कांकेर से लौटकर वैभव बेमेतरिहा की विशेष रिपोर्ट
रायपुर। ‘वनों की रक्षा, पर्यावरण की सुरक्षा‘ ये नारा वन विभाग का है. छत्तीसगढ़ सरकार के वन विभाग का. लेकिन प्रदेशवासियों को आज जो हम स्पेशल रिपोर्ट दिखाने जा रहे है उसके बाद शायद आप वन विभाग और लोक निर्माण विभाग के लिए यही कहेंगे कि ‘सारे नियम-कायदे-कानून ताक में, वनों की हत्या हमारे हाथ में‘. आज हमारी इस खास-पेशकश में बात भ्रष्टाचार के पहाड़ की या कहिए पहाड़ भ्रष्टाचार की. जी हाँ एक ऐसी रिपोर्ट जिसमें आप जानेंगे कि कैसे भ्रष्टाचार के रास्ते बनते हैं या समझेंगे कि किस तरह सड़क के जरिए भ्रष्टाचार को अंजाम दिया जा रहा है. आप जानेंगे कि आखिर छत्तीसगढ़ सरकार के सरकारी विभागों की कार्यशैली कैसी है ? आपको पता चलेगा कि लोक निर्माण और वन मंत्री के नाक के नीचे कैसे करप्शन की नींव रखी गई ? और किस तरह तमाम शिकायतें, आपत्तियाँ, सबूत और प्रमाण के बाद भी जारी है पहाड़ पर करप्शन से कमीशन तक का एक बड़ा खेल !
जी हाँ आज हम आपको छत्तीसगढ़ में पर्यटन के नाम पर लोक निर्माण और वन विभाग की ओर से किए जा रहे एक बड़े भ्रष्टाचार की रिपोर्ट बता रहे हैं. उत्तर बस्तर में रमन सरकार के विकास और मुख्यमंत्री की घोषणा को कैसे लोक निर्माण और वन विभाग के अधिकारी दागदार बना रहे हैं यह बताने जा रहे हैं. आप उत्तर बस्तर कांकेर में पहाड़ के रास्ते भ्रष्टाचार की तस्वीर को देखेंगे, जानेंगे, समझेंगे कि आखिर किस तरह से करप्शन के साथ कमीशन का खेल चल रहा है. आप इस रिपोर्ट के जरिए यह जान पाएंगे कि आखिर कोई भी निर्माण समय पर क्यों पूरा नहीं होता ? आखिर कैसे मुख्यमंत्री की अच्छी सोच को काली कमाई के जरिए रंगने की कोशिश अधिकारी करते हैं ? उच्च अधिकारियों से लेकर मंत्री और मुख्यमंत्री के साथ प्रधानमंत्री तक पहुँची शिकायतों के बाद कार्रवाई क्यों नहीं होती ?
दरअसल आप जो ये विशाल हरा-भरा पहाड़ देख रहे हैं ये कांकेर का गढ़िया पहाड़ है. आदिवासियों की आदिम संस्कृति, सभ्यता को सदियो से अपने में समेटे हुआ गढ़िया पहाड़. एक आध्यात्मिक और धार्मिक स्थल. कांकेर शहर का एक छोटा सा पर बड़ा ही मनोरम पर्यटन स्थल भी. ये और बात है कि प्रदेश के पर्यटन मानचित्र में गढ़िया पहाड़ शामिल नहीं है. लेकिन पर्यटन स्थल बताकर ही यहाँ मुख्यमंत्री के घोषणा के अनुरूप निर्माण कार्य चल रहा है. लोक निर्माण विभाग की ओर इस पहाड़ पर करीब 3 किलोमीटर लंबा सड़क निर्माण का कार्य 2013 स्वीकृत किया गया. इसके लिए विभाग ने निविदा बुलाई और कांकेर के मो.फिरोज कन्ट्रक्शन कंपनी को 6 करोड़ 51 लाख 70 हजार में ठेका दिया गया. हरे-भरे घने पहाड़ पर सड़क निर्माण तो लोक निर्माण विभाग ने स्वीकृत कर दिया, लेकिन वन विभाग से अनुमति नहीं ली. इधर फिरोज कन्ट्रक्शन ने बिना पर्यावरण स्वीकृति मिले ही पहाड़ पर निर्माण कार्य शुरू कर दिया.
साल 2013 में लोक निर्माण विभाग ने बिना पर्यावरण स्वीकृति मिले कार्य स्वीकृति कर कार्य पूर्ण होने की समय-सीमा तय कर दी थी. इधर बिना वन विभाग की अनुमति मिले ही फिरोज कन्ट्रक्शन से काम शुरू कर दिया था. इसकी जानकारी वन विभाग को मिली तो वन विभाग ने निर्माण कार्य पर रोक लगा दी. लिहाजा 2015 तक कार्य रुका रहा. नतीजा ये हुआ कि जो समय-अविधि 24.03.15 में कार्य पूर्ण होने की रखी गई थी, उस समय-अविधि के साथ कार्य शुरू हुआ और लागत सीधे दो गुना बढ़ गया. मतलब जो कार्य 6 करोड़ 52 लाख में पूरा होने वाला था वह 14 करोड़ 50 लाख की राशि तक पहुँच गया.
वैसे तो पूरा मामला आप समझ ही गए होंगे लेकिन इन महत्वपूर्ण बिंदू के साथ यह भी जानिए कि कब-कब, किस रूप में किस तरह निर्माण के दौरान नियम और शर्तों का खुला उल्लंघन हुआ, जमकर मनमानी की गई-
1.वैकल्पिक वृक्षारोपण हेतु राज्य की वनभूमि 50 प्रतिशत से ज्यादा होनी चाहिए, लेकिन कांकेर जिले की वनभूमि 52.20 प्रतिशत का स्वीकृत ली गई. जबकि राज्य में वनभूमि 43.94 प्रतिशत है.
2. सगौन की लकड़ी की तस्करी की संभावना- सड़क निर्माण में जिला प्रशासन की ओर से 144 पेड़ काटने की बात कही गई, जबकि वन विभाग ने 97 पेड़ काटने की जानकारी दी.
3. गढ़िया पहाड़ को पर्यटन स्थल बताकर पहाड़ पर सड़क निर्माण किया जा रहा, जबकि पर्यटन विभाग की सूची में गढ़िया पहाड़ शामिल ही नहीं है.
4. लोक निर्माण विभाग ने बिना पर्यावरण स्वीकृति मिले ही पहाड़ पर ठेकेदार को काम करने की अनुमति दे दी थी, जबकि वन विभाग से अनुमति निर्माण शुरू होने के डेढ़ साल बाद मिली.
5. निर्माण के दौरान सर्वे से लेकर कई प्रकियाओं का सही तरीके से लोक निर्माण विभाग ने पालन नहीं किया, नतीजा दो बार समय अवधि के साथ लागत राशि बढ़ी और 6.52 करोड़ में बनने वाली सड़क अब 14.50 करोड़ में बन रही है.
6. वन विभाग से बिना अनुमति लिए गए ही पहाड़ पर ब्लॉस्टिंग किया गया, जबकि वन विभाग ने ब्लॉस्टिंग करने पर पहाड़ को नुकसान होने की बात कही थी.
7. विधानसभा में मंत्री लोक निर्माण विभाग की तरफ से गलत जवाब दिया गया- विधायक देवती कर्मा 25.07.14 को प्रश्न क्रमांक 934 और नेता-प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव 22.12.14 ने प्रश्न क्रमांक 302 और विधायक मोहन मरकाम 18.03.15 में प्रश्न क्रमांक 1006 की ओर से पूछे गए प्रश्न में कार्य प्रारंभ नहीं होना बताया गया था. इसके साथ ही नेता-प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव की ओर से प्रश्न क्रमांक 2593 दिनांक 07.03.2017 में पूछे गए सवाल पर जवाब दिया गया कि 06.04.2015 से ठेकेदार द्वार निर्माण कार्य शुरू करना बताया गया. जबकि 2013 में निर्माण शुरू हो गया था बाद में वन विभाग ने रोक दिया था.
दरअसल लोक निर्माण विभाग को पहाड़ पर सड़क निर्माण की अनुमति इस शर्त पर मिली थी कि राजस्व भूमि को वन भूमि बनाकर वहाँ जितने पेड़ कटे हैं उससे ज्यादा दोगुने पेड़ लगाना होगा. लेकिन पेड़ तो लगे नहीं, लेकिन वृक्षारोपण के नाम पर 50 लाख जरूर अधिकारी हजम कर गए.
ठेकेदार: मो.फिरोज
ऐसा नहीं है कि करप्शन के इस खेल में सिर्फ नियम-कानून के खिलाफ जाकर काम किया जा रहा है. बल्कि सच्चाई ये हैं कि सड़क, नाली और बाउंड्रीवाल निर्माण में घटिया सामग्री का उपयोग कर गुणवत्तहीन निर्माण कर एक बड़े भ्रष्टाचार को भी अंजाम दिया जा रहा है. यही नहीं वन संरक्षण अधिनियम 1980 का सीधा और खुले तौर पर उल्लंघन हुआ, लेकिन तमाम आपत्तियों के बावजूद वन विभाग ने कोई कार्रवाई नहीं की. जैसे वन विभाग की ओर से लोक निर्माण विभाग को लिखा गया कि घाट कटिंग में मलबा पहाड़ पर डंप नहीं होना चाहिए, पत्थर नहीं तोड़े जाने चाहिए, ब्लास्टिंग नहीं होनी चाहिए लेकिन ठेकेदार बिना किसी डर के नियमों की अनदेखी करते निर्माण किए जा रहा है. और तो और निर्माण के दौरान जो घाट कंटिग किया गया उसके बड़े-बड़े पत्थर पहाड़ पर ही डंप कर दिए गए. हैरानी की बात ये है कि मलबा डंप करने के नाम पर 1 करोड़ से अधिक की राशि भी ले ली गई है. दिनांक 04.08.15 को कांकेर सीसीएफ ने डीएफओ को पत्र लिखा, कि गढ़िया पहाड़ का अवलोकन करने पर पाया गया कि वहाँ खोदी जारी मिट्टी ढालान पर डाली जा रही यह वन संरक्षण अधिनियम 1980 के शर्तों का उल्लंघन इस पर कार्रवाई करे. इसी तरह दिनांक 4.4.16 को रेंजर ने डीएफओ को पत्र लिखकर जानकारी दी कि पत्थर-पत्थर के बड़े-बड़े टूकड़े पहाड़ के ढलान पर गिरा दिया गया है. लेकिन हकीकत क्या ये पहाड़ के उसी स्थान के देखिए जहाँ मलबा डंप है.
लेकिन लोक निर्माण विभाग की ओर वन विभाग को दिनांक 19.10 15 को यह जानकारी दी गई थी, कि मलबा पहाड़ी से क्षेत्र दूर जंगलवार कॉलेज और नरहरदेव स्कूल के साथ डंप किया गया. हमने इसकी भी पड़ताल की जिस जगह पर लोक निर्माण विभाग की ओर से बताया गया था कि 72 हजार क्यूबीक मलबा ठेकेदार ने यहाँ डंप किया है. और जिसके लिए 1 करोड़ से अधिक का भूगतान किया गया है. वहाँ पर मलबा है ही नहीं.
इसके बाद भी लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों के संरक्षण में ठेकेदार की मनमानी जारी है. यहां वन विभाग के तमाम आपत्तियाँ धराशई हो रही है. कलेक्टर से लेकर मुख्य वन सरंक्षक और लोक निर्माण से लेकर वन मंत्री तक हर किसी की पूरी जानकरी में खुले तौर पर वन नियमों का उल्लंघन कर निर्माण कार्य जारी है तमाम शिकायतों के बाद कोई कार्रवाई नहीं हो रही है. इस खुलासा खुद वन परिक्षेत्र की ओर से लोक निर्माण विभाग के कार्यपालन अभियंता को दिनांक 2.5.17 को लिखे पत्र हो रहा है
जिसमें बिंदुवार बताया गया कि 2017 तक की स्थिति है क्या-
1 पहाड़ पर मजदूरों के लिए टेंट नहीं होना चाहिए, जबकि है
2. 7.8 मीटर चौड़ाई में सड़क निर्माण किया जाना था उससे ज्यादा किया जा रहा है
3 स्थानीय वन भूमि के उत्खनन से प्राप्त किसी भी सामग्री का उपयोग नहीं किया जाना है, लेकिन मिट्टी और मुरूम का उपयोग किया जा रहा है
4 पहाड़ पर तालाब नहीं खोदा जा सकता लेकिन खोद दिया गया है
लेकिन तमाम दस्तावेज, बीते तीन साल चल रही शिकायते और वन विभाग की तमाम आपत्तियाँ की बावजूद कांकेर रेंज के मुख्य वन संरक्षक कहते है कि मुझे जानकारी नहीं डीएफओ से पूछिए, दूसरी ओर न डीएफओ मिलते न लोक निर्माण विभाग के अभियंता
सूचना के अधिकार के जरिए इस पूरे मामले का खुलासा करने वाले अभिजीत दत्ता राय को धमकियाँ मिल रही है. अभिजीत दत्ता राय ने मामले की शिकायत तमाम अधिकारियों के साथ मुख्य सचिव, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री, एनजीटी में कर दी है. यहीं इन तमाम शिकायतों के बजाए कोई कार्रवाई भ्रष्ट अधिकारियों या ठेकेदार पर करने कलेक्टर की ओर से अभिजीत को ही नौकरी से निकालने की कवायद शुरू हो गई है. दरअसल अभिजीत राष्ट्रीय शहरी अजाविका मिशन में के लिए अपनी सेवाए देते थे. लेकिन जब से उन्होंने इस मामले का खुलासा किया है वे अपने अधिकारियों के निशाने पर आ गए हैं. अभिजीत का कहना है कि उन्हें नौकरी जाने या किसी अन्य तरह के खतरे की परवाह नहीं है. वे बस यह चाहते हैं कि गढ़िया पहाड़ को बर्बाद होने से बचा लिया जाए. निर्माण के नाम पर भ्रष्टाचार करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जाए.