गुजरात । भारत का इतिहास बहुत ही रोचक रहा है यहां हर मंदिर की अपनी कहानी और अपना अलग इतिहास है चाहे वो कोणार्क का सूर्य मंदिर हो या दक्षिण का पद्मनाभ स्वामी मंदिर. किसी ना किसी मंदिर के पीछे कोई ना कोई रहस्य जरूर छुपा होता है. ऐसा ही एक मंदिर है जो दिन में दो बार देखते ही देखते अापकी आंखों के सामने से ओझल हो जाता है. यह मंदिर है गुजरात का स्तंभेश्वर मंदिर. यह मंदिर महादेव का है. इस मंदिर की खोज करीब 150 साल पहले हुई थी.

दरअसल यह मंदिर अरब सागर की खम्भात की खाड़ी के किनारे है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वहां ज्वार आता है और इस वजह से मंदिर डूब जाता है और जब ज्वार गायब हो जाता है तब मंदिर दिखने लग जाता है और ऐसा दिन में दो बार होता है. मंदिर के दर्शन करने के लिए लोग जाते है जब यह दिख रहा होता है.इसके अलावा वहां पर्चे भी बाटें जाते है और वो समय बताया जाता है जब मंदिर डूबने वाला होता है और वहां ना जाने की सलाह दी जाती है. कई सारे लोगो ने मंदिर में उस वक्त जाने की कोशिश की जब वो मंदिर डूबा हुआ हो लेकिन कोई सफल नहीं हुआ.

इस मंदिर में ऐसा क्यों होता है और इसका निर्माण क्यों हुआ इसके पीछे पौराणिक कथा भी है जैसे हर एक मंदिर की होती है. कहा जाता है की ताड़कासुर नाम का राक्षस भगवान शिव का बहुत भक्त था और उसने सालों भगवान की तपस्या की और भगवान प्रगट हुए.

जब भगवान प्रगट हुए तो उसने भगवान् से वरदान माँगा की मेरी हत्या केवल आपका पुत्र कर सके और उसे पुत्र की उम्र केवल छ दिनों की होनी चहिये। अब भगवान की तपस्या की थी तो भगवान को ये वरदान देना पड़ा। इसके बाद ताड़कासुर पूरी सृष्टि में उत्पाद मचाने लगा क्योकि उसे ये पता था की भगवान शिव के पुत्र के अलावा उसका वध कोई नहीं कर सकता है और भगवान शिव का कोई पुत्र उस समय था नहीं.

बढ़ते हाहाकार को देखते हुए भगवान् शिव और पार्वती का मिलन हुआ और कार्तिकेय का जन्म हुआ जो गणेश जी से बड़े है. जब कार्तिकेय छ दिन के हुए तो उन्होंने ताड़कासुर की हत्या कर दी. हत्या के बाद जब उन्हें पता चला की ये भगवान शिव का भक्त था, तो उन्हें बहुत ग्लानि हुई तो विष्णु जी ने उन्हें कहा की उस जगह एक मंदिर बनाया जाए जहाँ ताड़कासुर का वध हुआ है और उसमे शिवलिंग विराजमान किये जाए जिससे कार्तिकेय का दुःख कम होगा.

ऐसा किया गया और फिर भगवान शिव खुद वहां विराजमान हो गए. इसके बाद खुद सागर देवता दिन में दो बार भगवान शिव का जल अभिषेक करने आते थे और आज भी वैसा ही हो रहा है. कहा जाता है की ये ज्वार इसीलिए आता है क्योंकि सागर देवता भगवान शिव को जल चढ़ाते है.मंदिर में विराजमान शिवलिंग की लम्बाई चार फुट है और यह दो फुट गोल भी है. यहाँ आमवाश्या और महाशिवरात्रि के दिन भारी संख्या में लोग देश विदेश से आते है.