रायपुर। ये आंकड़े बेहद चौंकाने वाले हैं, लेकिन सच है. छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद से लेकर अब तक आदिवासी इलाकों में विकास की चमचाती तस्वीरों के बीच का एक खौफनाक सच है. एक ऐसा सच जो सरकार के बेहतरीन नारे पर काला धब्बा जैसा है. सरकार के माथे पर ये काला टिका इसी छत्तीसगढ़ राज्य में लगा है जो कई क्षेत्रों में विकास के मॉडल पर रोल मॉडल या कहिए कि नंबर वन है.
लेकिन यह सवाल आदिवासी अंचलों में के विकास के मजबूत दावों के बीच अब जोर-शोर से उठ रहा है कि, राज्य निर्माण के बाद से लेकर अब तक आखिर प्रदेश की 27 हजार आदिवासी बेटियाँ लापता कहाँ हो गईं ? सवाल इसलिए भी उठेंगे क्योंकि सरकार ने एक खूबसूरत नारा इस प्रदेश में दिया है, “बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ”. लेकिन यह सरकारी नारा सिर्फ नारा बनकर ही रह गया है इसे सरकारी आँकड़े ने ही साबित किया है.
मतलब अगर बस्तर या सरगुजा अँचल की बेटियाँ आज प्रयास या एजुकेशन सिटी के जरिए विकास की ऊचाइयाँ छू रही हैं, तो इसी इलाके का सच यह भी है कि प्रदेश में मानव तस्करी भी जमकर हो रही है. नहीं तो 18 साल के छत्तीसगढ़ में 27 हजार सिर्फ आदिवासी बेटियाँ ही लापता नहीं होती.
सत्ता के सामने लापता बेटियों को ढूँढने की चुनौती है, तो विपक्ष के सामने सरकार को इसे घेरने का एक बड़ा मुद्दा. यही वजह है कि नदियों के सरंक्षण के लिए हसदेव नदी किनारे आदिवासी इलाके से जनयात्रा पर निकले महंत ने चुनावी साल में बेटियों की सुरक्षा को लेकर सरकार पर सीधा हमला बोला है. आदिवासियों के बीच आदिवासी बेटियों की सुरक्षा का सवाल उठाकर महंत ने ही सरकार को नहीं घेरा, बल्कि कांग्रेस के तमाम नेता इसे लेकर हमलावर हो गए हैं. आदिवासी महिला नेत्री प्रदेश महिला कांग्रेस की अध्यक्ष फूलोदेवी नेताम ने सरकारी नारे के बीच बेटियों की सुरक्षा को लेकर चिंता जाहिर कर दी है.
जाहिर तौर पर बेटियों को पढ़ाने और उसे बचाने की जिम्मेदारी सरकार की है. वैसे भी सरकार को सरकारी नारे को सार्थक करने इस आँकड़ें को गलत साबित करना होगा जो इन दिनों सरकार के लिए बड़ी चुनौती के तौर पर है. सरकार को विपक्ष के सवालों का जवाब तो ढूँढना ही साथ ही लापता आदिवासी बेटियों को भी ढूढ़ना है. हालांकि चुनावी वर्ष में लापता आदिवासी बेटियों का पता चले ना चले, लेकिन राजनीतिक तौर पर राजनेताओं की भूमिकाओं का आंकलन जरूर हो जाएगा.