें जिसे वह चाह कर भी भूला नहीं सकते. क्योंकि उन्होंने नमक को लेकर संघर्ष करते आदिवासियों को करीब से देखा है. वे बताते हैं कि आज से कई साल पहले नमक लेने के लिए बस्तर से धमतरी आना पड़ता था. सिर्फ नमक के लिए हाट-बाजार लगता था. सरकार ने इस दर्द को समझा और बस्तर वासियों को इससे मुक्ति दिलाई. मंत्री केदार कश्यप की तरह ही वन मंत्री महेश गागड़ा की भी यादें है. गागड़ा बताते हैं कि बस्तर में नमक को लेकर किस तरह का इतिहास रहा है. वन मंत्री का परिवार भी उस दौर को भूलेंगे नहीं होंगे जब नमक कीमत किस तरह अदा करनी पड़ती थी.

नमक को लेकर बस्तर  में हजारों कहानियां है. अनगिनत दर्द के किस्से हैं. इन किस्से और कहानियां को खुशियों से मिटाने का काम रमन सरकार ने किया है. सरकार की योजना का लाभ आज बस्तर के भीतर आदिवासी परिवारों को मिल रहा है. भानुप्रतापपुर की करने वाली चंदा और अनसुईया की कहानी भी नमक के साथ जुड़ी है. सब्जी बेचकर अपना गुजारा करने वाली चंदा कहती है कि अब राशन दुकान से बहुत आसानी और बिना पैसे दिए ही नमक मिल रहा है. अब बाजार से मंहगे दाम में नमक खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती. चंदा की तरह अनसुईया भी है, जिन्हें रमन सरकार ने नमक की चिंता से मुक्त कर दिया है. मजदूरी करने वाली अनसुईया की जिंदगी भी अब नमक के साथ स्वादमय और नमकीन हो गई है.

आयोडीन नमक का सबसे बड़ा फायदा बस्तर अंचल के महिलाओं और छात्रों को हुआ है. क्योंकि शरीर में नमक की कमी और आयोडीन की मात्रा नहीं होने से बस्तर की बेटियां कई तरह की बीमारियों से ग्रसित हो जा रही थी. खास-तौर पर घेंघा रोग की शिकायत आम हो रही थी. खून की कमी भी से भी यहां के रहवासी जुझ रहे थे. रमन सरकार की इस अमृत नमक योजना ने बस्तर की बेटियों नमक और आयोडीन की कमी से होने वाली बीमारियों से मुक्ति दिला दी है. बस्तर में घेंघा रोग की शिकायते नहीं आती. स्कूली बच्चों में अब खून कमी नहीं मिलती. रमन सरकार ने अपने वादे के मुताबिक बस्तर में एक बड़ी मांग को पूरा किया है. बस्तर की रहने वाली कुमुदनी बताती है कि एक ऐसा भी दौर उन्होंने देखा है जब महंगे वनोपज के बदले ही नमक मिला करता था. सेठ-साहूकार, व्यापारी चार और चिरौंजी के बदले नमक दिया करते थे. नमक को लेकर वनवासियों को काफी संघर्ष करना पड़ता था. लेकिन आज ऐसा नहीं है. रमन सरकार ने आज वनवासियों की जिंदगी आसाना बना दी है. राशन दुकानों में अब आसानी से आयोडीन युक्त नमक मिल जा रहा है.

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