रायपुर। झीरमघाटी नक्सल हमले को 5 साल पूरा होने जा रहा, लेकिन हमले के पीछ की कहानी का खुलासा आज तक नहीं हो सका है. मामला जितना संवेदनशील है उतना ही राजनीतिक भी हो चला है. या यह भी कहिए कि नक्सल घटना में कांग्रेस के शीर्ष नेताओं की हत्या ने इस मामले को इतना राजनीतिक बना डाला की घटना के रहस्य बजाए सुलझने के उलझते ही चले गए. घटना की एनएआईए जाँच पूरी हो चुकी लेकिन सच सामने नहीं आ सका. मामले की न्यायिक जाँच भी जारी है, लेकिन अभी तक नतीजा शून्य ही रहा. फिलहाल मामले की सुनवाई चल रही है और झीरम न्यायिक जाँच आयोग ने समय-सीमा और बढ़ा दी है.
लेकिन इसे लेकर घटना दिनांक 25 मई 2013 से लेकर जो राजनीति शुरू हुई वो 2018 में लगातार जा रही है. सरकार की ओर से घटना की सीबीआई जाँच की घोषणा की गई लेकिन उस अमल नहीं हो सका. और इसे ही आधार बनाकर कांग्रेस लगातार से इस मुद्दे को भूनाने और रमन सरकार पर निशाना साधने में कहीं कोई मौका छोड़ नहीं रही है. कांग्रेस ने सरकार को एक बार फिर यह मांग करके परेशानी में डाल दिया है कि न्यायिक जाँच आयोग के समक्ष कांग्रेस के वरिष्ठ नेता तात्कालीन केन्द्रीय गृहमंत्री सुशील शिंदे, तात्कालीन केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री आरपीएन सिंह सहित तात्कालीन प्रदेश के गृहमंत्री ननकी राम कंवर के साथ मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की गवाही होनी चाहिए. ंहलांकि सरकार ने नेताओं की गवाही से सरकार ने इंकार कर दिया है.
लेकिन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल इस मामले को लेकर अब ट्वीट किया है. भूपेश बघेल ने सरकार पर आरोप लगाया है कि सरकार एक तरफ कहती है कि जाँच होनी चाहिए तो फिर जाँच कराने से घबरा क्यों रही है ? हमे मालूम है कि सरकार इस मामले में फंसी हुई और दाल में काला है. तभी मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह इस मामले में गवाही से इंकार कर रहे हैं.
ये लिखा है भूपेश बघेल ने-
अगर रमन सिंह कहते हैं कि जांच होनी चाहिए तो क्यों वे आयोग के सामने गवाही से इनकार कर रहे हैं? जब उन्होंने सीबीआई की जांच नहीं करायी, तभी से हमें पता था कि दाल में कुछ काला जरुर है.