रायपुर। चेहरे में तनाव, चढ़ी हुई भौंहे और दिल की बढ़ी हुई धड़कने साफ बता रही थी, कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला समान जेंडर से प्यार करने वाले लोगों के लिए कितना महत्वपूर्ण होने वाला था. जब यह फैसला आने वाला था उस वक्त देश के हर कोने से एलजीबीटी समुदाय के लोग सुप्रीम कोर्ट के बाहर मौजूद थे. छत्तीसगढ़ के भी 26 लोग वहां मौजूद थे. कुछ समय तक जो लोग अपराधी हुआ करते थे वो सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के बाद अापराधिक श्रेणी से बाहर हो गए. मानो एलजीबीटी समुदाय के लोगों को जीने का अधिकार मिल गया हो.

समान जेंडर से प्यार करना कोई पाश्चात्य सभ्यता नहीं है. यह तो जैविक रूचि है जिसमें किसी का नियंत्रण नहीं, यह कहना है कुशाभाऊ ठाकरे विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले छात्र विकास का. विकास समलैंगिक हैं और इन्हे अब अपनी पहचान उजागर करने में कोई आपत्ति नहीं. सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के पहले सिर्फ कुछ ही लोगों को पता था कि विकास समलैंगिक हैं और समान जेंडर के प्रति आकर्षण रखते हैं. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने जब फैसला सुनाया तो विकास ने यूनिवर्सिटी के बॉयज हॉस्टल में सबको बुलाकर खुलकर अपनी पहचान बताई. एक बोझ लिए विकास जी रहे थे इस फैसले के बाद विकास का बोझ और झिझक दोनों ही हट गई.

विकास ने बताया कि एक वक्त तक उन्हे ऐसा लगाता था जैसे वो गलत हैं वो अपने परिवार के साथ गलत कर रहें हैं क्योंकि तीन बहनों के बाद बड़ी मिन्नतों से घर में विकास का जन्म हुआ था. लेकिन खुद विकास को कहां पता था कि वो गलत नहीं है. कक्षा दसवीं में जब विकास पहुंचे तो उन्हे अहसास हुआ कि वो बाकी लोगों से अलग हैं लेकिन वो समझ नहीं पाए कि ऐसा क्यों हो रहा, विपरीत जेंडर के प्रति उनकी रूचि ना होने के कारण विकास के दोस्त उसे चिढ़ाते, फब्तियां कसते, इससे विकास के कमजोर मन पर गहरा असर होता लेकिन वो किसी से कह नहीं पाते क्योंकि वो छत्तीसगढ़ के एक छोटे से गांव से आते हैं जहां लोग ज्यादा पढ़े लिखे भी नहीं.

कॉलेज आने पर विकास को साफ हो चुका था कि उसे विपरीत जेंडर के प्रति कोई आकर्षण नहीं है कॉलेज में उसे अपने जैसे कई लोगों मिले. उसने इंटरनेट पर भी इस बारे में बहुत कुछ पढ़ा. फिर सत्यमेव जयते पर एलजीबीटी समुदाय का शो देखने के बाद विकास को समझ आया कि यह कोई खराबी नहीं, ना ही इसमें शर्म करने वाली बात है. विकास की अब खुद से लड़ाई खत्म हो गई थी क्योंकि उसे उसकी आईडेंटिटी  समझ आ गई थी. अब लड़ने की बारी दुनिया से थी. उसे कॉलेज के ही कुछ छात्र प्रताड़ित करने लगे, विकास को रोज अपमानित होना पड़ता, क्योंकि वो समलैंगिक था और कॉलेज के कुछ छात्रों को यह नामंजूर था उन्हे लगता था कि ये अप्राकृतिक है और समाज के नियमों के घोर विपरीत है. इस फैसले के आने के बाद विकास अब की अस्तित्व की लड़ाई खत्म हो गई है. यूनिवर्सिटी के छात्र-छात्राएं खुलकर विकास का समर्थन कर रहे हैं.

विकास कहता है कि ऐसा लग रहा है जैसे हमारे हाथों में बंधी हथकड़ी अब खोल दी गई है लेकिन अभी तो हमें सिर्फ जीने का अधिकार मिला है बाकी अधिकार तो मिलने बाकी हैं सुप्रीम कोर्ट ने हमें प्यार करने का अधिकार दिया है लेकिन अपने प्यार से शादी करने की आजादी मिलनी बाकी है. जब सबको अपनी पसंद से शादी करने का अधिकार है तो हमें भी ये हक मिलना चाहिए. समाज को समझना होगा कि हम अलग नहीं हैं हम आम लोगों की तरह ही हैं आम लोगों की तरह ही जीते हैं बस फर्क इतना सा है कि हमें समान जेंडर में आकर्षण होता है. विकास ने ये बात अपनी माँ से भी साझा की है लेकिन पिता से कहने में अभी भी झिझक महसूस होती है वह कहता है कि उम्मीद है सुप्रीम कोर्ट हमें आधे ही अधिकार के साथ नहीं रहने देगी और जिस दिन हमें शादी का अधिकार मिल जाएगा उस दिन वह अपने पिता को भी अपनी पहचान बता देगा.

विकास अकेला नहीं है उसके जैसे बहुत से लोग हैं जो इस फैसले के बाद आज़ाद महसूस कर रहें हैं फैसला आने के बाद एलजीबीटी समुदाय के लोगों ने राजधानी रायपुर के मरीन ड्राइव पर एकजुट होकर जश्न भी मनाया. इनके अस्तित्व की लड़ाई तो अब खत्म हो चुकी है लेकिन अपने बाकी अधिकारों के लिए इन्हे लड़ाई जारी रखनी होगी. विकास लोगों से अपील करते हुए कहता है कि सुप्रीम कोर्ट ने तो अपना फैसला सुना दिया है लेकिन उम्मीद है कि समाज हमारी इच्छाओं का सम्मान करते हुए हमें एक बेहतर भविष्य देगा.