शिक्षाकर्मियों के परिवार में आज जश्न का माहौल है. जश्न संविलयन का है. जश्न उस दिन का है जिसका इंतजार वे दशकों से कर रहे थे. डॉ रमन सिंह ने शिक्षाकर्मियों और उनके परिवार के उस इंतजार की उस घड़ी को खत्म कर उन्हें उनके जीवन की सबसे बड़ी सौगात दे दी. डॉ रमन ने जैसा कहा वैसा किया. डॉ रमन सिंह ने 8 साल की नौकरी पूरी कर चुके सभी शिक्षाकर्मियों को उनके जीवन का सबसे बड़ा उपहार दे दिया है. रमन सरकार के इस उपहार से ना सिर्फ शिक्षाकर्मियों का भविष्य सुरक्षित हो गया बल्कि उनकी पत्नी उनके बच्चों का भविष्य भी सीएम की घोषणा के बाद संवर गया. उनके बूढ़े-माता पिता के चेहरे पर पड़ी झुर्रिया और माथे पर चिंता की लकीरें की उनके बाद उनके बेटे-बेटी का क्या होगा. डॉ रमन सिंह के इस फैसले ने उन बूढ़े माता-पिता की आंखों को वो सूकून दे दिया जिसे सुनने के लिए उनके कान तरस रहे थे. ऐसा नहीं था कि शिक्षाकर्मियों की आवाजें अभी बुलंद हुई थी. उसके पहले भी सरकारें थी जिनके सामने उन्होंने अपनी मांगों को रखा था लेकिन किसी ने भी उनकी मांगों को जरा भी तवज्जो नहीं दिया. शिक्षाकर्मियों के चेहरे उम्मीदों से भरे हुए थे लेकिन दिल दर्द से अटे हुए थे. उनका और उनके परिवार का भविष्य सवालों में उलझा हुआ सा नजर आता था. उनकी मांगों के बीच मध्यप्रदेश से छत्तीसगढ़ अलग हो गया लेकिन उनकी चिंता का समाधान नहीं हुआ.

शिक्षाकर्मियों की भर्ती अविभाजित मध्यप्रदेश में जुलाई 1994 से अप्रैल 1994 तक 500 रूपए से 1000 रूपए के सीमित मानदेय में पहली बार हुई थी. इतने कम मानदेन मे कैसे उनके परिवार का गुजारा होता? इसी चिंता से वे तत्कालीन अविभाजित मध्यप्रदेश की सरकार से गुहार भी लगाए लेकिन उसका कोई असर सरकार पर नहीं हुआ. लिहाजा राजधानी भोपाल में शिक्षाकर्मियों ने उग्र आंदोलन किया. उनके आंदोलन के बाद सरकार ने उनके मानदेय में बढ़ोत्तरी करते हुए 2000 से 3500 उनका वेतन कर दिया. इसी बीच अविभाजित मध्यप्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ़ एक अलग राज्य बना. छत्तीसगढ़ की नई सरकार से उनकी उम्मीदें बहुत थी लेकिन वो उम्मीद भी दम तोड़ने लगी थी. इसी बीच 2003 में डॉ रमन सिंह ने सूबे की बागडोर संभाली. उनके सामने नव उदित राज्य के विकास को लेकर कई चिंताएं थी. कैसे सीमित संसाधन में प्रदेश में सड़क, स्कूल, कॉलेज का निर्माण हो, कैसे बेरोजगार युवकों को नौकरियां मुहैया कराएं. ऐसा नहीं था कि सूबे का विकास गढ़ने में व्यस्त डॉ रमन सिंह ने शिक्षाकर्मियों की उन मांगों को अनसुना कर दिया. उनकी उस तकलीफ को भूल गए कि कैसे 2000 रुपए में किसी शिक्षाकर्मी का परिवार चलता. लिहाजा उन्होंने शिक्षाकर्मियों के वेतनमान को बढ़ाने का सबसे पहले आश्वासन दिया. और उन्होंने शिक्षाकर्मियों के वेतनमान को बढ़ाते हुए 15 हजार रुपए तक कर दिया.

मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने शिक्षाकर्मियों को आश्वासन दिया कि वे उनके नियमितिकरण की प्रक्रिया पूरी करेंगे और पंचायत शिक्षकों का संविलयन करेंगे. हालांकि उसमें कई तकनीकी दिक्कतें उनके सामने थी. डॉ रमन सिंह ने शिक्षाकर्मियों के संविलयन को लेकर आ रही तकनीकी दिक्कतों को दूर करने के लिए एक हाई पावर कमेटी का गठन किया. उस कमेटी ने आ रही तकनीकी दिक्कतों को दूर करने की रिपोर्ट दी. जिसके बाद उनके संविलयन का रास्ता साफ हो गया.

दरअसल संविलियन के तार 1994 में दिग्विजय सरकार से जुड़े. तब दिग्विजय सरकार ने व्याख्याता, शिक्षक और सहायक शिक्षक के पद को डाइंग कैडर में ला दिया था. मतलब कि इन पदों पर नियमित भर्ती खत्म कर दी गई थी. यही वो तकनीकी खामी थी जिसकी वजह से संविलियन रुका हुआ था. इस तकनीकी खामी को दूर करने में मध्यप्रदेश सरकार को 24 साल का लंबा वक्त लग गया. और इन 24 बरस में संविलिनय की मांग को लेकर धरना-प्रदर्शन-आंदोलन-संघर्ष-विरोध निरंतर चलता रहा. आखिरकार 2018 चुनावी वर्ष में शिवराज सरकार ने संविलियन का रास्ता खोज निकाला. और जिन पदों को दिग्विजय सरकार ने खत्म कर दिया था उसे शिवराज कैबिनेट ने पुनर्जीवित करते हुए शिक्षाकर्मियों के संविलियन को मंजूरी दे दी. मुख्यमंत्री की इस मंजूरी के बाद पंचायत विभाग के तहत काम करने वाले सभी शिक्षाकर्मी अब शिक्षा विभाग में अध्यापक के तौर पदस्थ हो जाएंगे. मतलब अब वे शिक्षा विभाग में व्याख्याता, शिक्षक और सहायक शिक्षक कहलाएंगे. जाहिर है शिवराज सरकार के इस फैसले का दबाव रमन सरकार पर पड़ा. और छत्तीसगढ़ में भी इसी फार्मूले के तहत प्रदेश के शिक्षाकर्मियों का संविलियन का रास्ता साफ हुआ.

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