रायपुर. मकर संक्रांति के मौके पर मंत्री बृजमोहन अग्रवाल और मेयर प्रमोद दुबे ने सामूहिक पतंगबाज़ी का लुत्फ उठाया. इस मौके पर मंत्री बृजमोहन अग्रवाल और रायपुर के मेयर प्रमोद दुबे ने साथ में पतंगबाज़ी की. रोटरी क्लब ने छेरीखेड़ी में पंतग महोत्सव का आयोजन किया था. जिसमें दोनों नेताओं ने शिरकत की थी.

इस मौके की जो तस्वीर मीडिया से साझा की गई है उसमें पतंग हवा में है, डोर छत्तीसगढ़ की सियासत में बेदह कद्दावर माने जाने वाले मंत्री बृजमोहन के हाथों में है. जबकि मंत्री की डोर लपेटने वाली चकरी मेयर प्रमोद दुबे ने संभाल रखी है. सोशल मीडिया में इस तस्वीर के साझा होते ही व्हाट्सअप से लेकर फेसबुक तक कई किस्से बनने और घुमने लगे.

इस तस्वीर को लेकर कई तरह के चुटीले कमेंट व्हाटसअप पर हो रहे हैं. जैसे ”किसकी डोर किसके पास है”. ”डोर खीचीं जा रही है या ढीली की जा रही है”. ”सोचिए अगर चकरी ना हो तो डोर कैसे उलझ जाएगी”. ”चकरी भले ही मेयर के हाथ में है लेकिन उसे कब ढील देनी है कब खींचना है ये फैसला मंत्री बृजमोहन कर रहे हैं”. ”बृजमोहन के हाथ में डोर, प्रमोद के हाथ में चकरी, पतंग किसकी मानी जाए.” इस तरह के ना जाने कितने चुटीले कमेंट हो रहे हैं.

जैसे कई कमेंट सोशल मीडिया पर घुम रहे हैं. ये दोनों ही सियासदां एक दूसरे की पुरज़ोर मुखालफत करने वाली पार्टी की नुमांइदगी करते हैं. लेकिन तस्वीर उनकी नज़दीकियों की कहानी बयां कर रही है. इसकी एक बड़ी वजह है कि दोनों एक ही शहर की राजनीति करते हैं.

हालांकि किस्सों की किस्सों की हकीक़त ये दोनों नेता ही जाने. लेकिन जिस मौके पर ये तस्वीर वायरल हो रही है वो अहम है. साल की रुखसती के मौके पर सूबे में नई सरकार के लिए चुनाव होने हैं. कई लोग एक के खिलाफ दूसरे को मुफीद दावेदार मानते हैं. लेकिन ये भविष्य की बातें हैं.

हाल के महीनों का अतीत कुछ और है. ये तस्वीर उस वक्त आई है. जब मेयर साहेब काम से ज़्यादा मंत्रियों से नज़दीकियों को लेकर सुर्खियों बटोरते रहे हैं. पार्टी से लेकर मीडिया में ये नज़कियां चुटीला सियासी मुद्दा रहा है. दिग्विजय सिंह जैसे कांग्रेस पार्टी के आला नेता मेयर प्रमोद दुबे की मंत्रियों के साथ छपी फोटो पर चुटकी ले चुके हैं. बीजेपी के प्रणेता पंडित दीन दयाल उपाध्याय जंयती के कार्यक्रम में शरीक होकर प्रमोद दुबे विवादों में घिर चुके हैं.

दरअसल, सिसायत के अपने मायने हैं तो हुकूमत की अपनी ज़रुरते और रस्मअदायगियां हैं. हुकूमत में प्रोटोकॉल के तहत अक्सर दोनों सियासतदानों को कई मौके पर साझे तौर पर शरीक होना पड़ता है. सियासी पंडित इनके मायने भी निकालते हैं. लेकिन फिर भी शरीक होना मजबूरी है. लेकिन जब कुछ इस तरह की तस्वीरें सामने आती हैं तो कई किस्से और कहानियां सियासी और आभासी फिज़ाओं में तैरने लगते हैं.