रामानुजगंज और वाड्रफनगर से रिपोर्ट। सरकार की मज़दूरों को लाने की घोषणा के बाद उनके पैदल सरहदों को पार करने का सिलसिला खत्म नहीं हो रहा है। हमारी संवाददाता ने हालात को समझने के लिए झारखंड के बॉर्डर पर जाकर हालात का जायज़ा लिया। यहां पता चला कि राज्यों की सरहदों को मज़दूर मुख्य सड़क के रास्ते पार नहीं करते बल्कि वे जंगल और नदियों के रास्ते पुलिस से बचते बचाते पार करते हैं।

बलरामपुर ज़िले के रामानुजगंज और झारखंड के गोदरमाना सीमा पर दोनों तरफ पुलिस का जबरदस्त पहरा था। इसलिए मज़दूर वहां नज़र नहीं आ रहे थे। पूछने पर पता चला कि पुल से गोदरमाना जाने की बजाय वे नदी को डांककर भौरी जा रहे हैं। अमूमन अब मज़दूर इसी रास्ते से झारखंड और बिहार जा रहे हैं।

इसी तरह यहां से करीब 60 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश के बॉर्डर चिपिया और सनावल पर सीधे रास्ते जाने से परहेज़ कर रहे हैं। इन पैदल चलने वाले मज़दूरों को राज्य सरकार की ट्रेनों और बसों के ज़रिए लाने की घोषणा के अमल होने का इंतज़ार नहीं करना चाहते।

वाड्रफनगर के पास हमे एक ऐसा ही नौजवान मज़दूरों का का दल मिला, जो 5 दिन पहले साईकल से निकलकर कुछ ही देर में बॉर्डर पार करने वाले थे। ये 14 लोग रायपुर से ही सायकलों में जौनपुर के लिए चले थे। इनमे से एक हरेंद्र राजभर ने बताया कि दल में जिन लोगों के पास साईकल नहीं थी उन्होंने 4 हज़ार रुपये में साईकल खरीदी और सब अपने घरों को रवाना हो गए। ये लोग दोपहर को आराम करते हैं। ज्यादतर रात को ही चलते हैं। ताकि थकावट कम हो।

ये सभी रायपुर के एक प्लाईवुड कंपनी में काम करते हैं। हरेंद्र का कहना है ये लोग अगर कुछ दिन और रायपुर रुकते तो जो पैसे उनके पास बचे थे, वो सब खत्म हो जाते। और इन्हें खाने के लिए तरसना पड़ता। इसके अलावा बार-बार घरवालों के फ़ोन और उनकी चिंता से भी तनाव बढ़ता जा रहा था। इसलिए ये निकल पड़े। खाने पीने की परवाह इन्होंने नहीं की। इन्हें रास्ते मे जहां खाना मिलता है, खा लेते हैं। कहीं ढाबे में खाने को मिल जाता है तो कहीं कोई दे देता है।

हरेंद्र का कहना है कि ज़िले के बॉर्डर पर दिक्कत नहीं होती। बिलासपुर के बॉर्डर पर सभी मज़दूरों की थर्मल स्क्रीनिंग हुई थी। अपने गांव जाने के बाद ये स्कूल में बने अलग-थलग रूम में रुकेंगे। इनका कहना है कि अभी कितनी दूरी तय करनी है, इन्हें नहीं मालूम। बस ये चले जा रहे हैं। इतना बताने के बाद ये सभी बॉर्डर की तरफ निकल गए। इन लोगों का कहना है कि सरकार के ट्रैन चलाने की घोषणा से पहले ये लोग निकल चुके थे। और सरकार की घोषणा कब पूरी होगी इसका भी कोई भरोसा नहीं इसलिए वे चलते चले गए। 

इनके घरवाले परदेस में इनके होने से परेशान हैं। परिजन चाहते हैं कि मज़दूर जल्द से जल्द लौट आएँ। घरवालों से मिलने की आस और तालेबंदी के चलते आ रही दिक्कतों के मद्देनज़र तमाम मज़दूर अपने घरों को लौटना चाहते हैं। वे पैदल चल रहे हैं। कोई ट्रक वाला रहनुमा बनकर कुछ दूरी पार करा देता है। या साइकल लेकर दौड़ रहे हैं। हर किसी को उम्मीद है, लेकिन यकीन नहीं कि वे घर पंहुच ही जायेंगे। पर सब चलते ही जा रहे हैं।