बैतूल. मध्यप्रदेश के बैतूल जिले के भंडारपानी गांव में सड़क की समस्या से जूझ रहे ग्रामीणों को सरकार ने सड़क बनाकर तो नहीं दिया, लेकिन 20 ग्रामीणों ने अपने बच्चों का भविष्य संवारने के लिए पहाड़ काटकर 3 किमी की कच्ची सड़क बना डाली. जिससे उनके बच्चे किसी भी मौसम में अन्य गांव के स्कूल तक नियमित रूप से पढ़ने जा सके. अब इन ग्रामीणों की सभी सराहना कर रहे है. बताते चले कि ठीक इसी तरह दशरथ मांझी ने भी पत्नी की मौत के बाद उसके प्यार में 22 सालों की कड़ी मेहनत से पहाड़ को तोड़ कर रास्ता बना दिया था. जिस पर फिल्म भी बनाई गई. अब ये कहानी दोबारा दोहराया गया है.

बैतूल जिले के भंडारपानी गांव में 500 लोग रहते हैं. गांव 1800 फीट ऊंचे पहाड़ी पर बसा है. यहां एक स्कूल है, जो झोपड़ी में बना है. सिर्फ पांचवीं तक पढ़ाई होती है, इसमें 58 बच्चे पढ़ते हैं, दो अतिथि शिक्षक भी हैं. इसलिए बच्चों को आगे की पढ़ाई के लिए दूसरे गांव में जाना पड़ता है. पहाड़ी होने की वजह से बच्चों को करीब 3 घंटे का वक्त लगता था. इस समस्या को दूर करने के लिए गांव के 20 लोगों ने बारी-बारी 45 दिन श्रमदान किया और पहाड़ी तोड़कर 3 किमी लंबा रास्ता बना दिया. अब बच्चे महज 30 मिनट में स्कूल पहुंच रहे हैं.

साभार दैनिक भास्कर

यहां के ग्रामीण बताते हैं कि भंडारपानी गांव 19 साल पहले पहाड़ी में बसा था. इस कारण यहां मूलभूत सुविधाओं की कमी है. पहाड़ी पर रहने वाले सभी परिवार आदिवासी हैं. इनका कहना है कि अभी तक 5वीं से आगे नहीं पढ़ पाते थे. लेकिन अब आगे की भी पढ़ाई कर पाएंगे.

तहसीलदार सत्यनारायण सोनी ने बताया कि यहां रहने वाले सभी परिवार आदिवासी हैं. यदि वे आबादी वाले क्षेत्र में बसना चाहते हैं, तो उन्हें बसाने के प्रयास किया जाएगा.

वाकई इनकी मेहनत रंग लाई और एक पहाड़ के चट्टान को तोड़कर रास्ता बना दिया. पहाड़ पर बड़े-बड़े पत्थर मौजूद थे, जिन्हें तोड़ने में ग्रामीणों को कड़ी मशक्कत करनी पड़ी, लेकिन इन्होंने हार नहीं मानी और रास्ता बना दिया. इस रास्ते से अब ना केवल बच्चे जा सकेंगे, बल्कि दो पहिया वाहन भी आ जा सकते हैं.