रायपुर।छत्तीसगढ़ बचाओ आन्दोलन और उसके घटक संगठनों ने बजट को ‘कार्पोरेट दिशा में जाने वाला बजट’ करार देते हुए 12-27 फरवरी तक विरोध पखवाडा मनाने और पूरे प्रदेश में धरना-प्रदर्शन आयोजित करने का फैसला किया है. बैठक आर डी सी पी राव की अध्यक्षता में आयोजित हुई जिसमे समाजवादी किसान नेता आनद मिश्रा, छत्तीसगढ़ किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते और एन के कश्यप, छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा (एम के एस) से रमाकांत बंजारे, रिनचिन, पेंड्रावन जलाशय बचाओ किसान संघर्ष समिति से घनश्याम वर्मा, दलित आदिवासी मंच से देवेन्द्र बघेल, बारनवापारा जन संघर्ष समिति के अध्यक्ष अमरध्वज, आदिवासी दलित मजदुर किसान संघर्स से डिग्री चौहान, हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति से संदीप, छत्तीसगढ़ किसान महासभा से विजेंद्र तिवारी उपस्थित रहे।
पत्रकारों से बातचीत करते हुए संगठन के नेताओं ने कहा, कि सूखे से जूझ रहे किसानों के लिए न कोई योजना है और न कोई राहत. किसानों से जो वादा इस सरकार ने किया था, उस पर वह पूरी तरह चुप्पी साधे हुए हैं. मसलन :
- स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुसार फसल की लागत मूल्य का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य के रूप में देने का वादा था. इस वादे पर वह अमल करने के लिए तैयार नहीं है. जो समर्थन मूल्य घोषित किया जाता है, वह किसानों के लिए वास्तव में घाटे का मूल्य ही होता है और किसानों को औने-पौने भाव पर अपनी फसल बिचौलियों को बेचनी पड़ती है.
- यह बजट वर्ष 2018-19 के लिए हैं, लेकिन इस वर्ष के लिए बोनस अदायगी की कोई घोषणा सरकार ने नहीं की है. वर्ष 2017-18 के लिए ही बोनस राशि का आबंटन किया गया है. इसका स्पष्ट अर्थ है कि यह सरकार चुनाव के बाद बोनस देने के लिए प्रतिबद्ध नहीं है, जैसा कि हमारा पिछला अनुभव भी कहता है.
- एनएसएसओ सर्वे के अनुसार प्रदेश के 70 लाख किसान महाजनी और सरकारी कर्जे से ग्रस्त है और उन पर औसतन 50 हजार रुपये प्रति परिवार कर्ज़ चढ़ा हुआ है. कर्ज़ माफ़ी का वादा पूरा करने के लिए यह सरकार तैयार नहीं है.
- केंद्र सरकार ने मनरेगा के बजट में भारी कटौती कर दी है. राज्य में पिछले वर्ष सरकार ने 2175 करोड़ रुपये खर्चा किये हैं और आज भी 50 लाख मजदूरों का 300 करोड़ रुपयों की मजदूरी अदायगी बची है. इसके बावजूद इस साल के बजट में इस सरकार ने केवल 1419 करोड़ रूपये ही मनारेगा के लिए रखे है. इतने पैसे से केवल 10-12 दिनों का ही रोजगार पैदा किया जा सकता है.
- इस सरकार ने सूखा राहत से निपटने के लिए केंद्र सरकार से 5000 करोड़ रुपयों की मांग की थी. आज तक यह रकम नहीं मिली. इसके बावजूद फसल क्षति के मुआवजे के रूप में केवल 546 करोड़ रूपये ही आबंटित किये हैं, जबकि औसत फसल उत्पादन के आधार पर किसानों को प्रति एकड़ 21000 रूपये का नुकसान हुआ है.
- कृषि ऋण सब्सिडी में पिछले साल 223 करोड़ रूपये आबंटित किये गए थे, लेकिन इस बार केवल 184 करोड़ रूपये ही. इससे किसानों पर ब्याज का बोझ बढेगा. कृषि पंपों पर जो सब्सिडी दी गई है, वह किसानों को नहीं, ऊर्जा विभाग को जाएगी. धान खरीदी में हर साल बड़े पैमाने पर जो भ्रष्टाचार हो रहा है, उसकी पूर्ति जिम्मेदार अधिकारियों से करने के बजाये धान उपार्जन की क्षतिपूर्ति के नाम पर 850 करोड़ रुपये आबंटित कर जनता से ही की जा रही है.
- प्रदेश में जल-जंगल-जमीन से विस्थापन एक बड़ी समस्या है. वनाधिकार कानून का कहीं क्रियान्वयन नहीं हो रहा है. भूमि हड़पने के लिए 5वीं अनुसूची, पेसा कानूनों के प्रावधानों का उल्लंघन कर कानूनों को तोडा-मरोड़ा जा रहा है.
संगठन के नेताओं ने कहा, कि हमारे प्रदेश की तीन-चौथाई आबादी खेती-किसानी से जुडी है और 75% किसान घोर दरिद्रता का जीवन जी रहे हैं, जिनकी पारिवारिक वार्षिक आय 20000 रूपये से ज्यादा नहीं है. कृषि विकास दर केवल 2.89% ही है. कृषि संकट इतना है कि भाजपा राज में 25000 किसान आत्महत्या कर चुके हैं. ऐसी हालत में यह बजट संकटग्रस्त खेती-किसानी को कोई मदद नहीं करता. छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन बजट के इन किसान-आदिवासी विरोधी पहलुओं को लेकर ग्रामीण जनता के बीच जाएगी.
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन ने बारनवापारा अभयारण्य में विस्थापन के खिलाफ जगदलपुर में अधिग्रहित भूमि की वापसी के लिए, हसदेव क्षेत्र में कोयला खनन के खिलाफ और रायगढ़ में 170 ख के प्रकरणों में कार्यवाही के लिए चल रहे आंदोलनों का समर्थन करते हुए उनके साथ एकजुटता व्यक्त की है.