रायपुर। छत्तीसगढ़ में एक नए युवा नेतृत्व का उदय हो गया है. लोग इस युवा नेतृत्व में उनके दादा की निशानी देख रहे हैं. नेतृत्व और निशानी की ये कहानी उस भवानी की है जिन्होंने 2018 के विधानसभा चुनाव में अपने पिता को ऐतिहासिक जीत दिलाकर खुद को साबित कर दिखाया है. इस जीत के बाद से भवानी को महासमुंद क्षेत्र के स्थानीय लोग उस चमकते सितारे की तरह देख रहे हैं जैसे भारतीय राजनीति में उनके दादा देखे जाते रहे हैं. ये कहानी उस युवा तुर्क की है जिन्होंने अब पूरी तरह से खानदानी विरासत को संभाल लिया है. संगम की धरा में युवा तंरग और नया जोश, नई उमंग से राजनीति का जो मिलन हो रहा है उसे क्षेत्र के लोग बखूबी देख भी रहे हैं और समझ भी.

नाम-भवानी शंकर शुक्ल, पिता-अमितेष शुक्ल, दादा-श्यामाचरण शुक्ल. वैसे तो इतना अपने आप में पर्याप्त है भवानी शंकर को जानने के लिए. लेकिन भवानी शंकर को समझने के लिए उनके व्यवहारों से, उनके आचरणों से, उनके कार्यों से आपको रूबरू होना पड़ेगा. शायद विधानसभा चुनाव-2018 में राजिम क्षेत्र के लोगों ने भवानी को इन्हीं सब चीजों से न सिर्फ समझा बल्कि उन्हें स्वीकार कर अपना माना भी. तभी लोगों को यह लग रहा है कि आने वाले वक्त में एक बार फिर उन्हें श्यामाचरण-विद्याचरण जैसे नेता मिलेगा. क्योंकि भवानी ने बीते चुनाव में जिस जिम्मेदारी से अपनी भूमिका नभाई, जिस अंदाज में वे लोगों से मिले-जुले उसने सारे रिकार्ड तोड़ दिए.

भवानी महासमुंद संसदीय इलाके में एक ऐसा युवा नेतृत्व है जो जितना उच्च शिक्षित उनता ही जमीनी भी. भवानी का जन्म रायपुर में हुआ. लेकिन उन्होंने अपना कर्मभूमि पिता और दादा के क्षेत्र में ही रखा. 34 वर्षीय भवानी शुक्ल ने अपनी राजनीतिक जीवन यात्रा की शुरुआत 2004 से ही कर दी थी. तब उन्होंने अपने दादा श्यामाचरण शुक्ल के संसदीय क्षेत्र महासमुंद इलाके में गांव-गांव दौरा किया था. इसके बाद लगातार वे अपने पिता अमितेष शुक्ल के साथ राजिम क्षेत्र में सक्रिय रहे. 2008 और 2013 के विधानसभा चुनावों में युवाओं के साथ चुनावी कमान भी संभाला. इसके बाद 2018 के चुनाव में पिता अमितेष शुक्ल के मुख्य चुनाव संचालक खुद ही रहे.

भवानी ने आज महासमुंद इलाके के गांव-गांव में अपनी अच्छी पैठ बना ली है. गांव वालों के साथ सामाजिक कार्यक्रमों में वे प्रमुखता से अपनी भागीदारी निभाते हैं. यही वजह है कि भवानी शंकर शुक्ल ने 2018 के चुनाव में वो कर दिखाया जिस पर कांग्रेस ही क्या राजनीति के अच्छे-अच्छे रणनीतिकारों तक को विश्वास नहीं था. भवानी के चुनाव संचालन में उनके पिता अमितेष शुक्ल ने 58 हजार से अधिक मतों से चुनाव जीतकर रिकार्ड कायम किया. यह शुक्ल परिवार को मिला इलाके के लोगों का अपार प्यार और आशीर्वाद है.

बेहद ताकतवर राजनीतिक परिवार से होने के बाद भी भवानी शंकर शुक्ल का पहनावा से लेकर खान-पान और उठना-बिठना बहुत ही साधारण है. शायद भवानी का सहज पन उन्हें लोगों के करीब लाता है. यही वजह है कि लोग उनके भीतर श्यामाचरण की छवि को महसूस करने लगे हैं. भवानी आज इलाके में युवा जोश के प्रतीक हैं तो महासमुंद संसदीय क्षेत्र के युवा नेतृत्वकर्ता भी. एक ऐसा नेतृत्वकर्ता जिसे लोग लोकसभा में नेतृत्वकर्ता के तौर पर देखना चाहते हैं. भवानी से जुड़ी ऐसी ही कुछ और भी कहानियां है….जिसे आपको सीरिज के जरिए बताएंगे…. बताएंगे कि आखिर भवानी के सामने क्या है सबसे बड़ी चुनौती…भवानी के दिल में इलाके लोगों के लिए है क्या….? ये सब जानने के लिए पढ़ते रहिए lalluram.com