वैभव बेमेतरिहा, रायपुर। छत्तीसगढ़ में इन दिनों सियासी केन्द्र में सबसे बड़ा मुद्दा पत्थलगढ़ी का. इस मुद्दे के केन्द्र में छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा वर्ग आदिवासी है. और इस वर्ग को साधना हर दल चाहता है. लेकिन सत्ता से जब यह वर्ग नाराज दिखें और जब यह नाराजगी पत्थलगढ़ी का स्वरूप ले ले तो फिर ‘भागवत’ ज्ञान सत्ता के लिए लाजिमी हो जाता है. दरअसल इन दिनों छत्तीसगढ़ में सरकार के लिए संघ के रास्ते ‘भागवत’ ज्ञान वनवासी आश्रम के जरिए दिया जा रहा है.

चूँकि छत्तीसगढ़ में 2018 में चुनाव है. और इस वर्ष चुनावी समर में सत्ता के सामने आदिवासी भी है. लिहाजा समाज दो प्रमुख दलों के बीच मुकाबले को तैयार है. हालांकि विपक्ष फिर भी समाज को समर्थन कर रहा है. शायद समर्थन इसलिए भी है क्योंकि आदिवासी समाज पत्थलगढ़ी मुद्दे की लड़ाई में सत्ता के खिलाफ है. इस खिलाफत का फायदा समाज के जरिए विपक्ष खुद के लिए देख रहा है.

यही चिंता शायद सत्ता को भी है और सत्ताधारी संगठन को भी. और जब चिंता दोनो ही ओर से दिखे तो फिर संघ गंभीर तो होगा ही. सत्ता की स्थिति और समय-काल-परिस्थिति तमाम रिपोर्टों में फिलहाल सत्तानुकूल नहीं है. ऐसे में आश्रम व्यवस्था से वनवासियों के कल्याण के रास्ते को खोजकर ‘भागवत’ ज्ञान के आसरे हर चुनौती को पार की कोशिश सत्ताधारी संगठन की ओर से की जा रही है.

मसलन जिस मुद्दे पर सत्ता जहां लापरवाह दिखती है वहां संघ बेहद गंभीर है. संघ के पास पत्थलगढ़ी की पूरी रिपोर्ट है और इस रिपोर्ट में सत्ता की ओर से उठाए गए सभी कदम. ऐसे में छत्तीसगढ़ की जमीन पर आदिवासी केन्द्रित दो दिवसीय चिंतन और मंथन से सत्ता और संगठन को ‘भागवत’ ज्ञान की प्राप्ति कितना और किस रूप में हो पाता है इसे वक्त के साथ आदिवासी ही तय करेंगे.