• सुप्रीम कोर्ट ने कहा- हम इंसाफ करना चाहते हैं, तकनीकी कारणों से 17 साल से रूका है मामला
  • उमा भारती का बयान- किसी तरह की आपराधिक साजिश नहीं थी, जो था खुल्लम-खुल्ला था

नई दिल्ली- बाबरी विध्वंस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने अपने फैसले में वरिष्ठतम नेता लाल कृष्ण आडवाणी, डॉ. मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती समेत भाजपा और विश्व हिंदू परिषद के 13 नेताओं के खिलाफ आपराधिक साजिश का मुकदमा चलाने का आदेश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए इन सभी नेताओं पर आपराधिक साजिश का मुकदमा चलाने का आदेश दिया है। बुधवार को फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले को चार सप्ताह के भीतर रायबरेली से लखनऊ ट्रांसफर कर दिया जाएगा। कोर्ट के इस फैसले के बावजूद उत्तरप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह पर इसका असर नहीं होगा, फिलहाल वे राजस्थान के राज्यपाल हैं औऱ संवैधानिक पद में होने की वजह से उन्हें आपराधिक मामलों से छूट मिली हुई है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा- हम इस मामले में इंसाफ करना चाहते हैं। यह एक ऐसा मामला है, जो 17 साल से सिर्फ तकनीकी गड़बड़ी की वजह से रूका हुआ है। इसके लिए हम संविधान के आर्टि
कल 142 के तहत अपने अधिकार का इस्तेमाल करके आडवानी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती समेत सभी 13 नेताओं पर आपराधिक साजिश की धारा के तहत फिर से ट्रायल का आदेश दे सकते हैं।


सुप्रीम कोर्ट ने यह भी पूछा था कि बाबरी मसजिद विध्वंस के मामले में दो अलग-अलग अदालतों में चल रही सुनवाई क्यों न एक ही जगह हो? कोर्ट ने पूछा था कि रायबरेली में चल रहे मामले की सुनवाई को क्यों न लखनऊ ट्रांसफर कर दिया जाये, जहां कारसेवकों से जुड़े एक मामले की सुनवाई पहले से ही चल रही है। यहां बताना प्रासंगिक होगा कि तकनीकी आधार पर इनके खिलाफ साजिश का केस रद्द किया गया था, जिसके बाद सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी. लखनऊ में कार सेवकों के खिलाफ केस लंबित है, जबकि रायबरेली में भाजपा नेताओं के खिलाफ केस चल रहा है।

इस मामले पर उमा भारती ने कहा कि वहां किसी तरह की आपराधिक साजिश नहीं थी, जो था खुल्लम खुल्ला था। अयोध्या, गंगा और तिरंगे पर कोई खेद नहीं है।  उन्होंने कहा कि मैं 6 दिसंबर को मौजूद थी, इसमें साजिश की कोई बात नहीं।  अयोध्या आंदोलन में मेरी भागीदारी थी, मुझे कोई खेद नहीं है। मैं इसके लिए कोई भी सजा भुगतने को तैयार हूं।  मुझे इस आंदोलन में भागीदारी का गर्व रहा है।

कांग्रेस द्वारा इस्तीफा मांगने की बात पर उमा ने कहा जो 1984 की सिख विरोधी हिंसा के पीछे थे उन्हें इस्तीफा मांगने का कोई हक नहीं।  वैसे, अपराध अभी साबित नहीं हुए, इस्तीफे का सवाल ही नहीं।  वकील कोर्ट में अपनी बहस करेंगे।  उमा ने कहा कि मैं आज रात अयोध्या जा रही हूं।  मैं रामलला, हनुमानगढ़ी में आभार जताने जाऊंगी कि मुझे इतना यश और सम्मान दिया। मैं वहां संकल्प करूंगी की राम मंदिर तो बनकर रहेगा।  कोर्ट के बाहर हल की स्थिति बनेगी।  मेरे जैसा व्यक्ति पद से चिपकने वाला नहीं है।  मेरे लिए सम्मान जरूरी है।  राममंदिर निर्माण होगा और गंगा साफ करके रहूंगी।

बाबरी केस पर विनय कटियार ने कहा है कि हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान करते हैं।  कोई आपराधिक साजिश नहीं रची गई।  जानबूझकर सीबीआई ने आपराधिक केस चलाने की पहली की। राम मंदिर के लिए जेल जाना पड़ा तो जाएंगे। इधर बीजेपी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि हम लोग इस पर बैठकर विचार करेंगे। राम मंदिर के विषय में जो आरोप हैं वो इस प्रकार के नहीं हैं कि हमारे वरिष्ठ नेताओं के खिलाफ कोई कार्रवाई की जाए।  बाबरी एक्शन कमेटी के जफरयाब जिलानी ने कहा कि इसका ताल्लुख मस्जिद बनाने से नहीं है।  इसका ताल्लुख है, उन लोगों को सजा देने से जिन लोगों ने मस्जिद को गिराया था या इसकी साजिश की थी। हमें उम्मीद है कि इनको सजा होगी।
क्या है मामला ?
वर्ष 1992 में बाबरी मस्जिद गिराने को लेकर दो मामले दर्ज किये गये थे। एक मामला (केस नंबर 197) कार सेवकों के खिलाफ था और दूसरा (केस नंबर 198) मंच पर मौजूद नेताओं के खिलाफ।  केस नंबर 197 के लिए हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से इजाजत लेकर ट्रायल के लिए लखनऊ में दो स्पेशल कोर्ट का गठन किया गया, जबकि 198 का मामला रायबरेली में चलाया गया। केस नंबर 197 की जांच का काम सीबीआई को सौंपा गया और 198 की जांच यूपी सीआइडी ने की थी।  केस नंबर 198 के तहत रायबरेली में चल रहे मामले में नेताओं पर धारा 120बी नहीं लगायी गयी थी।  बाद में आपराधिक साजिश की धारा जोड़ने की कोर्ट में अर्जी लगायी, तो कोर्ट ने इसकी इजाजत दे दी।

कब क्या हुआ ?


वर्ष 1992

-6 दिसंबर को कार सेवकों ने अयोध्या में बाबरी मसजिद को ध्वस्त कर दिया।

-बाबरी मसजिद गिराने को लेकर दो एफआइआर 197 और 198 दर्ज की गयी।
-197 कार सेवकों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गयी।
-मसजिद से 200 मीटर दूर मंच पर मौजूद 198 नेताओं के खिलाफ भी एफआईआर दर्ज की गयी।
-उत्तर प्रदेश सरकार ने 197 के लिए हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस से इजाजत लेकर ट्रायल के लिए लखनऊ में दो स्पेशल कोर्ट बनायी।
-198 का मामला रायबरेली के कोर्ट में चला।
-197 के केस की जांच की जिम्मेदारी सीबीआइ को सौंपी गयी जबकि 198 की जांच सीआइडी ने की।
-198 के तहत रायबरेली में चल रहे मामले में नेताओं पर 12 बी एफआइआर में नहीं था, लेकिन 13 अप्रैल, 1993 में पुलिस ने चार्जशीट में आपराधिक साजिश की धारा जोड़ने की कोर्ट में अर्जी लगायी और कोर्ट ने इसकी इजाजत दे दी।
-इलाहाबाद हाइकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर मांग की गयी कि रायबरेली के मामले को भी लखनऊ स्पेशल कोर्ट में ट्रांसफर किया जाये।

वर्ष 2001
-हाइकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि इस मामले में ज्वाइंट चार्जशीट भी सही है और एक ही जैसे मामले हैं. लेकिन रायबरेली के केस को लखनऊ ट्रांसफर नहीं किया जा सकता, क्योंकि राज्य सरकार ने नियमों के मुताबिक, 198 के लिए चीफ जस्टिस से मंजूरी नहीं ली गयी।
-केस सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और सुप्रीम कोर्ट ने भी हाइकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा. पुनर्विचार और क्यूरेटिव पिटीशन भी खारिज कर दी गयी।
-रायबरेली की अदालत ने बाद में सभी नेताओं से आपराधिक साजिश की धारा हटा दी।
-इलाहाबाद हाइकोर्ट ने 20 मई, 2010 को अपना आदेश सुनाया. ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा।

वर्ष 2011
-करीब 8 महीने की देरी से सीबीआइ ने सुप्रीम कोर्ट में हाइकोर्ट के फैसले को चुनौती दी।
-2015 में पीड़ित हाजी महमूद हाजी ने भी सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर की।