बंगलुरु-आखिरकार बहुमत का जुगाड़ न कर पाने के कारण कर्नाटक में वी एस येदियुरप्पा की ढ़ाई दिन की भाजपा सरकार गिर गई.बेहद नाटकीय घटनाक्रम के तहत राज्यपाल ने येदियुरप्पा को सरकार बनाने के लिये आमंत्रित किया था और आनन फानन में 17 मई की सुबह येदियुरप्पा ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी.राज्यपाल ने बहुमत सिद्ध करने के लिये 15 दिन का समय दिया था,जिसके बाद राज्यपाल के फैसले को लेकर हर तरफ आलोचना हुई.विपक्षी दलों ने राज्यपाल के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में शरण ली ,जिस पर रात भर सुनवाई चली .सुप्रीम कोर्ट ने येदियुरप्पा के मुख्यमंत्री पद के शपथ लेने पर तो रोक नहीं लगाई थी,लेकिन उसने कल हुई सुनवाई के बाद 24 घंटे के भीतर बहुमत साबित करने के आदेश जारी किये थे.सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद ही कर्नाटक सहित दिल्ली के सियासी गलियारे में हडकंप मच गया और इस बात के कयास लगाये जाने लगे कि अब क्या येदियुरप्पा अपना बहुमत सिद्ध कर पायेंगे.ज्यादातर लोगों का मानना था कि येदियुरप्पा के पास मैजिक फिगर तक पहुंचने के रास्ते नहीं बचे हैं और हुआ वही. मजबूर येदियुरप्पा को इस्तीफा देना पड़ा.हालॉकि इस्तीफे से पहले येदियुरप्पा ने भावुक होकर भाषण दिया और कहा कि कांग्रेस और जेडीएस ने अवसरवादी राजनीति का परिचय देते हुए जनादेश का अपमान किया है.
येदियुरप्पा के इस्तीफे के बाद जेडीएस और कांग्रेस गठबंधन के सरकार बनाने का रास्ता साफ हो गया है.पिछले तीन दिन की तमाम उठापटक के बाद अब सवाल ये उठ रहा है कि कर्नाटक के नये समीकरण के देश की राजनीति में क्या परिणाम होंगे.जिस प्रकार कर्नाटक प्रकरण में राज्यपाल के फैसले की आलोचना हुई और विपक्ष ने इसे लोकतंत्र की हत्या बताई,उससे देश भर में भाजपा की छवि खराब हुई. क्योंकि कुछ महीने पहले ही भाजपा ने कुछ राज्यों में चुनाव के बाद सबसे बड़ी पार्टी के रुप में उभरने वाले दलों को दरकिनार करते हुए जोड़तोड़ कर अपनी सरकार बना ली थी,लेकिन कर्नाटक में जब यही फार्मूला कांग्रेस ने अपनाया तो राज्यपाल का विवेकाधिकार बताते हुए भाजपा ने अपने पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश की.राजनीतिक विश्लेषकों ने कर्नाटक में सरकार बनाने के भाजपा के फैसले की आलोचना की और इस फैसले को भाजपा आलाकमान की तानाशाही करार दिया.कुल मिलाकर इस प्रकरण में भाजपा के रणनीतिकारों की भद्द पिट गई और तात्कालिक रुप से कांग्रेस को इसका फायदा मिल गया है.कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान करते हुए भाजपा की जमकर आलोचना की है और अपने पक्ष में सहानुभुति बटोरने की हरसंभव कोशिश कर रही है.लेकिन अब सवाल यह उठता है कि क्या कांग्रेस जेडीएस के कुमारस्वामी के नेतृत्व में बनने वाली सरकार में कम्फर्ट जोन में रह पायेगी,क्योंकि कैम्पेन के दौरान इसी जेडीएस को कांग्रेस ने भाजपा की बी टीम बताते हुए आक्रामकता दिखाई थी,लेकिन इसे राजनीतिक मजबूरी ही कहेंगे कि अब इसी बी टीम के साथ कांग्रेस सरकार बनाने जा रही है.अब कांग्रेस की मजबूरी होगी कि वे कुमारस्वामी के नेतृत्व वाली सरकार को हरसंभव लोकसभा चुनावों तक बचाये रखे,जिससे आगामी चुनावों में इसका फायदा उसे मिल सके.डगर कठिन है,फिर भी राजनीतिक मजबूरियों के चलते 37 सीट वाली जेडीएस की पार्टी को 78 सीट वाली कांग्रेस को पीेछे से धकेलना ही होगा,क्योंकि सरकार पर किसी तरह का संकट आन पड़ता है,तो फिर कांग्रेस को ही इसका नुकसान उठाना पड़ेगा.फिलहाल जेडीएस के लिये खोने को कुछ नहीं है और उसे सीधे तौर पर कांग्रेस और भाजपा की सियासी खींचतान का फायदा मिलना ही था.
अब कांग्रेस की यही कोशिश रहेगी कि वह गठबंधन सरकार के जरिये काम कर कर्नाटक की जनता के बीच अपनी छवि सुधारे,जिससे भविष्य में होने वाले चुनावों में उसे इसका फायदा मिल सके,वहीं दूसरी ओर भाजपा के पास वेट एंड वॉच के अलावा कुछ भी नहीं बचा है.भाजपा के लिये संतोषजनक बात केवल ये हो सकती है कि 104 विधायकों वाली भाजपा मजबूत विपक्ष की भूमिका निभाते हुए सरकार पर हमेशा दबाव बनाये रखे और कर्नाटक की जनता के सामने एक सकारात्मक संदेश दे सके,जिसका फायदा उसे आगामी चुनावों में मिल सके.