रायपुर। देश में आम आदमी की हालत का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं जब दो बार के पूर्व मंत्री की गुहार सरकार के कानों तक नहीं पहुंच पा रही है तो फिर बहरी हो चुकी सत्ता तक किसकी आवाज पहुंच पाएगी. ऐसा इसलिए कह रहे हैं कि पिता तीन बार लगातार विधायक और बेटा 2 बार मंत्री रह चुका है लेकिन आर्थिक तंगी की वजह से वे अस्पताल का बिल नहीं भर पा रहे हैं. जिसकी वजह से वे पिछले 2 महीने से अस्पताल से उनकी छुट्टी नहीं हो पा रही है. आलम यह है कि सरकार के कई मंत्रियों से गुहार लगा चुके हैं, मुख्यमंत्री तक मदद के लिए फरियाद भरा पत्र भेज चुके हैं लेकिन मदद की बजाय हर जगह से सिर्फ आश्वासन ही मिला. इसे ईमानदारी का दंश भी कह सकते हैं कि न सरकार सुध ले रही है और न ही अपनी ही पार्टी के लोग.
हम बात कर रहे हैं अविभाजित मध्यप्रदेश में दो बार मंत्री रह चुके किशनलाल कुर्रे की. स्वर्गीय पंडित श्यामाचरण शुक्ल और मोतीलाल बोरा के मंत्रीमंडल में कई विभागों के मंत्री रहे किशन लाल कुर्रे का 30 अप्रेल को एक्सीडेंट हो गया था. 30 अप्रेल की रात को कुर्रे मोटरसाइकिल से अपने बेमेतरा के मारो स्थित घर जा रहे थे उसी दौरान एक तेज रफ्तार कार ने उन्हें अपने चपेट में ले लिया. उन्हें गंभीर हालत में अस्पताल ले जाया गया जहां से उन्हें नाजुक हालत में राजधानी के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया.
कुछ दिन वेंटिलेटर पर भी रहे. उनके सिर, सीने और हाथ-पांव में चोट आई थी लेकिन इलाज के बाद वे स्वस्थ हो चुके हैं. 1 मई से आज 29 जून हो चुका है लगभग दो महीने से वे अस्पताल में भर्ती हैं. हालांकि अभी भी उनके हाथों में पट्टी बंधी हुई है. उनके पुत्र गोपाल स्वरूप कुर्रे ने बताया कि 1 महीना पहले ही वे स्वस्थ हो गए थे इलाज में 2 लाख से ज्यादा की रकम खर्च हो चुका है और अस्पताल का बिल 3 लाख से ज्यादा बकाया होने की वजह से उनके पिता को डिस्चार्ज नहीं करा पाए हैं.
उन्होंने बताया कि पिता के इलाज में काफी पैसे खर्च हो चुके हैं वे अपने क्षेत्र के पर्यटन और संस्कृति मंत्री दयालदास बघेल के पास मदद के लिए गुहार लगा चुके हैं शुरुआत में दयालदास ने मदद से इंकार कर दिया था लेकिन बाद में उन्होंने मदद की अनुशंसा की. बघेल के अलावा वे मंत्री पुन्नूलाल बघेल, विधानसभा अध्यक्ष गौरी शंकर अग्रवाल, संसदीय सचिव लाभचंद बाफना के पास भी फरियाद ले कर जा चुके हैं लेकिन महीना भर बीत गया अभी तक उन्हें सिवाय आश्वासन के कोई मदद नहीं मिल पाई.
बताते-बताते उनकी आँखों से आंसुओ की धार बहने लगी खुद को संभालते हुए उन्होंने बताया कि उनके पास 15 एकड़ पुस्तैनी जमीन है अस्पताल का बिल चुकाने के लिए वे अपनी बेचने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन खरीददार नहीं मिल पा रहे हैं.
कांग्रेस ने भी नहीं ली सुध
पूर्व मंत्री किशन लाल के पिता स्व. राजमहंत शिवलाल कुर्रे 1952 से लेकर 1967 तक लगातार तीन बार विधायक रह चुके हैं. खुद किशन लाल कुर्रे 1972 से लेकर 1977 तक पंडित श्यामाचरण शुक्ल के मंत्रीमंडल और 1985 से 1990 तक मोतीलाल वोरा के मंत्रीमंडल में स्वास्थ्य विभाग, पंचायत एवं ग्रामीण विकास, अनुसूचित जाति-जनजाति जैसे कई विभागों में वे मंत्री रह चुके हैं. लेकिन जिस पार्टी के लिए किशनलाल और उनके पिता ने अपना सारा जीवन न्यौछावर कर दिया उस पार्टी के दिग्गज नेताओं ने भी इस मुश्किल घड़ी में उनका साथ नहीं दिया. किशनलाल के पुत्र गोपाल स्वरूप ने बताया कि वे मदद के लिए नेता प्रतिपक्ष और सरगुजा राजघराने के टीएस सिंहदेव से मुलाकात करने पहुंचे थे. उनसे उनकी मुलाकात तो नहीं हो पाई लेकिन उन्होंने उन तक सारी जानकारी भेजवाई थी. टीएस सिंहदेव के अलावा वे कांग्रेस के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा के पुत्र अरूण वोरा के पास भी गए थे लेकिन उनसे भी मुलाकात नहीं हो पाई. इसके अलावा वे पूर्व मुख्यमंत्री श्यामाचरण शुक्ल के बेटे और पूर्व मंत्री अमितेष शुक्ल के पास भी गए थे उनसे उनकी मुलाकात हुई थी. उनसे भी मदद मांगी लेकिन उन्होंने आश्वासन दे दिया.
ऐसा नहीं कि इस दौरान उनसे मिलने कोई नहीं पहुंचा या किसी नेता को उनके अस्पताल में भर्ती होने की जानकारी नहीं थी. संसदीय सचिव लाभचंद बाफना अस्पताल पहुंचे थे उनसे मुलाकात करने के लिए. उनके अलावा अमितेष शुक्ल का एक प्रतिनिधि जरुर उनका हालचाल पूछने अस्पताल पहुंचा था.
मैंने पैसा नहीं कमाया लोगों की सेवा की
आज दो महीना पूरा होने आया है और उनकी आँखे दरवाजे पर टिकी हैं कि शायद सरकार उनकी सुध ले ले या फिर उनकी पार्टी के नेता ही. अपनी लाचारी पर हंसते हुए किशनलाल कुर्रे कहते हैं कि मेरे पिता 3 बार विधायक रहे मैं 2 बार मंत्री रह चुका लेकिन हम लोगों ने पैसा नहीं कमाया हम लोगों की सेवा करते थे. उस वक्त की राजनीति लोगों की सेवा के लिए थे. स्वभाव से बेहद सरल किशनलाल का कहना है कि उनका बेटा पैसा की व्यवस्था कर रहा है. घर-जमीन कुछ भी बेच के देना पड़े वे अस्पताल का पैसा चुका कर ही घर जाएंगे. हालांकि दर्द के वो निशान उनके चेहरे पर देखे जा सकते थे वे निशान उनकी ईमानदारी के थे वे निशान उनकी पार्टी के नेताओं के भुला देने के थे, वे निशान सरकार के मंत्रियों के आश्वासन के ही थी.