रायपुर। विधानसभा में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के विभागों के अनुदान मांगों पर चर्चा शुरू होते पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने सत्ता पक्ष जमकर हमला बोला. डॉ. रमन सिंह ने कहा कि बहुमत से आई सरकार व्यक्तिगत तानाशाही में परिवर्तित होते जा रहा है. मुख्यमंत्री खुद अपने फैसले बदलते हैं. सरकार आम आदमी की न होके एसआईटी वाली हो गई है. नई सरकार शिक्षाकर्मियों, कर्मचारियों, महिलाओं को बड़ी उम्मीदें थी लेकिन बजट में सारी उम्मीदें धरी की धरी रह गई है. सरकार का पूरा ध्यान केवल बदलापुर कार्रवाइयों पर है.

डॉ. रमन सिंह ने कहा कि छत्तीसगढ़ की जनता को जन घोषणा पत्र जारी कर भ्रम बनाने की कोशिश की गई. जनता इसी भ्रम में आ गई. लेकिन लोगों का यह भ्रम बजट के साथ टूट भी गया. क्योंकि बजट से उम्मीद थी कि जन घोषणा पत्र के मुताबिक प्रतीकात्मक प्रावधान तो होगा, बजट के बाद हाल ये हैं कि लेकिन 60 दिन में विरोध के स्वर प्रकट होने लगे.  23 लाख पंजीकृत बेरोजगार टकटकी लगाकर बजट की ओर देख रहे थे. लेकिन बजट में कोई जिक्र नहीं. शिक्षाकर्मियों के आंदोलन की सुगबुगाहट शुरू हो चुकी है. कर्मचारी आंदोलन के लिए आगे आ रहे हैं. शराबबंदी को लेकर छत्तीसगढ़ की महिलाओं ने इन पर विश्वास प्रकट किया है,लेकिन राज्य की आधी आबादी का विश्वास खंडित किया है. शराबबंदी को लेकर कोई जिक्र नहीं है. शराब को लेकर एक बार फिर राज्य में कोचियों का अधिकार हो जाएगा. ये विश्वास टूटने जैसा है. लोकसभा चुनाव में यही आधी आबादी सबक सिखाएगी.

डॉ. रमन यही नहीं रुके उन्होंने अपना आरोपों की बमबारी जारी रखा है और सवाल पे सवाल दागते हुए कहा कि किसानों को ठगने का प्रयास कैसे किया गया बजट को देखकर पता चलता है. बजट में दो साल के बोनस का जिक्र नहीं किया गया है. स्वास्थ्य की स्थिति क्या है यह अस्पतालों को देखकर पता चलता है.  स्वास्थ्य में इतना बड़ा खिलवाड़ किया गया. दुनिया की सबसे बड़ी योजना आयुष्मान जिस छत्तीसगढ़ से शुरू हुई थी उसे बंद कर दिया गया. बजट में इसका कोई कोई प्रावधान नहीं किया गया.

रमन सिंह ने भूपेश सरकार की उस योजना पर भी सवाल खड़े जो गांव-गरीब और किसानों के लिए सीधे तौर पर है. पूर्व सीएम ने कहा कि सरकार की सबसे बड़ी योजना नरवा-गरवा, घुरवा-बारी में काम कैसे होगा इसके लिए गांव के लोग पूछा रहे हैं पैसा कहां रखे हे संगवारी. रमन सिंह ने बजट में आदिवासी हितों को लेकर सवाल उठाते हुए कहा कि आदिवासी उपयोजना और अनुसूचित जाति उपयोजना में प्रावधान किये गए बजट को देखकर मुझे आश्चर्य भी हुआ और दुख भी. पहली बार इतने कम बजट का प्रावधान किया गया. इसका गलत प्रभाव समाज के अंदर पड़ेगा. 15 सालों में इस क्षेत्र में सबसे कम खर्च करने वाला बजट है. ये बजट अब तक का सबसे ज्यादा बजट घाटे वाला बजट है. आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपया वाला बजट है. 18 हजार 768 करोड़ रुपये राजस्व बजट घाटा जा चुका है. 6.06 फीसदी है. यह छत्तीसगढ़ के इतिहास का सर्वाधिक है. ये चिंता का विषय है. 3 फीसदी से बढ़कर 6 फीसदी पर जा रहे हैं.

डॉ. रमन सिंह ने भूपेश सरकार के इस दौर को लेकर कहा कि यह गहरे आर्थिक संकट की ओर प्रदेश को ले जाने की निशानी है. राज्य को विकास से पीछे ले जाने का क्रम बढ़ा है. पूंजीगत व्यय में लगातार कमी होगी और राजस्व व्यय में लगातार वृद्धि होगी तो इससे विकास का क्रम सीधे नीचे जाएगा. कर्ज पर कर्ज लेते चले गए तो आने वाले समय राज्य की स्थिति बेहद खराब हो जाएगी.  इस तरह के घाटे का सीधा असर राज्य के वित्तीय प्रबंधन पर पड़ता है. इस साल 1 हजार 800 करोड़ कर्ज लेने की सीमा मिली थी लेकिन घाटा बढ़ाये जाने से अब यह सुविधा राज्य को नहीं मिलेगी. 2003 में एफआरबीएम एक्ट शुरू हुआ था. हमने 2008 में इस एक्ट को शुरू किया. 13 साल तक हम वित्तीय घाटे को 3 फीसदी के नीचे रखा था. इस कुशल वित्तीय प्रबंधन को सराहना हुई.

उन्होंने सरकार की नीति और नीयत पर सवालिया निशाने लगाते हुए कहा कि राज्य की अधोसंरचना के विकास के लिए बड़ी राशि का प्रावधान किया था. सड़के बनेगी तो विकास की दिशा तय होगी. लेकिन बजट में इस क्षेत्र में भारी कमी की गई. 2003 में जब राज्य की बागडोर हमने संभाली थी तब 8 हजार 121 करोड़ कर्ज हम पर था. 31 मार्च 2018 में 36 हजार 990 करोड़ का कर्ज छोड़ा. 15 सालों में सालाना 2 हजार करोड़ से कम कर्ज लिया था.  नई सरकार आते ही पहले दिन ही 6 हजार करोड़ का कर्ज लिया गया. सरकार बनने के 15 महीने में ही 24 हजार करोड़ कर्ज सरकार का हो जाएगा. हमने 15 सालों में केवल 28 हजार करोड़ का कर्ज लिया था.  यदि पूंजीगत व्यवस्था के लिए ये कर्ज लिया जाता तो ठीक था लेकिन किसके लिए ये कर्ज लिया जा रहा है. वित्तीय कुप्रबंधन से निकलने से बरसो लग जाते हैं. राज्य की राजस्व प्राप्तियां 2019-20 में 2 हजार 445 करोड़ दिखाई गई है. जबकि केंद्र से मिलने वाली राशि में 9 हजार 300 करोड़ की वृद्धि दिखाई गई है. यह मान लिया जाए कि धान के बोनस के लिए 5 हजार करोड़, बिजली के लिए करोड़ों का प्रावधान केंद्रीय राशि से की गई है 35 किलो चावल का मुद्दा जोरशोर से उठाया गया. मनमोहन सिंह सरकार ने प्रति परिवार 7 किलो चावल दिए जाने का एक्ट लाया था. तो आज क्या छत्तीसगढ़ में सरकार इस कानून के पालन से हट रही है? छत्तीसगढ़ का खाद्यान्न सुरक्षा देश के लिए मॉडल रहा है. परिवार के डेफिनेशन में कई खामियां आ जाती थी लेकिन व्यक्ति को यूनिट कर दिया जाए तो खामी दूर हो जाती यह सोचकर हमने नीति बदली थी. 2500 रुपये प्रति क्विंटल में धान खरीदी का निर्णय लिया है इसके लिए बधाई देता हूँ. लेकिन मार्कफेड बड़ा घाटा नहीं सके सकती. मार्कफेड लगातार घाटे पर चल रहा है. बजट में इसका लोड अतिरिक्त पड़ेगा.  राज्य अंधेरे में था लेकिन 15 सालों में सरकार ने बड़ा काम ऊर्जा क्षेत्र में किया. हमने राज्य की क्षमता बढ़ाई थी. जनरेशन, ट्रांसमिशन और डिस्ट्रीब्यूशन का नेटवर्क खड़ा करना ये बहुत पैसा मांगता है. बस्तर में जब ब्लैकआउट कर दिया गया था तब हमने तय किया था कि सिंगल लाइन कनेक्शन नहीं होगा.  देश में अकेला छत्तीसगढ़ है जहां आधी आबादी के लोगों के पास बिजली बिल ही नही जाता. बिजली बिल हाफ का नारा खूब लगाया जा रहा है. हमने किसानों को मजबूत करने 4 हजार करोड़ की सब्सिडी दी थी.

इसके आगे रमन सिंह ने सरकार की खनन और ट्रांसफर नीति पर सवाल दागे. रमन सिंह कहा कि खनिज का विषय बेहद महत्वपूर्ण है. रेत आम आदमी के जीवन से जुड़ा रहता है. रेत को ऐसे रेगुलेट करना चाहिए कि यह कम दरों में मिले. राजीव गांधी ने त्रिस्तरीय पंचायतीराज का सपना देखा था. रेत खनन के काम को पंचायत के हाथों रखे तो ये माफियाओं के हाथों नहीं जाएगा. इंटर स्टेट बॉर्डर पर यह भले किया जा सकता है. रेत का संचालन यदि ऑक्शन के जरिये चला जाए तो इसकी कीमत बढ़ेगी.  खनिज सेक्टर में हमने नीति बनाई थी वैल्यू एडिशन विदिन स्टेट. बस्तर में एनएमडीसी ने स्टील प्लांट लगाया है. ये हमारी माइनिग पॉलिसी का प्रेशर था. भिलाई जैसा एक नया शहर तैयार हो गया है.  पिछले 60 दिनों में प्रदेश के गवर्नेंस को तहस नहस कर दिया. हमने यूपी-बिहार के किस्से सुना था जहां 6 महीने में तबादले हो जाते थे. एसपी रायपुर की जब पोस्टिंग हुई तो समाचार पत्रों में आया कि पहली बार महिला एसपी को पदस्त किया गया. लेकिन 60 दिनों में ही बदल दिया गया. रात में 12-1 बजे आदेश निकल रहे है. एक आईपीएस को एसआईटी का प्रमुख बना दिया गया उसने गलत कार्रवाई करने से मना किया तो उसे हटा दिया गया. प्रशासनिक असफलता है पर्यवारण विभाग में सदस्य सचिव होते है. भारसाधक मंत्री को पता ही नहीं ट्रांसफर आदेश जारी हो जाता है .सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार कोई राजनीतिक व्यक्ति नहीं हो सकता लेकिन राजनीतिक व्यक्ति को बनाकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना की है. एनजीटी ने इसकी क्वालिफिकेशन तय की हुई है. साथ ही स्पष्ट ये भी लिखा है कि चीफ सेकेट्ररी, पोलिटिकली व्यक्ति नहीं रह सकते. लेकिन हम एनजीटी की गाइडलाइन को नजरअंदाज कर पॉलिटिक्स व्यक्ति को ला रहे है. राज्य में नियम कायदा चलेगा या फिर मेरी मर्जी चलेगी.

पूर्व सीएम ने आज जिस तरह से सदन में बोल रहे थे जैसे वे आज भूपेश सरकार को हर मोर्चे पर घेरने पूरी तैयारी के साथ आए हैं. लिहाजा आरोपों के बमबारी और सवालों के बौछारों के बीच उन्होंने सीधा हमला बोलते हुए कहा कि ये सरकार एसआईटी की, एसआईटी के लिए और एसआईटी के द्वारा वाली सरकार है. डीजीपी की स्थाई नियुक्ति दो महीने में नहीं निकल पाई. यूपीएससी को तीन अधिकारियों का पैनल भेजा जाता है. पहली बार किसी कारणवश सीएस नहीं जा सके, दूसरी बार फिर मीटिंग में सीएस नहीं जा सके. नक्सल ऑपरेशन के डीजी, वर्तमान डीजीपी से तीन साल सीनियर है, वह किसे रिपोर्ट करेगा. डीजीपी को हटाने की प्रक्रिया के लिए गाइडलाइन तय है. सुप्रीम कोर्ट ने इसे लेकर गाइडलाइन तय की हुई है. इससे बड़ा तमाचा नहीं हो सकता कि ए एन उपाध्याय को हटाना पोलिटिकली मोटिवेटेड है. भ्रष्टाचार में लिप्त एक आईएएस अधिकारी को लेकर ये सरकार पीएम, ईडी को चिठी लिखी थी. लेकिन सरकार बनने के बाद गजनी जैसी याददाश्त हो जाती है. आज वो अधिकारी प्रशासनिक निर्णय में सहभागी है. उद्योग के लिए बजट में कोई पैसा तो नहीं रखा गया है लेकिन ट्रांसफर उद्योग से यहां कोई बड़ा उद्योग नहीं है. झीरम मामले में रमन ने कहा कि एनआईए के ऊपर एसआईटी बनाई गई. ठीक है सरकार ने बनाई लेकिन सरकार में बैठे मंत्री से बेहतर उस घटना के बारे में क्या नहीं बता सकता. आखिर उसे बिठाकर जांच क्यों नहीं की जाती. अमन सिंह की शिकायत पीएमओ में होने के मामले में रमन ने कहा कि विजिलेंस की जांच के बाद