झिटकू और मिटकी की यह पुरानी अमर प्रेमगाथा बस्तर जिले के विकासखंड विश्रामपुरी के पेंड्रावन गांव की है. इसके अनुसार गोंड आदिवासी का एक किसान पेंड्रावन में निवास करता था. उसके सात लड़के और मिटकी नाम की एक लड़की थी. सात भाइयों में अकेली बहन होने के कारण वह भाइयों की बहुत प्यारी और दुलारी थी.
मिटकी के भाई इस बात से सदैव चिंतित रहते थे कि उनकी प्यारी बहन जब अपने पति के घर चली जाएगी तो वे उसके बिना नहीं रह पाएंगे, इस कारण भाइयों ने एक ऐसे व्यक्ति की तलाश शुरू की जो शादी के बाद भी उनके घर पर रह सके. वर के रूप में उन्हें झिटकू मिला, जो भाइयों के साथ काम में हाथ बंटाकर उसी घर में रहने को तैयार हो गया.
गांव के समीप एक नाला बहता था, जहां सातों भाई और झिटकू पानी की धारा को रोकने के लिए छोटा-सा बांध बनाने के प्रयास में लगे थे. दिन में वे लोग बांध बनाते थे और शाम को घर चले जाते थे, लेकिन हर रात पानी बांध की मिट्टी को तोड़ देता और उनका प्रयास व्यर्थ हो जाता था. एक रात एक भाई ने स्वप्न में देखा कि इस कार्य को पूर्ण करने के लिए देवी बलि मांग रही है. अंधविश्वास के आधार पर उन्होंने इस बात के लिए हामी भर ली और बलि के लिए झिटकू का चयन कर लिया. एक रात उन्होंने उसी बांध के पास झिटकू की हत्या कर दी. बहन को जब मालूम हुआ तो उसने भी झिटकू के वियोग में बांध के पानी में कूदकर अपने जीवन को समाप्त कर लिया. इस बलिदान की कहानी जंगल में आग की तरह सभी गांवों में फैल गई.
इस प्यार और बलिदान से प्रभावित होकर ग्रामीण आदिवासी झिटकू और मिटकी की पूजा करने लगे. आज ये आदिवासी प्रेम की सफलता के लिए झिटकू-मिटकी की पूजा को सही मानते हैं. उनका कहना है कि यहां पूजा करने के बाद कोई भी प्रेमी-प्रेमिका का सपना अधूरा नहीं रहता है. सदियों बाद आज के आधुनिक युग में झिटकू-मिटकी की ख्याति बस्तर के सुदूर गांवों से देश की राजधानी तक भी फैल चुकी है.