रायपुर। विधानसभा चुनाव में हार-जीत की समीक्षा शुरु हो गई है. भाजपा में हार की समीक्षा पर जहां बवाल मचा हुआ है वहीं जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) ने 2018 के परिणाम की समीक्षा की है. पार्टी ने हार की समीक्षा और समाधान का श्वेत पत्र: विधान सभा 2018 जारी किया है. इस श्वेत पत्र में पार्टी की हार के कारण के साथ ही उसका समाधान भी बताया गया है. हार की मुख्य वजहों में बसपा से गठबंधन करने की वजह से पार्टी की सतनामी-दलितों की पार्टी की छवि, और भाजपा की बी टीम बनने की छवि रही है. इसके अलावा समीक्षा हार की और भी वजहें बताई गई हैं. आपको बता दें कि जोगी-बसपा गठबंधन को विधानसभा चुनाव में महज 7 सीटें ही हासिल हुई थी.

1)  समीक्षा- सरकार के भारी विरोध के कारण भाजपा के कोर वोटबैंक विशेषकर पिछड़ा और अति-पिछड़ा वर्गों का कांग्रेस में स्थानांतरण। ये वोट हमारे गठबंधन को नहीं मिले। संघर्ष त्रिकोणीय होने की जगह “जनता” और “सत्ता” के बीच रहा जिसका फ़ायदा कांग्रेस को मिला और भाजपा लगभग विलुप्त हो गई। त्रिकोनी संघर्ष की स्थिति में हमें कम से कम १५-२० सीटें मिलती।
समाधान-  आगामी ५ सालों में विपक्ष में रहते हुए हमें अपने आप को दोनों राष्ट्रीय दलों से छत्तीसगढ़ के सभी वर्गों की लड़ाई लड़ने वाले सबसे मज़बूत विकल्प के रूप में प्रस्तुत करना होगा।

2) समीक्षा- बसपा के साथ गठबंधन से पार्टी की केवल ‘सतनामियों-दलितों की पार्टी’ के रूप में पहचान जिसके कारण उपरोक्त अन्य वर्गों के वोट नहीं मिले।
 समाधान- हमें एक समाज विशेष की नहीं बल्कि छत्तीसगढ़ में रहने वाले सभी वर्गों की पार्टी बनना पड़ेगा- लोगों में ये विश्वास पैदा करना होगा कि राष्ट्रीय पार्टियों की अपेक्षा क्षेत्रीय पार्टी ही उनकी आवाज़ ज़्यादा बुलंदी से उठा सकती है।

3) समीक्षा- ‘भाजपा की बी टीम’ की छवि। कांग्रेस के लगातार दुष्प्रचार, राजनांदगाँव से जोगी जी की अंतिम समय पर न लड़ने की घोषणा और मतदान के दो दिन पूर्व जोगी जी के बयान को तोड़-मडोड़कर मीडिया में छापना कि वे भाजपा का भी समर्थन कर सकते हैं, से मतदाताओं में प्रबल शंका कि त्रिशंकु विधान सभा की स्थिति में ‘जोगी रमन का साथ दे सकते हैं।’
समाधान- पूर्व में हुई ग़लतियों को सुधारते हुए हमें भाजपा की फ़ासिवादी और साम्प्रदायिक विचारधारा का पुरज़ोर विरोध करना पड़ेगा। वर्तमान सरकार द्वारा भाजपा शासन काल में हुए व्यापक भ्रष्टाचार की जाँच में लीपा-पोती न हो, ये भी सु-निश्चित करना होगा। जैसे कि बृजमोहन अग्रवाल और अजय चंद्राकर जैसे मंत्रियों के विभागों की जाँच भूपेश सरकार क्यों नहीं कर रही है?

4) समीक्षा- ८२ वर्षों में छत्तीसगढ़ में पहले कभी क्षेत्रीय दल को सफलता (मान्यता) न मिलने के कारण और हमेशा से दो दलों के बीच केंद्रित राजनीति वाले छत्तीसगढ़ में मीडिया और लोगों ने भाजपा का एकमात्र विकल्प के रूप में कांग्रेस को ही देखा।
समाधान- १४% वोट, ७ विधायक और चुनाव आयोग द्वारा मान्यता मिलने के बाद हमने इतिहास में पहली बार क्षेत्रीय विकल्प की एक मज़बूत नींव रखी है। लोकसभा और नगरी निकाय-त्रिस्तरीय पंचायती राज चुनावों में जीत दर्ज कर इस नींव पर हमें एक मज़बूत इमारत ख़डी करनी होगी, एक ऐसी इमारत जिससे प्रदेश का हर एक नागरिक गर्व महसूस कर सके।

5) समीक्षा- बस्तर और सरगुज़ा संभाग के और ग्रामीण और आदिवासी मतदाताओं में मान्यता कि ‘जोगी कांग्रेस मतलब पंजा छाप’- अधिकांश लोगों को यही लगा कि ‘जोगी कांग्रेस और कांग्रेस एक ही पार्टी है।’
समाधान- अपने नाम से ‘कांग्रेस’ शब्द हटाने और ‘हल चलाता किसान’ चिन्ह की पहचान जनता तक पहुचाने के लिए क्रमबद्ध रणनीति बनानी पड़ेगी- ताकि लोग जोगी कांग्रेस (हल/नागर-छाप) और कांग्रेस (पंज़ा) का बुनियादी फ़र्क़ समझ सके। आगामी चुनाव में हमें (जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ जे) न कि भाजपा को इंडीयन नैशनल कांग्रेस के मुख्य विकल्प के रूप में लोग देखे, ऐसा सु-निश्चित करना पड़ेगा।

6) समीक्षा-चुनाव चिन्ह मतदान के दो महीने पहले मिलने से समय और संसाधनों के अभाव के कारण प्रचार अभियान में कमज़ोरी: दो वर्ष पहले क़र्ज़ा माफ़ी, ₹२५०० समर्थन मूल, शराबबंदी, नियमितिकरण इत्यादि वाले ‘शपथ पत्र’ की अपेक्षा लोगों में कांग्रेस का कॉपी-पेस्ट करे ‘जनघोषणा पत्र’ का ज़्यादा प्रचार हुआ और लोगों विशेषकर किसानों ने उसपर ज़्यादा विश्वास करा। हमारे द्वारा उठाए मुद्दों को भुनाने में कांग्रेस हमसे अधिक कामयाब रही।
समाधान- कांग्रेस सरकार को हमें अपने जनघोषणा पत्र के वादे पूरा करने के लिए हमें सदन से लेकर सड़क तक लड़ाई लड़नी पड़ेगी। सरकार की शराब-बंदी जैसी घोषणाओं में वादा-खिलाफ़ी, भ्रष्टाचार, ग़लत नीति और नीयत और अफ़सरशाही पर पैनी नज़र रखनी पड़ेगी। ये भी सु-निश्चित करना होगा कि अपने राष्ट्रीय नेतृत्व के दबाव में आउट्सॉर्सिंग, पोलावरम, इंद्रावती, नगरनार संयंत्र, कनहर और महानदी जल बँटवारे में छत्तीसगढ़ वासियों के साथ राज्य सरकार अहित न होने दे। संसाधनों के लिए हमें स्थानीय लोगों से पारदर्शी तरीक़े से स्वैचिक सहयोग लेना होगा।

7) समीक्षा- जोगी जी का चुनाव पूर्व दो महीने दिल्ली में बीमार रहने के कारण पार्टी के प्रमुख कार्यकर्ताओं में हताशा और नेताओं की कांग्रेस में घर-वापसी।
समाधान- पार्टी की सारी जवाबदारी जोगी जी पर केंद्रित न हो, इस उद्देश से दूसरी और तीसरी पंक्ति के नेता तैयार करने पड़ेंगे।

8) समीक्षा- कांग्रेस के लिए पी॰एल॰पुनिया और के॰राजू के नेतृत्व में सतनामी समाज के दोनों प्रमुख गुरुओं- रूद्र गुरु और गुरु बालदास- और जोगी जी से जुड़े दोनों प्रमुख सतनामी नेताओं- शिव डहरिया और डीपी धृतलहरे- का प्रचार कराना।
समाधानदलित-विरोधी क़ानून, दलितों की सरकारी नौकरियों और पद्दोनीति में उपेक्षा, दलितों पर अत्याचार और उनके आरक्षण को उनकी जनसंख्या अनुरूप रखने जैसे मुद्दों को प्रबलता से उठाते रहना होगा।

9) समीक्षा- जोगी जी से पूर्व में जुड़े बड़े चहरों का शुरू से पार्टी से नहीं जुड़ना (रेणु जोगी, कवासी लकमा, अमरजीत भगत, दिलीप लहरिया, चुन्नीलाल साहू, रामदयाल उईके, बृहस्पति सिंह, मनोज मंडावी, शिव डहरिया, घनश्याम मनहर, रविंद्र सिंह) और कई बड़े चहरों की ठीक चुनाव पूर्व ‘घर-वापसी’ (गुलाब सिंह, डोमेन भेड़िया, भानुप्रताप सिंह, अंतुराम कश्यप, द्वारिका साहू, चंद्रिका साहू, वाणी राव, विनोद तिवारी, कलावती मरकाम, क़ुतुबुद्दीन सोलंकी, डी॰पी॰धृतलहरे, पप्पू बघेल, बसंत आडिल, यवत सिंह)।
समाधान- सभी वर्गों के ऐसे ऊर्जावान लोगों को जोड़ना और नेता बनाना होगा, जिनका लगाव सत्ता से नहीं बल्कि पार्टी के नेता और “छत्तीसगढ़ प्रथम” विचारधारा से रहे- जो सरकार की ग़लत नीतियों के ख़िलाफ़ संघर्ष करने से नहीं कतराएँ क्योंकि एक दिन- और वो दिन दूर नहीं- छत्तीसगढ़ में भी देश के अन्य २६ राज्यों की तरह क्षेत्रीय दल की सरकार बनना तय है।

10) समीक्षा-पार्टी का प्रचार केवल रमन सरकार के विरोध में रहा- कांग्रेस के बारे में हम मौन रहे। लोगों को लगा कि जोगी हमेशा की तरह कांग्रेस (पंजा-छाप) का प्रचार कर रहे हैं।
समाधान- कांग्रेस के सभी फ़ैसले दिल्ली से होते हैं; जबकि हम चाहते हैं कि हम अपने फ़ैसले ख़ुद करें और ज़रूरत पड़ने पर दिल्ली से छत्तीसगढ़ के ढाई करोड़ लोगों के हितों को सुरक्षित रखने के लिए लड़ाई लड़ सके, इस मूल अंतर को लोगों को गहराई से समझाना होगा।

 11) समीक्षा- दुर्ग, कोरबा, सामरी, सीतापुर, बीजापुर, रामानुजगंज, रायपुर उत्तर और ग्रामीण जैसी सीटों में अल्पसंख्यक वर्ग में धारणा की ‘जोगी को वोट देना अपना वोट बरबाद करना/ भाजपा को जिताना होगा।’ साथ ही किसी भी मुसलमान और सिख समाज को टिकट न देने का भी नुक़सान हुआ।
समाधान- अल्पसंख्यक वर्ग के हितों की रक्षा करने में हमें आगे रहना पड़ेगा। दूसरी पार्टियों की तरह उन्हें केवल वोट-बैंक न समझकर उनके सामाजिक और आर्थिक विकास के साथ साथ उनके उभरते नेताओं को अपने संगठन में प्रमुख स्थान देना होगा। सच्चर कमेटी की रिपोर्ट और दलित-ईसाई क़ानून लागू करने पड़ेंगे।

12)समीक्षा- बसपा गठबंधन के बाद जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) की मूल क्षेत्रीयवादी विचारधारा का कमज़ोर होना: लोगों में धारणा कि अब छत्तीसगढ़ के फ़ैसले छत्तीसगढ़ में नहीं, लखनऊ से होंगे।
समाधान- गठबंधन हमने क्षेत्रियता को मज़बूत करने के लिए किया था ताकि हम दिल्ली में दरबारी नहीं, बराबरी से छत्तीसगढ़ की बात रख सके- ये लोगों को समझाना होगा। लोक सभा में अगर हमारे क्षेत्रीय दल के ४ सांसद भी पहुँच जाते हैं, तो केंद्र में सरकार किसी की भी बनें, वो छत्तीसगढ़ वासियों के हितों को दरकीनार करने की जुर्रत नहीं कर सकेगा।

13)समीक्षा- कई सीटें जहाँ जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) की स्वीकार्यता बसपा से बेहद अधिक थी जैसे कसडोल, मस्तुरी, नवागढ़, पंडरिया, भिलाई, अहिवारा, डोंगरगढ़, अम्बिकापुर, जशपुर, कुनकुरी, पाली और भरतपुर हमने बसपा को दे दी।
समाधान- भविष्य में इन सीटों के बँटवारे में पुनः विचार करना होगा।

14) समीक्षा- कई ऐसी सीटें थी जहाँ बसपा कार्यकर्ताओं ने हमारे प्रत्याशियों के ख़िलाफ़ भीतरघात करा (चंदरपुर, अकलतरा, मोहला, तखतपुर, बेलतरा) और कई ऐसी सीटें थी जहाँ जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) कार्यकर्ताओं ने बसपा प्रत्याशियों के विरुद्ध काम किया (बलाईगढ़, सारंगढ़, अहिवारा, सराइपाली, डोंगरगाँव, डोंगरगढ़, जांजगीर-चाम्पा)।
समाधान- भीतरघातियों के ख़िलाफ़ कार्यवाही, और समन्वय स्थापित करने के लिए दोनों दलों के कार्यकर्ताओं के बीच समायिक बैठकें और सामूहिक जन-आंदोलन।

15) समीक्षा- बसपा के चिन्ह पर कांग्रेस/ भाजपा के सम्भावित बाग़ियों और जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) के प्रबल दावेदारों का नहीं लड़ना (कांकेर, कुरुद, बिंद्रानवागढ़, डोंगरगढ़, डोंगरगाँव)।
समाधान- बसपा और जनता कांग्रेस केवल एक समाज विशेष की पार्टियाँ नहीं है बल्कि “सर्ववर्ग हिताय सर्वधर्म सुखाय” के सिद्धांत पर चलने वाले दल हैं- ये संदेश सभी समाजों में देना होगा। गठबंधन धर्म में हाथी और हल में कोई फ़र्क़ नहीं है, इस बात को भी दोनों दलों के कार्यकर्ताओं और मतदाताओं को समझाना होगा।

16) समीक्षा-पूर्व में जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) द्वारा प्रत्याशी घोषित करने के कारण कांग्रेस/ भाजपा के प्रबल बाग़ियों का पार्टी से नहीं लड़ना (धमतरी, रायपुर उत्तर, बसना, रामानुजगंज और रायगढ़)।
समाधान- जहाँ-जहाँ बाग़ी उम्मीदवार ज़्यादा लोकप्रिय हैं, उनको पार्टी में उचित स्थान देना पड़ेगा, साथ ही सु-निश्चित करना पड़ेगा कि कार्यकर्ता पार्टी के लिए न कि किसी उम्मीदवार विशेष के लिए कार्य करें।

17) समीक्षा- गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के साथ गठबंधन नहीं हो पाने से दोनों दलों को नुक़सान हुआ (पाली, भरतपुर, मनेंद्रगढ, प्रेमनगर, प्रतापपुर, बैकुंठपुर, सिहावा)।
समाधान- ऐसी उम्मीद कम है कि भविष्य में भी इस पार्टी के साथ कोई स्थायी समझौता हो सकता है, इसलिए इनके ज़मीनी कार्यकर्ताओं को अपनी ओर आकर्षित और पंचायती स्तर पर उनसे समन्वय स्थापित करना पड़ेगा।

18) समीक्षा- कांग्रेस की मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट न करने की रणनीति बेहद सफल सिद्ध हुई: पहली बार (भूपेश बघेल के मुख्यमंत्री बनने की सम्भावना के कारण) कुर्मी और (ताम्रध्वज साहू के मुख्यमंत्री बनने की सम्भावना के कारण) साहू मतदाताओं ने अपनी पारम्परिक प्रतिस्पर्धा भूल कर एक ही पार्टी कांग्रेस को वोट दिया। सरगुज़ा में (टी॰एस॰बाबा के मुख्यमंत्री बनने की सम्भावना के कारण) ‘सरगुज़ियावाद’ की भावना के चलते संभाग की सभी चौदह सीटों पर कांग्रेस एक तरफ़ा जीती। अति पिछड़ा (यादव, निषाद, कलार, मरार) और अल्प संख्यक वर्गों (कवर्धा, वैशाली नगर, पाली, कुनकुरी) को टिकट देने से इन वर्गों का भी साथ कांग्रेस को मिला।
समाधान- एक समाज विशेष का मुख्यमंत्री बन जाने के बाद अब दूसरे समाजों का कांग्रेस के प्रति आकर्षण स्वाभाविक रूप से कम होना चाहिए। ऐसी स्थिति में हमें अन्य वर्गों को अपने प्रति “छत्तीसगढ़ प्रथम” विचारधारा और भावना को जागृत करके आकर्षित करना पड़ेगा। साथ ही इन वर्गों के उभरते हुए नेताओं को पार्टी स्तर पर महत्व देना पड़ेगा।

19) समीक्षा- भाजपा द्वारा नए की जगह फिर से पुराने चहरे उतारना और कांग्रेस के कई विधायकों का टिकट बदलना (कांकेर, बालोद, गुंडरदेही, लुँडरा, सामरी) और नए चहरों को मौक़ा देना।
समाधान- इस से सीख लेकर जहाँ तक सम्भव हो, नए साफ़-सुथरी छवि और संघर्षशील चहरों को चुनाव में उतारना होगा।

20) समीक्षा- अंधाधुन नियुक्तियाँ के कारण जवाबदारी तय नहीं हो पाना और संगठन में लचीलापन। युवा इकाई को छोड़ समस्त मोर्चा/विभाग लगभग निष्क्रिय रहे।
स्वार्थी नेताओं की अपेक्षा ऐसे लोगों को महत्व दिया जाना चाहिए जो वैचारिक/ सैधान्तिक रूप से पार्टी से जुड़े हैं। जो सत्ता की लालच में जाना चाहते हैं, उन्हें जाने देना चाहिए और जो समाधान- लोग दिली रूप से पार्टी से जुड़े हैं, उन्हें केंद्रित करके नए संगठन का निर्माण करना पड़ेगा।

21) समीक्षा- जोगी जी को छोड़ पार्टी के सभी बड़े नेता अपने निर्वाचन क्षेत्रों तक सीमित रहे। वे अन्य प्रत्याशियों के लिए प्रचार ही नहीं कर पाए।
समीक्षा- जो लोग चुनाव लड़ेंगे से ज़्यादा महत्व और सम्मान जो लोग (काड़र) उन्हें चुनाव लड़ाएँगे और जिताएँगे को मिले, ऐसा संगठन और संस्कार बनाना पड़ेगा। साथ ही विभिन्न क्षेत्रों और समाजों से ऐसे वक्ताओं को तैयार करना पड़ेगा जो पार्टी के प्रत्याशियों के लिए प्रचार कर सके।