प्रदेश में हजारों-लाखों की संख्या में ऐसे परिवार हैं जिनका गुजारा रोजी-मजदूरी करके होता है. प्रदेश विभाजन के बाद भी मेहनत कश उन मजदूरों की आंखों में गहरी निराशा थी, चेहरे में चिंता की लकीरें थी, बच्चों के भविष्य को लेकर हर वक्त परेशानी का भाव और एक अनजाना डर हर वक्त मौजूद रहता था. खुशियां इन परिवारों से जैसे कोसों दूर चली गई थी. बड़े मुश्किल से इनका गुजारा होता था लेकिन इसके लिए भी इन्हें काफी मशक्कत करनी पड़ती थी. दिन तो जैसे-तैसे मेहनत मजदूरी में कट जाता था लेकिन थके हुए शरीर को ना तो आराम मिल पाता था और ना ही ठीक से नींद आ पाती थी. करवट बदलते-बदलते जिंदगी कट रही थी.  इस डर, चिंता, निराशा और परेशानी की वजह इन मेहनत कश लोगों के कल्याण के लिए प्रदेश में कोई योजना ही नहीं थी. उन मासूमों का क्या होगा यही सोच-सोच कर जिंदगी अपनी गति से बीती जा रही थी. इसी बीच 2003 में सत्ता की बागडोर मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह के हाथों में आई. डॉ रमन सिंह इस पिछड़े प्रदेश को गति देने के लिए उसे विकसित राज्यों की श्रेणी में ला कर खड़ा करने की योजनाएं बनाने में व्यस्त थे. डॉ रमन सिंह ने जैसा कहा था वैसा ही किया. उन सभी योजनाओं पर काम करते वक्त उन्होंने मजदूरों के होठों में खुशियां लाने और उनके उत्थान के लिए कल्याणकारी योजनाएं बनाना शुरु किया और उन्होंने छत्तीसगढ़ श्रम कल्याण मंडल का गठन किया. इस योजना के तहत मजदूरों और उनके परिवार का भविष्य संवारने के लिए कई तरह की योजनाएं बनानी शुरु की गई. इन्हीं योजनाओं में से एक योजना सिलाई मशीन योजना है इस योजना ने मजदूर परिवार की महिलाओं को ना सिर्फ हाथों में हुनर दिया बल्कि उनके परिवार के लिए आशा की एक किरण दे दी.

ये वो मेहनतकश हाथ हैं, जो इस प्रदेश के विकास की योजनाओं को तराशने में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं. बड़ी-बड़ी बिल्डिंगों से लेकर सड़क-नाली, विभिन्न जगहों में काम करने वाले ठेकादारों के अंडर में काम सहित कई तरह के काम ये मजदूर करते हैं. प्रदेश की धीमी विकास के रफ्तार के साथ ही इनका जीवन भी दिशाहीन होकर चिंताओं और निराशाओं से भरा जा रहा था. जीवन में ना तो प्रार्थानाओं का असर हो रहा था और ना ही दुआओं को. एक उम्मीद थी वो भी दम तोड़ते जा रही थी. कोई सहारा ना था ना ही निराशा के दौर से बाहर निकालने वाला कोई अपना ही था. सुबह होता तो डिब्बे में सूखी रोटी, चावल और प्याज ले कर निकल जाते, इस उम्मीद के साथ कि आज भरपूर काम मिलेगा. लेकिन कई दफा निराशा भी हाथ लगती. धूप हो या छांव चाहे मौसम कोई भी हो इन मजदूरों की ना तस्वीर बदली और ना ही इनकी तकदीर. इसकी वजह मेहनतकश लोगों के लिए कोई योजना ही नहीं थी. प्रदेश के ऐसे सभी मेहनतकश लोगों के लिए रमन सरकार ने योजना बनाया. छत्तीसगढ़ भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण मंडल, छत्तीसगढ़ श्रम कल्याण मंडल,  छत्तीसगढ़ असंगठित कर्मकार राज्य सामाजिक सुरक्षा मंडल का गठन किया. इसे बनाने के साथ ही सरकार ने ऐसे सभी मजदूरों के पंजीयन का काम शुरु कर दिया ताकि उन तक सरकारी की सारी योजनाएं पहुंच सके. पूर्ववर्ती सरकारों को ये भी नहीं पता था कि प्रदेश में ऐसे मजदूरों की संख्या कितनी है. सरकार ने इनके रजिस्ट्रेशन के साथ ही इनके कल्याण की दिशा में कार्य करना शुरु कर दिया. इसी के तहत इन्हें और इनके परिवार के सभी सदस्यों के लिए भी योजनाएं बनाई गई. सरकार ने पंजीकृत मजदूरों के लिए उनके काम के हिसाब से उन्हें निशुल्क औजार भी दिए. इसके अलावा इन पंजीकृत मजदूरों के बच्चों के लिए भी सरकार ने कई योजनाएं बनाई. सरकार द्वारा पंजीकृत महिला मजदूरों को सिलाई मशीन दी जा रही है. सिलाई मशीन मिलने से इन मजदूरों के जीवन में अनेक परिवर्तन आए हैं.
रमन सरकार की योजनाएं मजदूर परिवारों के लिए कितनी लाभदायक योजना है यह बताने के पहले जरा इन आंकड़ों पर गौर कीजिये-
  • छत्तीसगढ़ श्रम कल्याण मंडल में वर्ष 2005-06 में पंजीकृत श्रमिकों की कुल संख्या 85 हजार 719 थी जो 2016-17 में बढ़कर 1 लाख 95 हजार हो गई.
  • पंजीकृत श्रमिकों से वित्तीय वर्ष 2005-06 में अभिदाय राशि के रुप में कुल रुपये 13 लाख 46 हजार 659 रुपए प्राप्त हुए थे.  वित्तीय वर्ष 2016-17 में अभिदाय राशि के रुप में 3 करोड़ 16 लाख 87 हजार रुपये प्राप्त हुआ है.
  • असंगठित क्षेत्र में कार्यरत सफाई कामगारों के लिए वर्ष 2016 से 8 योजनाएं संचालित की जा रही है. जिसमें कौशल उन्नयन योजनांतर्गत 481, छात्रवृत्ति योजनांतर्गत 2467, सफाई कामगार पुत्र-पुत्री सायकल सहायता योजना में 212, सफाई कामगार प्रसूति सहायता योजनांतर्गत 142, सफाई कामगार विवाह सहायता योजनांतर्गत 464 एवं उपकरण सहायता योजना में 2576 हितग्राहियों को लाभान्वित किया जा चुका है.
  • असंगठित क्षेत्र में कार्यरत ठेका श्रमिक, घरेलू महिला कामगार एवं हमाल श्रमिकों के लिए वर्ष 2016 से सात योजनाएं संचालित की जा रही है. इनमें कौशल उन्नयन योजनांतर्गत एक हजार 998, छात्रवृत्ति योजनांतर्गत चार हजार 660, प्रसूति यहायता योजनांतर्गत 975, विवाह सहायता योजनांतर्गत 528 एवं उपकरण सहायता योजना में सात हजार 738 हितग्राहियों को लाभान्वित किया जा चुका है.
  • मुख्यमंत्री सिलाई मशीन सहायता योजना
  • एक लाख छह हजार 588 महिलाओं को निशुल्क सिलाई मशीन का वितरण

आत्मनिर्भर बन परिवार को दे रही आर्थिक सहायता

सरकार द्वारा सिलाई मशीन के वितरण के बाद इन परिवारों के दिन बहुरने लगे हैं. महिलाओं को घर बैठे अब काम मिलने लगा है, उन्हें घर से बाहर जाना की जरुरत ही नहीं पड़ती. साथ ही वे अब अपने बच्चों का बेहतर तरीके से ख्याल रख पा रही हैं. गरियाबंद जिल के फिंगेश्वर की रहने वाली 42 वर्षीय प्रभादेवी के परिवार की आर्थिक स्थिति बेहद खराब थी. जैसे-तैसे बड़ी मुश्किलों से परिवार का गुजर-बसर हो रहा था. ऐसे में उन्हें सरकार की योजना के तहत सिलाई मशीन मिली. सिलाई मशीन मिलने के बाद प्रभादेवी ने कपड़ा सिलाई का काम शुरु किया. देखते ही देखते आस-पास के इलाकों में रहने वाले लोग कपड़ा लेकर उसी के पास सिलाने के लिए आते. अब वह अच्छा खासा कमाने लगी हैं. जिसकी वजह से उसके परिवार की आर्थिक स्थिति पहले से काफी बेहतर है. प्रभादेवी काफी खुश हैं वे कहती हैं कि सरकार की इस योजना ने उन्हें आत्म निर्भर बनाया है, उन्होंने कहा कि सरकार इस योजना के द्वारा बेरोजगारों को रोजगार दे रही है. इसके लिए वे रमन सरकार को धन्यवाद दे रही हैं. ग्राम भैसतरा की रहने वाली 37 वर्षीय अमृता साहू का भी परिवार आर्थिक संकटों से जूझ रहा था. उन्हें भी प्रभादेवी की तरह सरकार से सिलाई मशीन मिली जिसके बाद अब वे भी कपड़ा सिलकर परिवार की आय में योगदान दे रही हैं.

प्रशिक्षक बन दे रही हैं ट्रेनिंग

संतोषी श्रीवास्तव और ईश्वरी साहू सिलाई मशीन मिलने के बाद कढ़ाई सीखी और अब वे ना सिर्फ खुद आत्मनिर्भर हो गई है बल्कि औरों को भी आत्मनिर्भर बनाने का काम कर रही हैं. दोनों ही अब आस-पास की महिलाओं को सिलाई कढ़ाई सिखाने का काम कर रही हैं. ईश्वरी साहू बताती हैं कि कपड़ा सिलने के साथ ही वे सिलाई कढ़ाई सिखाने का भी काम करती हैं. इससे उनके परिवार की आमदनी काफी बढ़ गई है. अब वे बगैर किसी मेहनत के हर महीने औसतन 15 हजार रुपए कमा ले रही हैं. वहीं संतोषी श्रीवास्तव भी महिलाओं और युवतियों को सिलाई कढ़ाई सिखाने का काम कर रही हैं. इससे वे युवतियां भी आत्मनिर्भर बन गई हैं और कपड़े सिलकर अच्छी खासी आमदनी अर्जित कर रही हैं. जिसकी वजह से उनके परिवारों की आर्थिक स्थिति मजबूत हुई है.
निश्चित ही रमन सरकार की पंजीकृत मजदूरों के लिए शुरु की गई योजना उनके परिवार के लोगों कि लिए किसी वरदान से कम नहीं है. सिलाई मशीन मिलने के बाद महिलाओं को अब मजदूरी करने घर के बाहर नहीं जाना पड़ता. अब वे घर में ही रहकर परिवार में अपना आर्थिक योगदान दे रही हैं. इससे ना सिर्फ परिवार की आय बढ़ी है बल्कि तनाव, चिंता और निराशा से उन्हें मुक्ति भी मिली है.
SPONSORED