कुपोषण के खिलाफ लड़ाई में छत्तीसगढ़ ने सिर्फ पांच वर्ष के भीतर कामयाबी का शानदार परचम लहराया है. इस लड़ाई में राज्य को लगातार उत्साहवर्धक सफलता मिल रही है. लगभग 50 हजार आंगनबाड़ी केन्द्रों में पौष्टिक आहार और टीकाकरण जैसी सेवाओं तथा विगत पांच वर्षाें से हर साल मनाए जा रहे वजन त्यौहार के फलस्वरूप राज्य में शून्य से पांच वर्ष तक आयु समूह के बच्चों में कुपोषण की दर लगभग 10 प्रतिशत की कमी आयी है. आंगनबाड़ी केन्द्रों में वजन त्यौहार वर्ष 2012 से मनाया जा रहा है.
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2012 में ही राज्य में नौ जिलों का गठन किया गया था, जिन्हें मिलाकर अब छत्तीसगढ़ में 27 जिले हैं. इस अवधि में प्रदेश के सभी 27 जिलों के औसत आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2012 में राज्य में कुपोषण की दर 40.05 प्रतिशत से लगातार घटते हुए वर्ष 2013 में 36.89 प्रतिशत, वर्ष 2014 में 32.16 प्रतिशत, वर्ष 2015 में 29.87 प्रतिशत और वर्ष 2016 में 30.13 प्रतिशत रह गई है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन डब्लूएचओ की अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक 0 से 3 आयुवर्ग सबसे ज्यादा संवेदनशील होता है. इस आयुवर्ग में सबसे अधिक कुपोषण देखने को मिलता है. वहीं कुपोषण की स्थिति 6 वर्ष तक के बच्चों में देखने को मिलती है. कुपोषण की वजह से बच्चों का शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक विकास पूर्ण रुपेण नहीं हो पाता है. लिहाजा इस उम्र के बच्चों को कुपोषण से बचाने के लिए सरकार द्वारा कई अहम योजनाओं की शुरुआत की गई. इन योजनाओं में आंगनबाड़ी केन्द्रों की बड़ी भूमिका है. आंगनबाडी केन्द्रों में जहां वर्ष 2003-04 में लगभग 17 लाख 50 हजार गर्भवती और शिशुवती माताओं तथा नन्हें बच्चों को प्रतिदिन पौष्टिक आहार दिया जा रहा था, वहीं वर्ष 2017 में आंगनबाड़ी सेवाओं से लाभान्वितों की यह संख्या बढ़कर 27 लाख तक पहुंच गई. इनके अलावा सरकार की अन्य योजनाएं भी हैं जो कुपोषण के खिलाफ जंग लड़ रही हैं.
राज्य में कुपोषण की स्थिति और उसे दूर करने के लिए जो प्रयास किए जा रहे हैं उसे समझन के लिए इन आंकड़ों को भी देखना जरुरी है. पहले नजर उन आंकड़ों पर डालते हैं-
साल 2003-04 में देश में 152 समेकित बाल विकास परियोजनाएं संचालित थी. इन परियोजनाओं में 20289 आंगनबाड़ी केन्द्र, 836 मिनी आंगनबाड़ी केन्द्र संचालित थे.
साल 2017 में सेवाओं का विस्तार करते हुए 220 समेकित बाल विकास परियोजनाओं में 46660 आंगनबाड़ी केन्द्र व 5814 मिनी आंगनबाड़ी केन्द्रों की स्वीकृति दी गई.
वर्ष 2003-04 में लगभग 17.50 लाख गर्भवती माताएं, शिशुवती माताएं व बच्चे आंगनबाड़ी केन्द्रों से लाभान्वित हो रहे थे. 2017 तक आंगनबाड़ी सेवाओं से लाभान्वितों की संख्या 27 लाख तक पहुंच गई.

नये जिलों के बच्चों में भी कुपोषण में आयी कमी

शून्य से पांच वर्ष तक आयु समूह के बच्चों के लिए वर्ष 2012 में वजन त्यौहार शुरू होने के बाद विगत पांच साल में राज्य के सभी 27 जिलों में कुपोषण में आयी है, लेकिन विशेष रूप से उसी दरम्यान गठित नौ नये जिलों में इसकी सफलता विशेष रूप से उल्लेखनीय है। वर्ष 2012 में बनाए गए जिलों मेें से बालोद जिले में यह 44.48 प्रतिशत से घटकर 24.29, बलौदाबाजार-भाटापारा जिले में 40.84 प्रतिशत से घटकर 31.80, बलरामपुर-रामानुजगंज जिले में 40.50 प्रतिशत से घटकर 31.20, बेमेतरा जिले में 41.53 से घटकर 29.10, गरियाबंद जिले में 45.89 प्रतिशत से घटकर 36.08, कोण्डागांव जिले में 50.69 प्रतिशत से घटकर 41.71, सूरजपुर जिले में 36.97 प्रतिशत से घटकर 32.10, मुंगेली जिले में 40.56 प्रतिशत से घटकर 21.50 और सुकमा जिले में 42.48 प्रतिशत से घटकर 38.61 प्रतिशत हो गई.

पुराने जिलों में भी कामयाब रहा अभियान

इस दौरान प्रदेश के पुराने जिलों में भी कुपोषण मुक्ति के अभियान को अच्छी सफलता मिली है। वर्ष 2012 से 2016 के बीच कुपोषण का प्रतिशत बस्तर जिले में 45.33 प्रतिशत से घटकर 40.77, बीजापुर जिले में 42.60 प्रतिशत से घटकर 39.92, बिलासपुर जिले में 37.33 प्रतिशत से घटकर 26.59 प्रतिशत, दंतेवाड़ा जिले में 43.09 प्रतिशत से घटकर 38.02 प्रतिशत, धमतरी जिले में 25.60 प्रतिशत से घटकर 23.82 प्रतिशत, दुर्ग जिले में 39.28 प्रतिशत से घटकर 24.78 प्रतिशत, जांजगीर-चाम्पा जिले में 35.85 प्रतिशत से कम होकर 27.39 प्रतिशत, जशपुर जिले में 40.64 प्रतिशत से कम होकर 32.21 प्रतिशत और कांकेर जिले में 42.42 प्रतिशत से घसटकर 33.28 प्रतिशत रह गया है।
इस अवधि में कबीरधाम जिले के बच्चों में कुपोषण का स्तर 40.68 प्रतिशत से घटकर 28.56 प्रतिशत, कोरबा जिले में 35.61 से घटकर 25.46 प्रतिशत, कोरिया जिले में 35.31 प्रतिशत से घटकर 28.01 प्रतिशत, महासमुंद जिले में 45.82 प्रतिशत से घटकर 33.18 प्रतिशत, नारायपुर जिले में 44.01 प्रतिशत से घटकर 39.23 प्रतिशत और रायगढ़ जिले में 40.36 प्रतिशत से कम होकर 27.92 प्रतिशत रह गया है। विगत पांच वर्ष में कुपोषण की दर रायपुर जिले में 39.82 प्रतिशत से घटकर 27.98 प्रतिशत, राजनांदगांव जिले में 45.53 प्रतिशत से घटकर 34.13 प्रतिशत और सरगुजा जिले में 38.03 प्रतिशत से घटकर 31.01 प्रतिशत रह गयी है.


सरकारी अस्पतालों में प्रसव की संख्या में 55.9 प्रतिशत का इजाफा

लगातार चलाए जा रहे जागरूकता अभियान के फलस्वरूप राज्य के सरकारी अस्पतालों में प्रसव कराने वाली महिलाओं की संख्या में लगभग 55.9 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। वर्ष 2005-06 में सरकारी अस्पतालों में संस्थागत प्रसव की दर 14.3 प्रतिशत थी, जो वर्ष 2015-16 में बढ़कर 70.2 प्रतिशत तक पहुंच गई.

बौनेपन की समस्या में भी आयी कमी

राष्ट्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार सर्वेक्षण के तीसरे और चौथे चरण की एक रिपोर्ट के अनुसार छत्तीसगढ़ में विगत 10 वर्ष में बच्चे के बौनेपन की समस्या में भी कमी आयी है। वर्ष 2005-06 से 2015-16 के सर्वेक्षणों से यह पता चला है कि बौनापन अर्थात् उम्र के अनुसार ऊंचाई के स्तर में सूचकांक 52.9 प्रतिशत से घटकर 37.06 प्रतिशत हो गया, अर्थात् बच्चों के बौनेपन की समस्या में 15.3 प्रतिशत की कमी आयी है। इस कामयाबी को भी कुपोषण मुक्ति अभियान से जोड़कर देखा जा रहा है.

रेडी-टू-ईट फूड-

6 माह से 3 वर्ष के आयु के सामान्य बच्चों को 135 ग्राम, 6 माह से 3 वर्ष आयु के गंभीर कुपोषित बच्चों को 211 ग्राम तथा गर्भवती व शिशुवती महिलाओं को 165 ग्राम रेडी-टू-ईट फूड का प्रदाय प्रतिदिन के मान से टेक होम राशन के अंतर्गत साप्ताहिक रूप से किया जाता हैं । गेहूँ आधारित रेडी-टू-ईट फूड का निर्माण एवं प्रदाय का कार्य महिला स्व सहायता समूहों द्वारा किया जा रहा हैं ।
पूरक पोषण आहार कार्यक्रम के अंतर्गत 6 माह से 6 वर्ष के 20.84 लाख बच्चों तथा 4.69 लाख गर्भवती व शिशुवती महिलाओं, इस प्रकार कुल 25.53 लाख हितग्राहियों को लाभांवित किया जा रहा हैं । वित्तीय वर्ष 2013-14 में पूरक पोषण आहार कार्यक्रम हेतु 460 करोड़ रू. का बजट प्रावधान किया गया हैं ।

किशोरी बालिकाओं के सशक्तिकरण से संबंधित सबला योजना अंतर्गत पूरक पोषण आहार कार्यक्रम-

किशोरी बालिकाओं के सशक्तिकरण से संबंधित सबला योजना के अंतर्गत किशोरी बालिकाओं को भी पूरक पोषण आहार का प्रदाय किया जा रहा है । योजना के अंतर्गत 11 से 14 वर्ष आयु की शाला त्यागी किशोरी बालिकाओ तथा 14 से 18 आयु वर्ग की सभी किशोरी बालिकाओं को प्रतिदिन 5/- रू. के मान से पूरक पोषण आहार का प्रदाय किया जा रहा हैं । इस योजना में पूरक पोषण आहार कार्यक्रम, केन्द्र प्रवर्तित योजना के रूप में लागू किया गया हैं, अर्थात् पूरक पोषण आहार कार्यक्रम पर होने वाले वास्तविक व्यय का 50 प्रतिशत केन्द्र शासन द्वारा तथा 50 प्रतिशत राज्य शासन द्वारा वहन किया जा रहा है । सबला योजना राज्य के रायपुर, बस्तर, रायगढ़, राजनांदगांव गरियाबंद, बलौदाबाजार, कोण्डागांव सूरजपूर बलरामपुर एवं सरगुजा जिलों में लागू  है ।

मुख्यमंत्री  बाल संदर्भ योजना के माध्यम से कुपोषित बच्चों को विशेष सहायता

गंभीर कुपोषित बच्चों को कुपोषण के चक्र से बाहर लाकर कुपोषण की दर में कमी हेतु वर्ष 2009 से मुख्यमंत्री बाल संदर्भ योजना प्रारंभ, अब तक कुल 633139 हितग्राही लाभान्वित

वजन त्यौहार व नवाजतन कार्यक्रम

कुपोषण मुक्ति हेतु ठोस कार्य योजना बनाने के लिए 5 वर्ष तक के बच्चों के लिए वजन त्यौहार का आयोजन 2012 से प्रारंभ.
वजन त्यौहार के उपरांत विशेष संवेदनशील ग्राम पंचायतों में नवाजतन कार्यक्रम के माध्यम से 1 लाख 37 हजार बच्चों को कुपोषण के स्तर से सामान्य स्तर पर लाया गया.

कुपोषण में उल्लेखनीय कमी

राष्ट्रीय परिवार एवं स्वास्थ्य सर्वेक्षण (2005-06) के अनुसार छत्तीसगढ़ में 2005-06 में कुपोषण की दर 47.1 प्रतिशत थी जो 2015-16 में घटकर 37.7 प्रतिशत रह गई है. इस तरह 10 वर्षो में 10 प्रतिशत की कमी. बौनेपन के आधार पर कुपोषण में 15.3 प्रतिशत की कमी लाने हेतु राज्य को देश में सर्वोत्कृष्ट राज्य का सम्मान प्राप्त.
विश्व बैंक सहायित समेकित बाल विकास सेवा तंत्र के सुदृढ़ीकरण एवं पोषण उन्नयन परियोजना (इस्निप)
विश्व बैंक सहायित इस्निप परियोजना वर्ष 2014 से संचालित. इसमें 17 जिले ( महासमुंद, कोरबा, दुर्ग, कवर्धा, जशपुर, कांकेर, दंतेवाड़ा, बीजापुर, बस्तर, नारायणपुर, रायपुर, बेमेतरा, बालोद, सुकमा, कोण्डागांव, गरियाबंद एवं बलौदाबाजार) शामिल. इनमें 7 जिलों (रायपुर, दुर्ग, महासमुंद, गरियाबंद, बेमेतरा, बालोद एवं कवर्धा) की कुल 8500 आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को मोबाइल फोन तथा 330 पर्यवेक्षकों को टैबलेट वितरित. परियोजना के अंतर्गत कुपोषित बच्चे एवं गर्भवती माताओं की टेलीफोनिक परामर्श कार्य हेतु न्यूट्री क्लिक केन्द्र की स्थापना भी की गई है. जन सामान्य में उनके स्वयं के बच्चों का पोषण स्तर जानने हेतु न्यूट्री चेक मोबाइल एप भी बनाया गया है. इस परियोजना के बेहतर क्रियान्वयन के लिए छत्तीसगढ़ को 5 बार देश में प्रथम तीन राज्यों में सम्मिलित किया गया है.

संस्कार अभियान का शुभारंभ

गर्भधारण से 6 वर्ष की आयु तक के बच्चों का सर्वांगीण विकास हेतु 10 मार्च 2017 को संस्कार अभियान की शुरुआत. संस्कार अभियान को देश की 200 सर्वश्रेष्ठ स्मार्ट गवर्नेस परियोजनाओं में स्थान प्राप्त हुआ.

महतारी जतन योजना

गर्भवती माताओं को कुपोषण से बचाने 2 मई 2016 में शुरु इन योजना के तहत आंगनबाड़ी केन्द्र के माध्यम से गर्भवती महिलाओं को संतुलित आहार. वर्तमान में इस योजना से 1.60 लाख गर्भवती महिलाएं लाभान्वित हो रही हैं.

मुख्यमंत्री अमृत योजना

आंगनबाड़ी केन्द्र में आने वाले 3 से 6 वर्ष  आयु के बच्चों के लिए 29 अप्रैल 2016 को प्रारंभ इस योजना के तहत बच्चों को 100 मिली लीटर मीठा सुगंधित दूध प्रत्येक सोमवार को दिया जा रहा है. वर्तमान में 8 लाख बच्चों को लाभान्वित किया जा रहा है. राज्य सरकार की इन योजनाओं की वजह से प्रदेश में कुपोषण से जंग निर्णायक साबित हो रहा है. कुपोषण को लेकर डॉ रमन के इलाज से छत्तीसगढ़ जल्दी ही कुपोषण मुक्त राज्य बन जाएगा.

SPONSORED