रायपुर। बस्तर जिसे दण्डकारण्य कहा जाता है. वह इलाका जहाँ से श्रीराम गुजरे थे. इन दिनों इस इलाके सूबे के मुखिया डॉ. रमन सिंह गुजर रहे हैं विकास यात्रा के साथ. सीएम के लिए आज का दिन बेहद खास है. एक ऐसा दिन जिसे वे अपने सबसे यादगार दिनों में संजोकर रखेंगे. क्योंकि आज डॉ. रमन को दण्डकारण्य में शबरी मिली. नाम पर मत जाइएगा बस काम पर जाइएगा.

दंतेवाड़ा से विकास की यात्रा निकलकर जब बड़ेकिला पाल पहुँची. शायद इसी क्षण का इंतजार यहां की 60 साल की वो बुर्जुग महिला कर रही थीं, जो डॉ. रमन के लिए आज शबरी बनी और शायद एक क्षण के डॉ. रमन उस बुर्जुग महिला के राम. दरअसल बड़ेकिलेपाल में विकास यात्रा लेकर मुख्यमंत्री पहुँचे तो 60 साल की कमला सीएम का इंतजार कर रही थीं. दोना में चार(बेर) लिए.  जब डॉ. रमन और कमला मिले तो वहां मौजूद लोगों के लिए एक पल के दृश्य रामायणकालीन हो गया.  ठीक उसी तरह से त्रेता में भगवान राम ने वनवास दौरान शबरी से जुठे बेर खाए थे.

कमला डॉ. रमन को तिलक लगा रही थी, कमला बड़े चाव के साथ डॉ. रमन को बेर खिला रही थी, कमला शायद वर्षों इसी पल का इंतजार कर रही थी. डॉ. रमन के लिए भी यह क्षण बेहद भावुक भरा था. आंखों में एक नई चमक थी, चेहरे में आत्मीय मुस्कान, दिल में सुकून और जीवन में संतोष के क्षण. बहुत आदर के साथ सीएम कमला से आशीर्वाद लिया. इस दृश्य ने दण्डकारणय में उस रामायणकालीन गाथा को जीवंत कर जिस आप हम ये सुनते और पढ़ते रहे हैं कि छत्तीसगढ़ में ही शबरी ने राम को बेर खिलाई थीं, छत्तीसगढ़ में राम के वनवास के 12 बरस बीते थे. सबसे खास बात ये है कि कमला का कोई औलाद नहीं है. शायद कमला को आज डॉ. रमन के तौर पर उन्हें अपना बेटा भी मिल गया. जिसे वे अपने हाथों से बेर खिला पाई.