हेमंत शर्मा, रायपुर । कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय कुलपति डॉ मानसिंह परमार को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने नोटिस दिया है. यह नोटिस योग्य नहीं होने के बाद डॉ. परमार कुलपति बनाए जाने को लेकर लगाई याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने दिया है. डॉ. परमार की नियुक्ति को छत्तीसगढ़ नागरिक संघर्ष समिति के अध्यक्ष डॉ राकेश गुप्ता ने उच्च न्यायालय छत्तीसगढ़ में चुनौती दी है. प्रकरण में विश्वविद्यालय कुलपति डॉ. मानसिंह के साथ-साथ यूजीसी को भी पक्षकार बनाया गया है.
याचिकाकर्ता डॉ. राकेश गुप्ता की ओर कोर्ट में यह दलील दी गई है-
डॉ परमार विश्वविद्दालय अनुदान आयोग द्वारा निर्धारित अनुभव न्युनतम 10 वर्षों तक प्रोफेसर के रूप में अनुभव नहीं रखते.
विज्ञापन में पद के लिए जब आवेदन पत्र आमंत्रित किए गए थे तो योग्य ना होने के बावजूद डॉ परमार ने आवेदन दाखिल किया.
चयन समिति ने डॉ परमार की योग्यता की जांच किए बिना ही उनका नाम कुलपति पद के लिए अनुशंसित कर दिया.
आवेदन और संलग्न दस्तावेजों में डॉ परमार ने कहीं भी अपने शैक्षणिक व अनुभव संबंधी प्रमाण पत्र प्रदर्शित नहीं किए हैं.
डॉ. राकेश गुप्ता का कहना है कि राज्य में कुलपति नियुक्ति के मामले में भेदभावपूर्वक नीति अपनाई जा रही है. बिलासपुर विश्वविद्दालय के कुलपति की नियुक्ति के दौरान डॉ सदानंद शाही के विरुध्द नियुक्ति की घोषणा के बाद प्राप्त शिकायत के आधार पर उनका पदग्रहण राजभवन से तत्काल रुकवा दिया गया था और उच्च स्तरीय जांच कमिटी गठित रिपोर्ट और विधि विभाग से परामर्श के आधार पर नियुक्ति को रद्द कर दिया गया था. जबकि समान आधार पर शिकायत प्राप्त होने के बाद भी पत्रकारिता विश्वविद्यालय में डॉ परमार को कुलपति बने रहने दिया गया.
याचिकाकर्ता डॉ राकेश गुप्ता का कहना है कि कार्यवाही नहीं होने के कारण उन्हे उच्च न्यायालय की शरण में जाना पड़ा. प्रदेश के उच्च शिक्षा विभाग में बेहद निराशााजनक वातावरण है, ऐसे व्यक्ति भी कुलपति पद के लिए नियुक्त कर दिए जाते हैं जो पद के लिए न्यूनतम योग्यता भी नहीं रखते हैं. आश्चर्य की बात तो यह है कि छत्तीसगढ़ शासन और उच्च शिक्षा विभाग के पास आज तक डॉ परमार के अनुभव और शैक्षणिक योग्यता के दस्तावेज उपलब्ध नहीं है. गौरतलब है कि पत्रकारिता विश्वविद्दालय में इससे पहले भी नियुक्ति को लेकर विवाद हो चुका है. इस संबंध में लोक आयोग ने पुन: मेरिट लिस्ट जारी करने और पूर्व कुलपति के विरुध्द कार्यवाही की अनुशंसा भी की है.
वहीं जब इस संबंध में हमने कुलपति डॉ. परमार से बात की तो उन्होंने इस मामले चुप्पी साध ली. वे पहले तो हमसे बात करने के लिए रुके, लेकिन जैसे हाईकोर्ट से नोटिस का जिक्र किया तो वे पल्ला झाड़ते हुए चलते बने.