नए चीफ सेक्रेटरी की कवायद
सूबे के नए मुख्य सचिव के लिए लॉबिंग अभी से शुरू हो गई है। इसके लिए दिल्ली में प्रतिनियुक्ति पर पदस्थ दो अफसर ऐड़ी-चोटी का ज़ोर लगा रहे हैं। मौजूदा सीएस को 6 अफसरों की सीनियरिटी को बाईपास करके नियुक्त किया गया था। शिवराज के फिर सीएम की कुर्सी पर बैठते ही उनको सीएम बनाने के आदेश जारी हुए थे। वक्त से पहले ही शुरू हुई इस लॉबिंग के पीछे सरकार में शुरू हुई एक चर्चा है, जिसमें बिटवीन द लाइन्स ये है कि मौजूदा सीएस का रिटायरमेंट से पहले ही कोई नया आईएएस सीएस बनाया जाए। विधानसभा चुनाव से ऐन पहले सरकार नए सीएस का जोखिम नहीं उठाना चाहती है। इसलिए रिटायरमेंट के पहले ही किसी नए को मौका देने की रणनीति भी इस्तेमाल की जा सकती है।
किसकी कार आने पर हट जाती है सीएम की भी कार?
विधानसभा की गतिविधियां ओहदा और ओहदेदार का प्रभाव ज़ाहिर कर देती हैं। ज़िक्र करते हैं वीवीआईपी कारकेड का। अब तक जितने भी नेता प्रतिपक्ष हुए हैं, उनकी कार विधानसभा के उसी पोर्च पर पहुंचती थी, जहां विधायकों की एंट्री होती है। लेकिन कमल नाथ को लेकर मामला अलग है। कमल नाथ की कार विधानसभा स्पीकर के पोर्च में खड़ी होती है, कमल नाथ यहां से एंट्री करते हैं। बीती दो दिन की विधानसभा में पहले ही दिन हुए एक वाकया ऐसा हुआ, जिसने सबको चौंका दिया। सीएम का काफिला विधानसभा पहुंचा और स्पीकर के पोर्च पर खड़ा हो गया। सीएम साहब तो अंदर चले गए पर कार वहीं खड़ी रही। चंद मिनिट बाद कमल नाथ के कारकेड के पहुंचने की सूचना वायरलेस सेट पर आयी। चूंकि उसे भी स्पीकर के पोर्च तक पहुंचना था, इसलिए सीएम की कार को हटाई गई। यहां मौजूद लोगों में खुसुर-फुसुर शुरू हो गई कि कमल नाथ का जलवा कायम है।
कमल नाथ का बंटवारा
नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी का इंतज़ार करने वालों का इंतज़ार और बढ़ सकता है। इसके संकेत अब फिर मिल गए हैं। दरअसल, कमल नाथ ने नेता प्रतिपक्ष का कामकाज दो नेताओं में बांट दिया है। आधा काम डॉ.गोविंद सिंह संभाल रहे हैं, और बाकी सज्जन सिंह वर्मा। केवल काम ही नहीं बल्कि कमल नाथ ने अपना स्टाफ भी दोनों नेताओं को सौंप दिया है। यही नहीं, नेता प्रतिपक्ष के लैटर हैड का इस्तेमाल भी अब डॉ. गोविंद सिंह ही कर रहे हैं। कमल नाथ के बंगले पर उनका काम वही विश्वस्त देख रहे हैं, जो पहले हुआ करते थे। दिल्ली से खबर ये है कि पीसीसी चीफ के पद पर भी फैसला अटक गया है। इसलिए जो दिग्गज इन दोनों में से एक कुर्सी पर बैठने के सपने संजो रहे थे, उन्हें लंबा इंतज़ार करना पड़ेगा।
वीआरएस लेने वालों की आयी बाढ़
कुदरती बाढ़ के साथ ही सरकारी महकमे वीआरएस लेने वालों की बाढ़ से परेशान हो गए हैं। दूसरी लहर के बाद वीआरएस के आवेदनों की तादाद में अप्रत्याशित बढ़ोतरी हुई है। इनमें रिटायरमेंट के करीब पहुंचने वाले वो कर्मचारी हैं जो कोविड का दंश झेल चुके हैं। अब वे स्वास्थ्य कारणों से रूटीन कामकाज नहीं कर पा रहे हैं। बड़ी तादाद में सरकारी कर्मचारी लंबी छुट्टी पर भी जाने लगा है। शुरुआत में तो वीआरएस मंजूर हो रहे थे। मगर अब बढ़ती तादाद ने अफसरों को भी सोचने पर विवश कर दिया है। सभी वीआरएस मंजूर कर दिए गए तो कर्मचारियों की कमी झेल रहे विभागों में कामकाज पर बुरा असर हो सकता है।
यहां नहीं बनना चाहता कोई संचालक
स्वास्थ्य महकमे में एक दफ्तर स्वास्थ्य संचालनालय के नाम से चलता है। लेकिन इस दफ्तर का संचालक यानी विभागाध्यक्ष कोई नहीं बनना चाहता है। दफ्तर में दो एडिशनल डायरेक्टर हुआ करते हैं। इनमें से एक डायरेक्टर को सीनियरिटी के आधार पर विभागाध्यक्ष बनना था, लेकिन उन्होंने ये जिम्मा लेने से इनकार कर दिया है। अब हाल ही में यहां नयी परंपरा बनाकर तीसरा एडिशनल डायरेक्टर नियुक्त किया गया है। कामकाज का बंटवारा नहीं हुआ है, लेकिन संभावना ये बनने लगी है कि अब एक जूनियर अफसर विभागाध्यक्ष होगा। और सीनियर अफसर को अपनी फाइल मंजूरी के लिए जूनियर को भेजनी होगी। हालांकि ये बता दें कि नियमानुसार यहां एक अफसर की डायरेक्टर के पद पर नियुक्ति होनी चाहिए, लेकिन कई सालों से एडिशनल डायरेक्टर को ही विभागाध्यक्ष यानी डायरेक्टर का चार्ज दिया जा रहा है।
दुमछल्ला…
एक दिग्गज रिटायर अफसर के करीबी व्यक्ति के 2 करोड़ रुपए एक मंत्री के पास फंस गए हैं। सौदा कुछ लंबा काम दिलाने का हुआ था, जो मंत्रीजी के डिपार्टमेंट की पब्लिसिटी से ताल्लुक रखता है। लंबा वक्त बीत चुका है, कुछ काम नहीं मिला। अब पीड़ित अपने 2 करोड़ रुपए वापस लेने के लिए चक्कर लगा रहा है। हालत ये है कि मंत्रीजी पीड़ित को देखते ही भाग खड़े होते हैं। मामला सीरियस हो रहा है क्योंकि इस बात की शिकायत आरएसएस तक पहुंच चुकी है।
(संदीप भम्मरकर की कलम से)